अक्षय ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य की प्राप्ति में विकसित देश भारत से पीछे : सरकार

केंद्र सरकार ने शुक्रवार को कहा कि अक्षय ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त करने में बड़ी अर्थव्यवस्थाएं और विकसित देश भारत से पीछे हैं

Update: 2022-08-05 11:30 GMT

नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने शुक्रवार को कहा कि अक्षय ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त करने में बड़ी अर्थव्यवस्थाएं और विकसित देश भारत से पीछे हैं क्योंकि सरकार पर्यावरण की चिंता के साथ ऊर्जा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में काम कर रही है. विद्युत, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह (Minister for Power and New & Renewable Energy) ने लोकसभा में 'ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022' को चर्चा एवं पारित करने के लिए रखते हुए यह बात कही जिसमें कम से कम 100 किलोवाट के विद्युत कनेक्शन वाली इमारतों के लिये नवीकरणीय स्रोत से ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने का प्रावधान किया गया है.

सिंह ने कहा कि सभी देश जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग से निपटने के लिए कार्बन डाईऑक्साइड और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करना चाहते हैं जिसके फलस्वरूप नवीकरणीय या अक्षय ऊर्जा और स्वच्छ ऊर्जा अपनाने की दिशा में अभियान शुरू हुआ है. उन्होंने कहा कि पेरिस में हुए संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप 21) में भारत ने तय किया था कि 2030 तक बिजली उत्पादन क्षमता का 40 प्रतिशत अक्षय ऊर्जा और स्वच्छ ऊर्जा जैसे गैर-जीवाश्म ईंधन वाले स्रोतों से पूरा किया जाएगा और इस लक्ष्य को देश ने नवंबर 2021 में ही प्राप्त कर लिया.
उन्होंने कहा ऐसे लक्ष्य की प्राप्ति में बड़ी अर्थव्यवस्थाएं और विकसित देश भारत से पीछे हैं. सिंह ने कहा कि इसका एक कारण है पर्यावरण की चिंता और दूसरा कारण है देश को आत्मनिर्भर बनाने का उद्देश्य. उन्होंने कहा, 'हमें पेट्रोलियम, कोकिंग कोल जैसी चीजों के विदेशों से आयात पर निर्भरता समाप्त करनी है.' उन्होंने कहा कि सरकार विद्युत चालित वाहनों की चार्जिंग भी अक्षय ऊर्जा से करने को प्रोत्साहित कर रही है.
सिंह ने कहा कि इस विधेयक में आधुनिक ऊर्जा क्षमता के प्रावधान वाले प्रस्ताव हैं. इसमें बड़ी इमारतों के लिए हरित तथा टिकाऊ विद्युत उपयोग वाले मानक बनाए जाएंगे जिन्हें राज्य सरकार बदल सकती है. उन्होंने कहा कि आज देश में बिजली उत्पादन और कनेक्टिविटी के मामले में मजबूत स्थिति है और बिजली कटौती अनुपलब्धता की वजह से नहीं, बल्कि किसी स्थानीय कारण की वजह से होती है. विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए भाजपा के जगदंबिका पाल ने कहा कि दुनिया में बढ़ते कार्बन उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन पर चिंता के कारण यह विधेयक लाया गया है जो अन्य देशों की तुलना में अच्छी पहल है.
उन्होंने कहा कि कार्बन उत्सर्जन में ज्यादा योगदान अमेरिका, यूरोपीय देशों और चीन आदि का है लेकिन इसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केवल देश की नहीं पूरी दुनिया में पर्यावरण की चिंता कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि विधेयक को संशोधित किया जा रहा है ताकि परिवहन के साधन स्वच्छ ऊर्जा से संचालित हों और हरित अवसंरचना बनाई जाए. उन्होंने कहा कि इस विधेयक से राज्य ऊर्जा संरक्षण निधि का सृजन भी किया जाएगा. चर्चा में भाग लेते हुए तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा ने विधेयक को अच्छा बताया लेकिन सरकार पर खबरों में बने रहने के लिए महत्वपूर्ण चीजों की अनदेखी करने का तंज भी कसा.
उन्होंने कहा, 'विधेयक अच्छा है और सही दिशा में उठाया जा रहा कदम है. लेकिन इस सरकार की महत्वपूर्ण चीजों की अनदेखी करने की अजीबोगरीब आदत है और उसका ध्यान आने वाली सुर्खियों की ओर रहता है. इसलिए जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की जगह डीपी पर जोर दिया जा रहा है जिसमें 'जी' को भुला दिया गया. लेकिन ऊर्जा संरक्षण में ऐसा नहीं होना चाहिए.' उनका इशारा संभवत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देश की जनता से सोशल मीडिया डीपी पर तिरंगा लगाने की अपील की ओर था.
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सौर ऊर्जा उत्पादन के साथ ही इसके संग्रहण पर जोर देना चाहिए और इस बाबत स्थानीय बैटरी विनिर्माताओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में सूरज निकलने और अस्त होने के अलग-अलग समय और लोगों को बिजली की अधिक जरूरत वाले समय की भिन्नता पर ध्यान देने की अपील सरकार से की. मोइत्रा ने कहा कि सरकार को पांच स्टार वाले एयर कंडीशनर के विनिर्माण पर और उपभोक्ताओं द्वारा इनके इस्तेमाल पर जोर देना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस विधेयक को देखें तो उद्योगों के लिए बड़ी चुनौती अक्षय ऊर्जा को लेकर नियामक रूपरेखा की है क्योंकि हर राज्य में इस लिहाज से मानक बदलते रहते हैं.

etv bharat hindi


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