सरकार आज तक NGT की सिफारिशें नहीं कर पाई लागू, ऊना में खनन पर लगाम जनता से 'धोखा'
गगरेट
आपने हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और वाली कहावत तो सुनी होगी। यही कहावत इन दिनों जिला ऊना में खनन को लेकर चरितार्थ हो रही है। क्या वास्तव में प्रदेश में निजाम बदलते ही शासन व प्रशासन अवैध खनन पर पूर्णतया प्रतिबंध लगाने के लिए प्रतिबद्ध है या फिर निशाना कुछ और ही है, जहां नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की सिफारिशें दरकिनार कर दी गईं। ओवरलोडिंग की जांच के लिए सरकार द्वारा स्थापित किए गए भारसेतु अरसे से खराब हैं, जहां कई ऐसे रास्ते है जिन पर कोई निगरानी नहीं है। ऐसे में अवैध खनन पर पूर्णतया प्रतिबंध कौन और कैसे लगाएगा। कहीं फिर से जनता की आंखों में रेत झोंकने की साजिश तो नहीं रची जा रही है। जाहिर है कि अगर सरकार की मंशा वास्तव में अवैध खनन पर लगाम कसने की है, तो फिर सरकार को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की सिफारिशें लागू करने से किसने रोका है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की आई फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा था कि सोमभद्रा नदी में मेकेनाइज्ड माइनिंग की जा रही है और कई जगह तो एक-एक मीटर से भी ज्यादा माइनिंग हुई है। इससे 922 करोड़ रुपए की तटीकरण योजना को खतरा पैदा हो गया है, तो वहीं ओवरलोडिड मोडिफाइड टिप्परों की आवाजाही से कई जगह पुलों व सडक़ों को भी खतरा पैदा हुआ है। अवैज्ञानिक खनन का ही असर है कि झलेड़ा पुल के पिल्लर तक जर्जर हो गए, जिससे पुल को ही खतरा पैदा हो गया। अगर सरकार वास्तव में अवैध खनन को लेकर गंभीर होती, तो पंजाब को खनन सामग्री भेजने पर तत्काल रोक लगाती लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो सका। अब सत्तारूढ़ दल के नेता अगर अपनी ही सरकार से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की सिफारिशें ही लागू नहीं करवा सकते और रात के अंधेरे में खुद खनन पर लगाम कसने के लिए निकलें तो इससे वह अल्पकालीन वाहवाही तो लूट सकते हैं लेकिन इससे न तो पर्यावरण का भला होगा और न ही सोमभद्रा नदी का। पुलिस प्रशासन के होते हुए कैसे ओवरलोड टिप्पर पंजाब की सीमा क्रॉस कर जाते हैं। (एचडीएम)