नाहन, 24 जनवरी : डॉ. वाईएस परमार मेडिकल कॉलेज (Dr. Y.S Parmar Medical College) में जच्चा-बच्चा को दुर्गति का सामना करना पड़ता है। लाजमी तौर पर आपके जेहन में एक सवाल उठ रहा होगा ऐसा क्या…? हालांकि ऐसा लंबे अरसे से हो रहा है, लेकिन इस बार एक वीडियो ने मेडिकल कॉलेज की व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है।
खुले आसमान के नीचे स्ट्रेचर पर जच्चा- बच्चा को ले जाते परिजन
यकीन मानिए, मेडिकल कॉलेज के ठीक सामने करीब 20 से 25 मीटर की दूरी पर प्रसूति वार्ड है। लेकिन प्रसूति के बाद जच्चा-बच्चा को स्ट्रेचर पर डालकर प्रसूति कक्ष (Maternity Ward) तक पहुंचाया जाता है। यह दूरी 400 से 500 मीटर की होती है, इसमें जच्चा- बच्चा को न केवल उतराई में डर का सामना करना पड़ता है। बल्कि खुले आसमान के नीचे स्ट्रेचर पर ले जाया जाता है। मामूली चूक पर हादसे की आशंका भी रहती है। इसके अलावा नवजात शिशु को संक्रमण का खतरा भी बना रहता है।
डिलीवरी के बाद तीमारदारों की सबसे बड़ी चिंता यह होती है कि जच्चा-बच्चा को प्रसूति कक्ष (maternity ward) तक कैसे पहुंचाया जाए। इसके लिए छह से सात लोगों का इंतजाम भी करना पड़ता है। क्योंकि खुले आसमान के नीचे स्ट्रेचर के फिसलने का सीधा मतलब जच्चा-बच्चा का जीवन खतरे में पड़ेगा। अहम बात यह भी है कि बारिश के समय डिलीवरी के बाद खुले आसमान के नीचे महिला को नवजात शिशु के साथ वार्ड तक पहुंचाना बेहद कठिन हो जाता है।
बड़ा सवाल यह उठता है कि ऑपरेशन थिएटर से प्रसूति कक्ष तक मात्र 25 मीटर के रास्ते को ठीक करने की जहमत मेडिकल कॉलेज प्रशासन व प्रबंधन क्यों नहीं कर पा रहा है। हालांकि मेडिकल कॉलेज के सुरक्षाकर्मी ऐसी परिस्थिति में तीमारदारों की मदद को तैयार रहते है। लेकिन कई मर्तबा सुरक्षाकर्मियों के उपलब्ध न होने की स्थिति में तीमारदारों के माथे पर पसीना आ जाता है।
गौरतलब है कि मेडिकल कॉलेज में गायनी की ओपीडी सबसे अधिक है। विशेषज्ञों पर भी अतिरिक्त दबाव रहता है। करोड़ों रुपए की लागत से डॉ. वाईएस परमार मेडिकल कॉलेज के भवन का निर्माण कार्य सालों से चल रहा है, लेकिन मौजूदा में हालात बद से बदतर बन गई है। सवाल यह भी उठता है कि मुख्य गेट के साथ प्रशासनिक कार्यालय को दूसरी जगह शिफ्ट करने के बाद इस स्थान पर गायनी वार्ड या ओपीडी को क्यों नहीं बनाया जा सकता।
गौरतलब है कि मेडिकल कॉलेज में अधिकारियों के कार्यालय प्राइम जगह पर स्थित है, जबकि मरीजों को धरातल पर धक्के खाने पड़ते है। उल्लेखनीय है कि पुराने अस्पताल के ओपीडी परिसर की सबसे ऊपरी मंजिल को इस समय मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य सहित अन्य स्टाफ के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। जबकि इस जगह पर मरीजों की सुविधाओं की दिशा में कदम उठाए जा सकते है।
उल्लेखनीय यह भी है कि कैजुएलिटी से भी मरीजों को वार्ड तक पहुंचाने के लिए खुले आसमान के नीचे स्ट्रेचर पर खड़ी उतराई में ले जाना पड़ता है। उधर, मेडिकल कॉलेज के एमएस डॉ बलराज धीमान से संपर्क नहीं हो पाया,पक्ष मिलने की सूरत में प्रकाशित किया जाएगा।
उम्मीद की जा रही है कि नवनिर्वाचित विधायक अजय सोलंकी जल्द ही अस्पताल परिसर का जायजा लेकर उचित दिशा निर्देश जारी करेंगे।