प्रतिभा के लिए ना किसी डिग्री की और ना ही उम्र की जरूरत , 12 साल के बच्चे ने कचरे से बनाया JCB

किसी ने ठीक ही कहा है कि ‘हुनर किसी का मोहताज नहीं होता’. प्रतिभा के लिए ना किसी डिग्री की और ना ही उम्र की जरूरत होती है

Update: 2022-07-05 10:07 GMT

किसी ने ठीक ही कहा है कि 'हुनर किसी का मोहताज नहीं होता'. प्रतिभा के लिए ना किसी डिग्री की और ना ही उम्र की जरूरत होती है. इन्हीं बातों को चरितार्थ कर दिखाया है कपकोट के दूरस्थ और दुर्गम गांव में रहने वाले 12 साल के हरीश कोरंगा ने. हरीश का गांव आज भी फोन नेटवर्क कवरेज से बाहर है. सीमित संसाधनों में जिंदगी गुजर-बसर कर रहे हरीश को बचपन से ही जो हाथ लगे उसी से जोड़-तोड़ करके तकनीक सीखने की आदत है. जब भी घर वाले उसे खिलौने दिलाते हैं, वह उसकी तकनीक को जानने के लिए उत्सुक रहता है.

हरीश के पिता कुंदन कोरंगा जेसीबी ऑपरेटर हैं. हरीश कई बार पिता के साथ जेसीबी देखने गया और अपनी जिज्ञासा से जेसीबी की तकनीकी पर काम किया. इसके बाद कुछ ही समय में उसने घरेलू सामग्री, बेकार मेडिकल इंजेक्शन, कॉपियों के गत्ते, पेटी, आइसक्रीम की डंडियों से हाइड्रोलिक पद्धति पर आधारित ऐसी जेसीबी मशीन बना दी कि देखने वाला हर व्यक्ति दांतों तले उंगलिया दबाने को विवश हो गया.
बागेश्वर के दूरस्थ क्षेत्र स्थित भनार के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले सातवीं कक्षा के विद्यार्थी का हुनर देख लोग दंग रह गए. हरीश की प्रतिभा को देखकर लोग उसकी पीठ थपथपा रहे हैं. रद्दी सामान से बनाई गई जेसीबी अन्य विद्यार्थियों के लिए भी एक सीख बनी हुई है.
हरीश के पिता कुंदन बताते हैं कि हरीश को घर में जो भी सामान मिलता है, उसको वह खोलकर बैठ जाता है. अपनी इसी आदत के चलते वह कई बार विद्युत उपकरणों से छेड़छाड़ करते हुए हल्के फुल्के करंट के झटके भी खा चुका है. उसके बाद हरीश की खूब पिटाई भी हुई.
इधर हरीश के जेसीबी का वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर भी काफ़ी वायरल हो रहा है. हरीश ने बताया कि वह बचपन से ही तकनीकी में रूचि रखता है. पिता को जेसीबी चलाता देख जेसीबी में उसकी भी दिलचस्पी बढ़ी. वह बताता है कि घरेलू सामग्री की मदद से ही उसने हाइड्रोलिक ट्रिक पर वैसी ही जेसीबी बनाने की कल्पना की. हरीश बताता है कि इस दौरान उसकी कोशिशें कई बार फेल भी हुई, लेकिन उसने हार नहीं मानी और लगातार कोशिशों के बाद उसने आखिरकार यह जेसीबी बना ही ली.
हरीश की विशेषता जेसीबी तक ही सीमित नहीं है. इससे पहले वह हेलीकॉप्टर बनाकर उड़ा चुका है और अन्य तकनीकी खिलौने बना चुका है. पहाड़ में होनहारों की कमी नहीं है, बस जरूरत प्रतिभा को निखारकर नए मंच पर लाने की है. डिजिटलीकरण के दौर में भी हरीश का गांव संचार सुविधा से वंचित है. इस गांव में मोबाइल फोन पर बात करना एक सपने जैसा है.
यूट्यूबर लक्ष्मण कोरंगा हरीश की तारीफ करते हुए कहते हैं, 'पहाड़ के दुर्गम क्षेत्रों में रहकर पढ़ाई-लिखाई करने वाले बच्चों में प्रतिभा की कमी नहीं है. उन्हें सही मार्गदर्शन से निखारने की जरूरत है. हरीश के छोटे-छोटे हाथों से जेसीबी मशीन को ऑपरेट करते देखना एक अचम्भा लगता है. मैंने ही हरीश की एक वीडियो सोशल मीडिया में शेयर की।जिससे लोग काफ़ी पसंद कर रहे हैं और हरीश को शाबासी दे रहे हैं.'
भनार के ग्राम प्रधान भूपाल राम कहते हैं, 'आज के इस डिजिटल युग में भी हमारे गांव में मोबाइल नेटवर्क नहीं हैं. आज भी हम कम्युनिकेशन से कोसो दूर हैं. हरीश जैसे बच्चे की प्रतिभा को सरकार और प्रशासन द्वारा सहाराना मिलनी चाहिए, जिसने कचरे से जेसीबी बना डाली.'


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