हरियाणा की भाजपा सरकार में साझीदार जननायक जनता पार्टी के लिए 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में खुद को साबित करने की बड़ी चुनौती होगी। सत्ता के गठबंधन में होने के बावजूद जिस तरह भाजपा खुद के बूते लोकसभा और विधानसभा चुनाव की तैयारी करने में व्यस्त है, उसी तरह जननायक जनता पार्टी भी बिना किसी देरी के चुनावी हिसाब-किताब लगाने में जुट गई है।
चुनाव के दौरान भाजपा व जजपा के बीच गठबंधन होगा या नहीं, यह भविष्य की बात है, लेकिन कोई भी दल अपनी तैयारियों में कमी नहीं छोड़ रहा है। इस कड़ी में गुरुग्राम में दो दिन तक मंथन कर जजपा के रणनीतिकारों ने अकेले ही चुनावी रण में कूदने के संकेत दिए हैं।
भाजपा की पंचकूला में हुई प्रांतीय परिषद की बैठक में लोकसभा और विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने का निर्णय लिया जा चुका है। उसके बाद शहरी निकाय चुनाव हुए। भाजपा ने इन निकाय चुनाव में भी अकेले ही उतरने का मन बनाया था, लेकिन कांग्रेस द्वारा मैदान छोड़ देने के बाद भाजपा व जजपा को मजबूरी में गठबंधन करना पड़ा।
भाजपा की इस मजबूरी को भांपते हुए अब जजपा भी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। जजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि सत्ता में दोनों दलों का गठबंधन है, यह अलग बात है, लेकिन लोकसभा और विधानसभा चुनाव में यह गठबंधन बरकरार रह पाएगा, इसकी कोई गारंटी अभी से नहीं दी जा सकती। ऐसे में जजपा को खुद के बूते ही अपने चुनाव की तैयारी में उतरना होगा।
भाजपा की तरह जजपा ने गुरुग्राम में पार्टी के संवाद कार्यक्रम के दौरान अकेले चुनाव लड़ने का संकेत देकर अपनी टीम को सक्रिय कर दिया है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजय सिंह चौटाला और संरक्षक के नाते उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने करीब छह घंटे तक प्रमुख लोगों से चुनाव की तैयारियों पर फीडबैक लिया।
2019 का लोकसभा चुनाव जजपा ने आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर लड़ा था। तब अंबाला, करनाल और रोहतक लोकसभा सीटें आम आदमी पार्टी के खाते में चली गई थी, जबकि सोनीपत, कुरुक्षेत्र, सिरसा, भिवानी-महेंद्रगढ़, गुरुग्राम, रोहतक और हिसार सीटें जजपा के खाते में आई थी।
सोनीपत में जजपा महासचिव दिग्विजय सिंह चौटाला ने चुनाव लड़ा था, जबकि हिसार में दुष्यंत चौटाला स्वयं लड़े थे, लेकिन पार्टी एक भी लोकसभा चुनाव नहीं जीत पाई थी। लोकसभा चुनाव का रिजल्ट भले ही संतोषजनक नहीं रहा, लेकिन विधानसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी किंगमेकर की भूमिका में उभकर सामने आई थी। तब जजपा ने 10 विधानसभा सीटें जीती थी।
उस समय दुष्यंत चौटाला ने भाजपा, कांग्रेस और इनेलो के अधिकतर असंतुष्ट नेताओं को टिकट दिए थे, जिस कारण जजपा 10 सीटों तक पहुंच पाई थी। इन्हीं 10 विधायकों के बूते दुष्यंत चौटाला भाजपा सरकार में साझीदार बने हुए हैं। इसके बावजूद आज स्थिति थोड़ा विपरीत है।
जजपा के 10 में से पांच विधायक पार्टी से नाराज चल रहे हैं। जजपा कोटे से पंचायत मंत्री बने देवेंद्र बबली पर पूरी तरह से मुख्यमंत्री मनोहर लाल का रंग चढ़ा हुआ है। भाजपा की जाट लीडरशिप भी दुष्यंत को पसंद नहीं करती। ऐसे में उन्हें खुद को साबित करना जरूरी हो गया है।
2024 के चुनाव नतीजों से तय होगा दुष्यंत का राजनीतिक कद
नारनौंद के विधायक रामकुमार गौतम, गुहला चीका के विधायक चौधरी ईश्वर सिंह और नरवाना के विधायक रामनिवास सुरजाखेड़ा भी अपनी पार्टी से नाराज चल रहे हैं। बरवाला के विधायक जोगी राम सिहाग पूर्व में नाराज होकर मान चुके हैं। इन सबकी नाराजगी की अलग-अलग वजह हैं। ऐसे में जजपा के सामने इन विधायकों की नाराजगी को दूर करने के साथ ही 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में खुद को साबित करने और सत्ता में बने रहने के लिए अच्छे प्रदर्शन की बड़ी चुनौती है।
फिलहाल चूंकि जजपा को पूरे पांच साल काम करने और सरकार में रहने का मौका मिल रहा है तो ऐसे में उसके पास लोगों के बीच जाकर अपनी बात कहने और उनकी बात सुनने का पर्याप्त समय भी मिल गया है। जजपा का प्रदर्शन बढ़िया रहा तो 2024 की परिस्थितियों के हिसाब से दुष्यंत प्रदेश की राजनीति में अपनी अलग दिशा तय कर सकते हैं।