गोवा के पहले 'कुनकोलिम विद्रोह' को कक्षा 11 की पाठ्य पुस्तकों में मिली जगह
पणजी (आईएएनएस)। 1583 का कुनकोलिम विद्रोह पुर्तगाली औपनिवेशिक शासन के खिलाफ गोवा का पहला विद्रोह माना जाता है। यह किसी विदेशी शासन के खिलाफ एशिया में भी पहला विद्रोह है। इसके कारण तटीय राज्य के लोगों को लगता है कि इसे राष्ट्रीय महत्व मिलना चाहिए।
इस विद्रोह में ग्रामीणों ने रोमन कैथोलिक पादरियों और उनके सशस्त्र अनुरक्षकों की हत्या कर दी थी, जो स्थानीय लोगों का धर्म परिवर्तन करा रहे थे और क्षेत्र में हिंदू मंदिरों को अपवित्र कर रहे थे।
विद्रोह में मारे गए लोगों में से एक यूरोपीय जेसुइट पुजारी रोडोल्फो एक्वाविवा भी थे, जो गोवा में तैनात होने से ठीक पहले मुगल सम्राट अकबर के दरबार में थेे।
इस नरसंहार का पुर्तगालियों ने तीव्र प्रतिशोध लिया, जिन्होंने शांतिपूर्ण बातचीत के लिए कुनकोलिम और आस-पास के गांवों अंबेलिम, असोलना, वेरोडा और वेलिम के लगभग 16 ग्राम प्रधानों को बुलाया और उनकी हत्या कर दी उनमें एक प्रधान किसी तरह उस नरसंहार से बच गया। वह नदी में कूदकर कारवार (जो अब वर्तमान कर्नाटक है) में पहुंच गया। जहां उसने शरण ली।
15 जुलाई को कुनकोलिम विद्रोह हुआ था। इसी दिन नई दिल्ली में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है।
गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कहा था कि हर साल, राज्य सरकार का एक प्रतिनिधि उस दिन स्मारक पर श्रद्धांजलि देने के लिए राष्ट्रीय राजधानी जाएगा।
आईएएनएस से बात करते हुए, कुनकोलिम चीफटेन्स मेमोरियल कमेटी के अध्यक्ष ऑस्कर मार्टिंस ने कहा कि पुर्तगालियों द्वारा लोगों का जबरन धर्म परिवर्तन कराना गलत था।
उन्होंने कहा, "लोगों ने कई वर्षों तक उनके (पुर्तगाली) एजेंडे के खिलाफ लड़ाई लड़ी और आखिरकार एक दिन हमें परिणाम मिला। 450 वर्षों तक पुर्तगालियों ने जो भी अत्याचार किए वे बहुत गलत थे।"
उन्होंने आगे कहा, ''हमें इस 'विद्रोह' पर गर्व है जिसने हमारे सम्मान और हमारी भूमि की रक्षा की। मुझे खुशी है कि इसे स्कूली शिक्षा की इतिहास की किताबों में जगह मिली है।'' उन्होंने कहा कि लोगों ने अन्याय और अत्याचार के खिलाफ लड़ने के लिए एक मिसाल कायम की।
मार्टिंस के अनुसार, यह पुर्तगालियों के विरुद्ध पहला विद्रोह था जो व्यापक महत्व रखता है।
कुनकोलिम में रहने वाले शिक्षक विजयकुमार कोपरे ने विद्रोह को सभी के लिए गर्व का क्षण बताया क्योंकि यह किसी भी विदेशी शासन के खिलाफ पहला विद्रोह था।
कोपरे ने कहा, "पुर्तगालियों ने धर्मांतरण और अपनी शक्ति का इस्तेमाल करके हम पर शासन करने की कोशिश की। लेकिन कुनकोलिम के एकजुट लोगों ने उनके खिलाफ लड़ाई लड़ी। यह एक दिन की लड़ाई नहीं थी, बल्कि उन्होंने हमारी भूमि और हितों की रक्षा के लिए कई वर्षों तक लड़ाई लड़ी।"
उन्होंने कहा, "इस विद्रोह को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिलनी चाहिए क्योंकि यह पूरे एशिया में इस तरह का पहला विद्रोह है। हिंदू और कैथोलिकों ने एकजुट होकर उनके खिलाफ लड़ाई लड़ी। आज तक हमारे पास वह एकता है। इसलिए यह हमारे लिए गर्व का क्षण है।"
कुनकोलिम विद्रोह को इस शैक्षणिक वर्ष से कक्षा 11 की इतिहास की पुस्तक में शामिल किया गया है।
गोवा बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एंड हायर सेकेंडरी एजुकेशन के चेयरपर्सन भागीरथ शेट्टी के मुताबिक, करीब 20 लोगों की टीम इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी।
शेट्टी ने कहा, "इस पाठ्य पुस्तक में कुनकोलिम विद्रोह पर पाठ लगभग दो पृष्ठों का है। इसे विस्तार से दिया गया है। इस साल हमने इसे कक्षा 11 में पेश किया है, जबकि अगले साल बुनियादी पाठ कक्षा 9 में शामिल किया जाएगा।" शेट्टी ने कहा, गोवा विश्वविद्यालय के तीन विद्वान भी इस परियोजना में शामिल थे।
इस विद्रोह के इतिहास को पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए पिछले दो दशकों से लोग राज्य के हर मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंप रहे थे।
पुरालेख और पुरातत्व मंत्री सुभाष फाल देसाई ने कहा कि औपनिवेशिक शासन के खिलाफ कुनकोलिम के ग्राम प्रधानाें के विद्रोह का गोवा के इतिहास में बहुत महत्व है क्योंकि इस आंदोलन ने मूल निवासियों के बीच विदेशी शासन के खिलाफ विद्रोह करने की इच्छा जगाई थी।
उन्होंने कहा, “कुनकोलिम विद्रोह को आक्रमणकारियों द्वारा संस्कृति और परंपरा के दमन के खिलाफ स्थानीय लोगों के पहले विद्रोह के रूप में भी पहचाना जा सकता है। कुनकोलिम विद्रोह के इतिहास को आने वाली पीढ़ियों के लिए संजोकर रखना होगा, इसलिए कुनकोलिम विद्रोह पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं।''