...रोशन साहू ( मोखला )
// तेरा देश बुलाती ...//
जिन गलियों में खेले कूदे, याद बहुत आती है।
बूढ़े बरगद याद न जाती,आंखें नम हो जाती है।।
बेगानों में नित अपने ढूंढें,अपनों के सपने न टूटे।
सच करने अपनों के सपनें, खुद के टूट जाती है।।
चलते-चलते पांवों में,मिट्टी के निशाँ मिट जाती है।
पांव सने धूल भी तो ,तितली बन उड़ जाती है।।
वतन की याद मन में लिए,मर-मर कर जी रहे ।
आंखों से दूर दिल से दूर,सुन आंखें भर आती है।।
बूंद भी न किंचित हाथों में ,नीचे टपक जाती है।
बहुमंजिला में माटी की खुशबू न पहुँच पाती है।।
कहता था तारे देख-देख,नींद मुझे आ जाती माँ।
पांव नीचे जगमग तारे,अब सारी रात जगाती है।।
सदा शिकायत रही तू क्यों,सुबह चहचहाती है ।
कलरव कोलाहल लगता जिसे,सकोरा रख आती है।।
मेरे देश से कोई पंछी आये,दाना पानी चुग जाये।
गौरैया देती मुझे संदेशा,तेरा देश तुझे बुलाती है।।