रायपुर। राष्ट्रीय संत श्री ललितप्रभ जी महाराज साहब ने कहा कि यह न सोचें कि कितने दिन जिएँ, बल्कि यह सोचें कि कैसे जिएँ। खुशियों भरा एक लम्हा भी खज़ाने जैसा लगता है, पर गम भरा एक साल भी अंधेरी गुफा में भटकने जैसा लगता है। जिदगी जीने का मकसद खास होना चाहिए, अपने आप पर हमें विश्वास होना चाहिए। जीवन में खुशियों की कमी नहीं है, बस, उन्हें मनाने का सही अंदाज होना चाहिए। हर समय इतने व्यस्त रहिए कि चिंता करने की फुर्सत ही न मिले। विश्वास रखिए : जो चोंच देता है वह चुग्गा अवश्य देता है।
आप प्रसन्न रहेंगे, तो आप अपने लोगों को भी प्रसन्न करने में कामयाब हो जाएँगे। उदास रहेंगे तो सारा माहौल गमगीन होने लग जाएगा।
संत प्रवर शुक्रवार को सकल जैन समाज पश्चिम द्वारा समता चौबे कॉलोनी स्थित मेक कॉलेज आॅडिटोरियम में आयोजित तीन दिवसीय प्रवचन माला के श्री गणेश पर सैकड़ों श्रद्धालु भाई बहनों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हार और जीत का सम्बन्ध हमारी सोच पर है, मान लिया तो हार होगी और ठान लिया तो जीत।
कोई आपके खिलाफ दो टेढ़े शब्द बोले तो बुरा न मानें, क्योंकि पत्थर उक्सर उसी पेड़ पर मारे जाते हैं, जिस पर मीठे फल लदे होते हैं। आप जब भी बोलें, धीमें और धैर्य से बोलें, आपकी वाणी औरों के दिलों में प्यार और जिज्ञासा का झरना बहाएगी। शीशा और रिश्ता दोनों एक जैसे होते हैं। पत्थर मारने से शीशा टूटता है और टेढ़ा बोलने से रिश्ता। अदब से बोलिए और सम्हलकर चलिए, शीशा और रिश्ता दोनों सुरक्षित रहेंगे।
उन्होंने कहा कि पत्थर मारने से सिर फूटता है और लाठी मारने से कमर टूटती है, पर टेढ़ा शब्द बोलने से दिल भी टूटता है और रिश्ता भी।गलती सबसे होती है और गुस्सा सबको आता है, फिर बुरा मानने की बजाय क्यों न शांति और सुधार की किरण तलाशी जाए। लोग बड़े विचित्र होते हैं : खुद से गलती हो जाए तो समझौता चाहते हैं वहीं दूसरों से गलती हो जाए तो इंसाफ की माँग करते हैं। सुधार तब होगा जब हम दोनों के लिए इंसाफ चाहें।
मन में दूषित विचार की लहर उठे तो तत्काल उसकी दिशा बदल दीजिए। अगर ये लहरें सुनामी का रूप ले बैठी तो जीवन का जहाज ही डूब जाएगा।
उन्होंने कहा कि स्वर्ग के रास्ते पर कदम बढ़ाने के लिए अपना स्वभाव अच्छा बनाइये। गंदे स्वभाव से देवता तो क्या, आपके पड़ौसी भी नफरत करते हैं। ईश्वर का अनुग्रह पाने के लिए निष्पाप रहिए और निष्पाप होने के लिए सरलता को सीढ़ी बना लीजिए। स्वर्ग के राज्य में आखिर बच्चे बनकर ही प्रवेश पाया जा सकता है। किसी पर झल्लाने की बजाय उसे काम करने की तहजीब सिखाएँ। डाँटना तभी चाहिए जब कोई एक ही गलती को तीन बार दोहरा बैठे।
उन्होंने कहा कि चिंता और उत्तेजना की आग का त्याग कीजिए। आखिर किसी भी जलती डाल पर शांति की चिडिय़ा नहीं बैठा करती। अवसाद से बचने की सर्वेश्रेष्ठ औषधि है — 'हर समय प्रसन्न रहिए। चाहे जैसे हालात हो जाएँ, अपनी प्रसन्नता को किसी के पास गिरवी मत रखिए। भाई-भाई के बीच मनमुटाव और स्वार्थ-भावना का त्याग कीजिए, नहीं तो आपका घर नरक बन जाएगा। भाई के प्रति प्रेम और त्याग की भावना अपनाइए, घर का स्वर्ग सुरक्षित रहेगा। कृपया धीरज रखिए। हमारा सिर माचिस की तीली नहीं है कि छोटी-सी रगड़ लगे और देखते-ही-देखते आग बबूला हो उठे। सात दिन के लिए अपने चिड़चिड़ेपन का त्याग कीजिए और फिर देखिये कि आपका आदर पहले से कितना बढ़ा है। याद रखिए -
कर्म तेरे अच्छे हैं तो किस्मत तेरी दासी।
नीयत तेरी साफ है तो घर में मथुरा-काशी॥