सहरसा। शारदीय नवरात्रि के अवसर पर गांधी पथ स्थित संतमत सत्संग मंदिर मे सप्तदिवसीय ध्यान-साधना शिविर का आयोजन किया गया है।जिसमे प्रत्येक दिन एक एक घंटा का पांच पाली मे समाहूकि ध्यानाभ्यास किया जाता है।जिसके अंतर्गत दो पाली मे सत्संग-प्रवचन तथा संध्याकाल भजन कीर्तन कार्यक्रम होता है। इस ध्यानभ्यास कार्यक्रम के दूसरे दिन मंगलवार को द्वितीय पाली मे भागलपुर से आए हुए स्वामी भगवतानंद जी महराज ने प्रवचन में कहा की संतो ने जो ज्ञान दिया है उसका छोर पकड़ लिया है तो वह कभी न कभी खत्म होगा। योग के आरम्भ का नाश नहीं होता। इसलिए सभी दिन सत्संग कीजिए, कभी नहीं भूलिये।जिस भेद से ईश्वर की प्राप्ति होती है। ईश्वर दर्शन होता है, उसमें दिन रात लगे रहो। घमंड नहीं करो, सहज से रहो, स्वल्प भोगी बनो,कम सोना, तौल कर बोलना, सभी कामों में उनको तौल रहता है।बाहर कुआं में पानी मिलता है और अंदर के कुआं में अमृत मिलता है। यह बनाबटी बात नहीं है,असली बात है।जो स्वयं ख्याली पोलाव बनाता है।
वह दूसरे को भी वैसा ही समझता है। तीन अवस्था के ऊपर जाकर रहो तो इस संसार को स्वप्नवत समझोगे। उन्होने कहा कि लोग संसार को बौद्धिक स्वप्न समझते हैं प्रत्यक्ष नहीं। प्रत्यक्ष देखने के लिए तीन अवस्थाओं को पार करो। इसके लिए ज्ञानवान के समीप जाकर ज्ञान प्राप्त करो।वह रास्ता चाकू छूरे के धार के समान है। चाकू छूरे के धार को सुनकर डर लगता है।इसके धार पर मन-चेतन चलता है।इसको काट नहीं सकता। स्वामी महेशानंद जी महराज ने कहा कि गुरु महाराज ने जो रास्ता बताया है उसका छोर पकड़ा हूं। संत-वचन अमृत-वचन है।इसके सहारे बिना अमृत पद को कौन पा सकता है? परमात्मा बुद्धि के परे हैं। इसलिए बुद्धि में ही बंधे नहीं रहो। इसका मतलब यह नहीं कि अंधविश्वासी बन जाओ।कई संतों के वचन पढ़ने का अर्थ यह है कि सभी संतो की वाणियों को पढ़ने से संतों का एक मेल मालूम होता है। ग्रंथों को पढ़कर समय टाला नहीं जाता। कुछ काल लाख वर्ष भी हो सकता है। कोई पूछे कि लाख वर्ष शरीर रहेगा।तो मैं कहूंगा शरीर नहीं रहेगा, आप तो रहेंगे। कपड़ा फटता है, शरीर रहता है। इसी तरह शरीर छूटता है और आप रहते हैं।संतों ने जो ज्ञान दिया है, उसका छोर पकड़ लिया है, कभी-न-कभी खत्म होगा। योग के आरंभ का नाश नहीं होता। सभी दिन सत्संग कीजिए, कभी नहीं भूलिये।