सीएम नीतीश कुमार से अलग राह पर राजद; जातियों की आबादी जानने की दोनों दलों के पास वजह
बिहार में क्या खेला होने वाला है? या, खेला हो चुका है? होने वाला है तो सत्तारूढ़ महागठबंधन की दोनों प्रमुख पार्टियों राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और जनता दल यूनाईटेड (JDU) के बीच होगा। और, अगर खेला हो चुका है तो जनता के साथ। दो में से एक बात तो है। क्योंकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातियों की आबादी जानने के पीछे कुछ और उद्देश्य बताया था और राजद ने औपचारिक तौर पर इसकी वजह दूसरी बता दी है। मुख्यमंत्री के लक्ष्य से अलग राजद ने जो वजह बताई है, उसके बाद अब दो ही बातें हो सकती हैं- 1. दोनों दलों का लक्ष्य एक हो, लेकिन जदयू ने छिपा लिया और राजद ने बता दिया, 2. मुख्यमंत्री की मंशा दूसरी हो और राजद ने अपनी मंशा अब जाहिर की हो। दोनों में से जो भी बात हो, बात निकली है तो दूर तक जाएगी- यह तय है।
अब बहस नाम पर नहीं, उद्देश्य पर होगी
पूरी आबादी की गणना होने के कारण इसे जाति आधारित जनगणना कहा गया। राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव तक ने इसे जातीय जनगणना कहा। जबकि, सरकार ने इसे मुख्य दस्तावेजों में जाति आधारित सर्वे कहा। हाईकोर्ट में भी यही दलील दी गई। इसी दलील को नहीं मानते हुए अंतरिम आदेश के तहत जाति आधारित जन-गणना पर रोक लगाई गई थी। फिर इस दलील से अलग हाईकोर्ट ने सरकार की बातों से सहमत होकर आबादी की जाति जानने की सरकारी योजना को अंतिम तौर पर हरी झंडी दिखा दी। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और अब कई तारीखों के बाद 28 अगस्त को अहम सुनवाई है। इससे ठीक एक दिन पहले राजद के मुख्य प्रवक्ता ने आबादी की जाति जानने का उद्देश्य अलग बता दिया। मतलब, अब बहस नाम पर नहीं होनी चाहिए। होगी भी नहीं। होगी तो उद्देश्य पर।
मुख्यमंत्री बताते रहे हैं सरकार का लक्ष्य
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातियों की आबादी जानने की वजह एक बार नहीं, कई बार बताई है। उन्होंने हर बार एक ही बात कही है कि जातियों की वास्तविक आबादी जानने के बाद उसी हिसाब से कल्याणकारी योजनाएं बनाई जाएंगी। किस जाति को आर्थिक रूप से किस तरह की जरूरत है या उसे कैसे आगे बढ़ाया जा सकता है, यह उद्देश्य मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मई 2023 में गणना शुरू होने के पहले भी बताते रहे और बाद में भी। हाईकोर्ट से अंतरिम रोक के बाद भी और अंतिम फैसले में गणना को हरी झंडी मिलने के बाद भी नीतीश कुमार साफ तौर पर कहते रहे कि वास्तविक संख्या और स्थिति पता चलेगी तो योजनाएं उसी हिसाब से बनाई जाएंगी। इससे सभी जाति की जरूरतों का पता चलेगा और उसी मुताबिक सरकार योजना लाएगी।
और, राजद ने कहा- आरक्षण बढ़ाना होगा
रविवार को इस मामले में बड़ा उलटफेर हो गया। राष्ट्रीय जनता दल से राज्यसभा सांसद मनोज झा ने प्रेस कांफ्रेंस किया। साथ में प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह और पूर्व मंत्री श्याम रजक थे। राजद के मुख्य प्रवक्ता सांसद मनोज झा ने कहा- "मंडल कमीशन की जब रिपोर्ट आई तो इसका आधार 1931 की जातिगत जनगणना को बनाया गया। इसके आधार पर मंडल कमीशन 52 प्रतिशत यानी 3743 को चिह्नित की गई। इसमें 27 फीसदी को आरक्षण दिया गया। क्योंकि, 50 प्रतिशत को क्रॉस नहीं करना था। जब EWS (आर्थिक आधार पर आरक्षण) पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी आई तो यह लक्ष्यण रेखा काफूर हो गई। यानी, 50 प्रतिशत का बंधन खत्म हो चुका है। एक बहुत बड़ी आबादी को अब अपनी संख्या के अनुरूप फैसले चाहिए। आरक्षण की व्यवस्था चाहिए। इसके लिए एक वैज्ञानिक समकालीन आंकड़ा चाहिए। इसलिए, महागठबंधन की सरकार ने जातियों की आबादी जानने के लिए सर्वे कराया है।"
तो, क्या गलत उद्देश्य बताकर लिए गए आंकड़े
यह तो तय है कि आरक्षण प्रावधान की शुरुआत में ही इसके लिए समय-सीमा निर्धारित की गई थी। उसके बाद किसी सरकार ने इसे खत्म करने की हिम्मत नहीं दिखाई, क्योंकि ऐसा करने पर आरक्षित जातियों का वोट बैंक हाथ से निकल जाएगा। देश में बार-बार आरक्षण खत्म करने की बात उठती है और फिर उठाने वाले नेता के आसपास का ही कोई तत्काल डैमेज कंट्रोल करता है। ऐसे में, आरक्षण का दायरा बढ़ाने की बात छेड़कर राजद ने आगामी चुनावों को लेकर अपनी मंशा जाहिर कर दी है। लेकिन, अगर यह लक्ष्य महागठबंधन की पूरी सरकार में पहले से तय था तो इसे कभी पब्लिक डोमेन में नहीं लाने की क्या वजह हो सकती है? इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने के लिए बहुत दूर जाने की जरूरत नहीं। अगर सरकार पहले ही बता देती कि आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने के लिए जातियों की आबादी गिनी जा रही है तो बिहार की अगड़ी जातियां खुलकर विरोध करती। अभी भी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट की लड़ाई में अगड़ी जातियों के ही लोग मुखर हैं, यह सरकार के संज्ञान में है।
राजनीति पर क्या असर पड़ेगा, यह भी जानें
मतलब साफ है, दाल में कुछ-न-कुछ काला है या पूरी दाल काली है- यह जनता जानना चाहेगी। 28 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में यह बात पहुंचे या न पहुंचे, बिहार की आम आबादी चुनाव के समय इस बात को किनारे नहीं छोड़ेगी। पिछड़ी जाति राजद के इस लक्ष्य को जानकर उसके साथ जाने के लिए उतावली हो तो अचरज नहीं। अगर जदयू ने इस उद्देश्य को लेकर हामी भरी तो राजद का साथ भी बना रहेगा और आरक्षित जातियों से उसका रिश्ता भी कायम रहेगा। फैसला इन्हीं दोनों दलों को करना है। भाजपा शायद ही इसमें कूदे, क्योंकि उसे न तो अगड़ी जातियों से दुश्मनी मोल लेनी है और न 2024 के बड़े लक्ष्य के सामने पिछड़ी जातियों से पंगा लेना है।