अभाव और महंगाई की मार के बीच मिट्टी के दीये कलशा और चौमुख बनाने में जुटे कुंभकार
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मोतिहारी। दीपावली और सूर्योपासना के महापर्व छठ की तैयारी जोरों पर है।पर्व को लेकर बाजार में रौनक दिखने लगी है।रंग बिरंगे कपड़ों से लेकर मिठाई,आभूषणों के दुकान संजाये जाने लगे है।व्यवसायी अपने अपने प्रतिष्ठानो में धनतेरस की खरीददारी पर कई आकर्षक उपहार के साथ छूट देने की भी विशेष तैयारी की है।इलेक्ट्रिक दुकानो पर रंग बिरंगी लाइट भी बेचे जा रहे है।वही दूसरी ओर कुंभकार भी परंपरागत रूप से मिट्टी के दीये,कलशा,ढकना चौमुख,हाथी सहित लक्ष्मी गणेश पूजन और महापर्व छठ में प्रयुक्त होने वाली बर्त्तनों को मूर्त्त रूप देने मे जुटे है। घर में बज रहे छठ के गीतों के बीच कुंभकारों का चाक भी तेजी से नाच रहा है।इनके परिवार के महिला पुरूष व बच्चे सहित सभी सदस्य सुबह से लेकर देर रात तक दीप,कलश चौमुख,हाथी और खिलौने बना रहे हैं।कोई मिट्टी के बर्त्तन को साकार कर रहा है तो इसे सुखाने और पकाने में जुटा है।तो कोई इसे आकर्षक रंग से रंगने मे जुटे है।चायनीज दीयो के भरमार से निराश कुंभकारो के बच्चे भी इस काम में काफी उत्साह से भाग ले रहे है। जिले में तकरीबन 10 हजार से ज्यादा कुंभकारो का परिवार इस कार्य में दिन रात जुटे है लेकिन इस कार्य में जुटे कुंभकारो की बड़ी तादाद जिले के बंजरिया प्रखंड क्षेत्र के सिंघिया हीवन,चैलाहां व सिसवा अजगरी में है।जहां के लगभग तीस से ज्यादा परिवार इस कार्य में जुटे है।
यहां के चुल्हाई पंडित,जर्मन पंडित,ललन पंडित,अमेरिका पंडित,विनोद पंडित,बिहारी पंडित,बजरंगी पंडित,सुरेन्द्र पंडित,चंद्रिका पंडित,मनोज पंडित व बुधन पंडित सहित अन्य कुंभकारो ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि भले ही आज आधुनिकता के दौर में लोग कितना भी चायनीज बल्ब जलाये लेकिन बिना मिट्टी के दीप चौमुख कलशा और हाथी के दीपावली और छठ पर्व अधूरा है। इन लोगो ने बताया कि अब इस काम में पहले जैसा मुनाफा नही है।फिर भी परंपरा के अनुरूप हम सब इस कार्य मे लगे है।चुल्हाई पंडित ने बताया कि मिट्टी पर भी महंगाई की मार पड़ी है।पहले पांच से छ:सौ रूपये मे ट्रेलर मिट्टी मिल जाता था।अब तो वही मिट्टी तीन हजार प्रति ट्रेलर मिल रहा है।इन लोगो ने बताया कि इस काम में श्रम ज्यादा लगता है।उसकी अपेक्षा दीये की कीमत नही मिलती।वही विनोद पंडित ने बताया कि पिछले दो साल कोरोना ने परेशान किया।वही इस साल अक्टूबर माह में असमय बारिश ने भी काफी नुकसान किया है। कुछ अन्य कुंभकारो ने बताया कि सरकार से लंबे समय से आस लगाये बैठे है कि उनके परंपरागत पुश्तैनी काम को बढ़ाने के लिए हमे सहयोग करेंगा, ताकि उनकी कला जीवित रहे। क्योकी अब उनके इस काम पर महंगाई और गरीबी की जबरदस्त मार पड़ने लगी है।इन लोगो का मानना है कि यदि सरकार उनकी मदद करे तो उनकी परंपरागत कला जीवित रह सकती है।