भाजपा का 'मिशन बिहार' : सहयोगियों का फिक्स किया कोटा, अपने सांसदों को दिया यह निर्देश
नई दिल्ली (आईएएनएस)। भाजपा ने 2024 के लोक सभा चुनाव में नीतीश-तेजस्वी-कांग्रेस और अन्य दलों के महागठबंधन को मात देने के लिए 'मिशन बिहार' का अपना ब्लू प्रिंट तैयार कर लिया है। इस ब्लू प्रिंट के तहत जहां एक तरफ भाजपा ने अपने सहयोगी दलों को दी जाने वाली लोकसभा की सीटों का कोटा फिक्स कर दिया है तो वहीं दूसरी तरफ अपनी पार्टी के सांसदों को भी अपने-अपने क्षेत्रों में जाकर डट जाने का निर्देश दिया है।
भाजपा ने इसके साथ ही छोटे-छोटे सहयोगी दलों और अपने खास नेताओं के बल पर बिहार के जातीय समीकरण को साधते हुए कुशवाहा, निषाद, दलित और महादलित मतदाताओं के साथ ही नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के सबसे मजबूत वोट बैंक माने जाने वाले अति पिछड़ा समाज के कुर्मी और कोइरी वोटरों को भी लुभाने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है।
भाजपा न केवल नीतीश कुमार के वोट बैंक को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है बल्कि उनके सांसदों पर भी भाजपा की नजरें बनी हुई है।
सूत्रों की माने तो, भाजपा इस बार बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 31 सीटों पर स्वयं लड़ने की तैयारी कर रही है और अपने गठबंधन के सहयोगी दलों को 9 सीट देने का प्लान बना चुकी है।
भाजपा केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस की पार्टी रालोजपा और हाल ही में फिर से एनडीए गठबंधन के साथ जुड़े चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास), दोनों दलों को मिलाकर सिर्फ छह सीटें ही देने के मूड में है।
बताया जा रहा है कि चाचा और भतीजे दोनों को यह संकेत दे दिया गया है कि वे हाजीपुर लोकसभा सीट सहित अपने सभी विवादित मुद्दों को सुलझा लें।
भाजपा इस बार फिर से साथ आए उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोजद को इस बार सिर्फ दो लोकसभा सीट ही देने के मूड में है और अगर हम के जीतन राम मांझी लोकसभा सीट को लेकर अड़े रहे तो भाजपा उनके या उनके बेटे के लिए सिर्फ एक सीट देने को तैयार है।
वीआईपी के मुकेश सहनी के भी फिर से एनडीए गठबंधन में वापसी के दरवाजे अभी पूरी तरह से बंद नहीं हुए हैं। वहीं, इसके साथ ही भाजपा ने अपने वर्तमान सांसदों को भी अपने-अपने संसदीय इलाकों में जाकर टिक जाने का निर्देश दे दिया है।
पार्टी ने सांसदों को सख्त हिदायत दी है कि आधिकारिक काम के बिना वे अनावश्यक रूप से न तो दिल्ली आएं और न ही अपने संसदीय क्षेत्र को छोड़कर कहीं और जाएं।
ऐसा नहीं करने वाले सांसदों का पार्टी टिकट तक काटने की चेतावनी दे चुकी है। यह माना जा रहा है कि पार्टी इस बार अपने 2-3 सांसदों का टिकट काट सकती है या उनके संसदीय क्षेत्र में बदलाव भी कर सकती है।
पार्टी बिहार की मुस्लिम बहुल सीटों पर भी ज्यादा ध्यान दे रही है। इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए जहां एक तरफ नीतीश के वोट बैंक में सेंध लगाने का प्रयास लगातार जारी है तो वहीं अपने सहयोगियों पासवान, मांझी और कुशवाहा के समर्थन के अलावा जेडीयू के कुछ सांसदों को भाजपा में शामिल कराकर जातीय गणित को भी साधने की योजना बना ली गई है।
बता दें कि भाजपा ने सैद्धांतिक रूप से यह भी फैसला किया है कि इस बार एनडीए गठबंधन के सहयोगियों को भी उनके उम्मीदवार की जीत पाने की संभावना के आधार पर ही सीटें दी जाएगी और अगर किसी सहयोगी के पास जीतने वाले उम्मीदवार नहीं हुए तो फिर भाजपा अपने नेता को उस सहयोगी दल के बैनर तले लड़ा सकती है।