सास-ससुर में भी होना चाहिए ये खास बदलाव, तभी मिलती है परिवार को मजबूती

Update: 2023-05-27 17:23 GMT

शादी एक ऐसा पवित्र रिश्ता है जो न सिर्फ दो युवाओं को एक साथ रिश्ते की डोर में जोड़ता है, अपितु यह दो परिवारों और उनके रिश्तेदारों को आपस में जोडऩे का काम करता है। इस रिश्ते में एक तरफ जहाँ आपको आपका जीवनसाथी मिलता है, वहीं दूसरी तरफ उसका परिवार भी मिलता है, जिससे तालमेल बैठाना जरूरी होता है। एक परिवार की खुशहाली पति-पत्नी के आपसी रिश्ते में स्थिरता और संतुलन के साथ भी होती है। वस्तुत: रिश्तों की दृढ़ता ही शादी का सुरक्षा कवच है, इस सुरक्षा कवच को मजबूत बनाने के लिए पति-पत्नी को उन मूलभूत बातों पर अमल करना चाहिए, जिससे वे अपने वैवाहिक जीवन को स्थिरता प्रदान करने के साथ ही उसे अपने प्रेम से सींचते हुए इस डोर को मजबूत वटवक्ष की तरह फैलाएँ।

सास-ससुर से संवाद बनाएँ रखें

घर के माहौल को खुशनुमा बनाए रखना है तो सास-ससुर से संवाद बनाएँ रखें। यदि उनकी कोई बात पसंद नहीं आती है तो आवाज को नीचा रखते हुए उसका विरोध करें साथ ही उन्हें स्पष्ट करें कि आपको उनकी बात क्यों पसन्द नहीं आई। जीवन साथी और सास-ससुर से दुराव-छिपाव ना करें, बातचीत में स्पष्टता और पारदर्शिता रिश्तों को मजबूत बनाती है। संवाद की स्थिति तब भी बनाए रखें जब आप अपने पति के साथ किसी दूसरे शहर में रह रही हैं और आपके सास-ससुर दूसरे शहर में। वर्तमान में ज्यादातर युवा अपने नौकरी-पेशा के चलते अपने माता-पिता, सास-ससुर से दूर रहते हैं। ऐसे में उनके बीच कम्युनिकेशन गैप आ जाता है, जिससे रिश्तों में दरार आना शुरू हो जाती है। ऐसी स्थिति पैदा न हो इसके लिए जरूरी है आप अपने सास-ससुर, माता-पिता से रोज न सही एक दिन छोडक़र एक दिन जरूर बातचीत करें।

आदर सम्मान दें

बहू को चाहिए कि हालात कैसे भी हों पर सास-ससुर से आदर सम्मान से ही बात करें, आखिरकार वे उम्र में बड़े हैं व अनुभवी हैं। उन्हीं के मार्गदर्शन में आप के पति पले-बढ़े हैं और अच्छी जगह कमा रहे हैं। हो सकता है, रहन-सहन, खाना-पीना आपके घर से बिल्कुल अलग हो पर उसके लिए आदर-सम्मान में कमी लाना उचित नहीं। आज की युवा पीढ़ी में सहन शक्ति कम होती जा रही है। बहू को अपने ससुराल में हर बात में अपने पीहर को बीच में नहीं लाना चाहिए। कई बाद देखा जाता है कि बहू बात-बात में अपने पीहर का उदाहरण यह देते हुए देती है कि हमारे यहाँ तो ऐसा नहीं होता है या ऐसा होता है। आप ही ऐसे हैं जो ऐसा नहीं करते हैं या ऐसा करते हैं। इससे रिश्तों में तल्खी आने लगती है। वहीं दूसरी ओर सास-ससुर को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनकी बहू को उनसे किसी प्रकार की कोई तकलीफ या किसी बात से कोई ठेस न पहुँचे। उन्हें घर के निर्णयों में बहू को शामिल करते हुए उसका भी मान रखना चाहिए, तभी परिवार एक मुट्ठी की तरह दिखाई दे सकता है।

सास-ससुर की आलोचना नहीं

बहू के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि विवाह केवल दो दिलों का ही मिलन नहीं दो परिवारों का भी मिलन है, जिसमें प्यार, अपनापन होना जरूरी है, अक्सर पत्नियाँ पति के सामने ही अपने सास-ससुर की बुराईयों का पिटारा खोल कर बैठ जाती हैं, जबकि वे अच्छी तरह जानती हैं कि किसी भी लडक़े को अपने मां-बाप की बुराई सुनना अच्छा नहीं लगता। पति को अपने मां-बाप से भावात्मक जुड़ाव होता है, इसलिए ऐसा बिल्कुल ना करें।

मेरा बेटा, मेरी बेटी की रट छोड़े

रिश्तों को निभाने की जिम्मेदारी सिर्फ बहू पर नहीं होती है। इन्हें मजबूती सास-ससुर ही दे सकते हैं। अक्सर यह देखा जाता है कि घर की बहू को वो सम्मान नहीं मिलता जिसका वो हकदार होती है। उसके सामने बार-बार मेरा बेटा, मेरी बेटी की रट लगाना सही नहीं है। सास-ससुर इस बात को भूल जाते हैं कि उनकी देखभाल सिर्फ और सिर्फ उनकी बहू करती है, बेटा या बेटी नहीं। बेटी अपने ससुराल चली जाएगी या उसका अपना ससुराल है और बेटा सिर्फ यह पूछेगा कि आपने खाना खाया, चाय पी, दवाई ली। जबकि पूरी जिम्मेदारी बहू उठाती है। वह सास-ससुर की पूरे समय अपने तन-मन-धन से सेवा करती है। ऐसे में यदि सास-ससुर अपने बच्चों का गुणगान करते हैं तो रिश्तों में दरार आती है और कभी-कभी यह दरार परिवार के बिखराव का कारण बन जाती है। यदि आप चाहते हैं कि आप के परिवार में ऐसा कोई बिखराव न हो तो अपनी बहू को मान-सम्मान देें, उसे अपनी बेटी मानें।

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