मस्तिष्‍‍क ज्‍वर के लक्षण,बचाव के उपाय

Update: 2022-12-27 17:29 GMT

मस्तिष्‍क ज्‍वर मेनिनजाईटिस एक बहुत खतरनाक संक्रामक रोग है जो कि जापानी /नाईसिरिया मेनिनजाईटिस (मेनिनगोकोकल) नामक जीवाणु के शरीर मे प्रवेश पाने और पनपने के कारण होता है। मस्तिष्‍क और रीढ़ की हड़डी मे रहने वाली नाडियो की झिल्‍ली पर सूजन आ जाती है। यह रोग पूरे वर्ष होता रहता है। इसमे चलन भाषा मे गर्दन तोड बुखार भी कहते है।

रोग कैसे फैलता है

मरीज से सीधे सम्‍पर्क मे आने के तथा या उसके थूक अथवा छींक द्वारा सांस के माध्‍यम से यह रोग एक दूसरे व्‍यक्ति मे फैलता है। रोग के जीवाणु के शरीर मे प्रवेश करने के ३ -४ दिन के पश्‍चात रोग के लक्षण प्रकट को जाते है। रोग उन व्‍यक्तियो द्वारा भी फैल जाता है जिनके नाक व गले मे इस बीमारी के जीवाणु बिना रोग उत्‍पन्‍न किये मौजूद रहते है। ये व्‍यक्ति प्रत्‍यक्ष रूप से स्‍वस्‍थ होते है किन्‍तु इनके खांसने अथवा छींकने से रोग के जीवाणु वायुमण्‍डल मे प्रवेश पा जाते है एवं श्‍वांस द्वारा अन्‍य व्‍यक्ति मे प्रविष्‍ट होकर रोग उत्‍पन्‍न करते है।

लक्षण -

१ . तेज बुखार के साथ तेज सिर दर्द एवं जी मचलना उल्टियां इस बीमारी के प्रमुख लक्षण है।

२ . लक्षणो के अचानक प्रकट होना एवं रोगी की दशा मे तेजी की गिरावट आना इस बीमारी की विशेषता है।

३ . एक स्‍वस्‍थ व्‍यक्ति को अचानक तेज बुखार सिर दर्द एवं उल्टिया होने पर इस बीमारी का संदेह होना आवश्‍यक है।

इसके अलावा गर्दन जकडना एवं शरीर पर लाल रंग के चकते पडना भी इस बीमारी के प्रमुख लक्षण है।

रोग का प्रभाव -

शीघ्र उपचार ने होने पर रोगी की दशा तेजी से बिगड‍ती है। कुछ ही घन्‍टो मे रक्‍तचाप तेजी से गिर जाता है और नब्‍ज कमजोर पड जाती है। रोगी बेहोशी की अवस्‍था के चला जाता है। इस बीमारी के लक्षणों का क्रम इतनी गति से चलता है कि शीध्र निदान एवं उपचार ही रोगी का इस जानलेवा बीमारी से बचा सकता है।

रोग किसको प्रभावित करता है ?

यह रोग किसी भी आयु वर्ग को प्रभावित कर सकता है लेकिन प्रकोप मुख्‍यतयाः बच्‍चो एवं किशोर वर्ग पर काफी अधिक होता है। घनी आबादी वाली गन्‍दी बस्तियो जिनमे तंग मकानों मे अधिक लोग रहते है छात्रावास बैरक एवं शरणार्थी शिविरों मे यह बीमारी तेजी से फेलती है।

बचाव के उपाय -

बचाव ही सर्वोत्‍तम उपचार है ऐसे घातक रोग से बचना ओर इसके प्रसार को रोकना सम्‍भव है।

१ . भीड-भाड से यह रोग फेलता है अतः यथा सम्‍भव भीड-भाड वाले स्‍थानों से बचना चाहिए।

२ . घरो के कमरों में शुद्व ताजा हवा व प्रकाश आने की समुचित व्‍यवस्‍था होनी चाहिए।

३ . चूकि यह संक्रामक रोग है अतः रोगी को अलग रखना बहुत जरूरी होना चाहिए।

४ . रोगी के नाक मुंह या गले से निकलने वाले स्‍ञाव को उसके मुंह व नाक पर साफ कपडा रख कर सम्‍पर्क मे आने वाले व्‍यक्तियो को रोग की छूत से बचाया जा सकता है।

५ . रोगी की देखभाल करने वाले व्‍यक्तियो की भी छूत से बचाव हेतु अपने मुंह एवं नाक पर साफ कपडा रखना चाहिए।

६ . रोगी के निरन्‍तर निकट सम्‍पर्क मे रहने वाले चिकित्‍सको एवं पेरामेडिकल कर्मचारियो को मस्तिष्‍क ज्‍वर निरोधक टीका लगवाना उपयोगी है इस टीके स 5-7 दिन मे रोग निरोधक क्षमता पैदा हो जाती है।

आयुर्वेदानुसार ----

महामृत्युंजय रस महासुदर्शनघन वटी महाज्वरांकुश रस .अमृतारिष्ट महासुदर्शन काढ़ा अश्वगंधा कैप ब्राह्मी वटी पुनर्नवा मंडूर

पथ्य ---

मुंग की दाल दाल का पानी परवल लौकी अनार मौसम्बी का रस दूध पपीता हल्का पदार्थों का सेवन करना चाहिए उबला पानी ।

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