आज पढ़िए हरिवंशराय बच्चन और महावीर प्रसाद 'मधुपा' की कविता
हमारे देश भारत में हर साल 15 अगस्त को बहुत धूमधाम से स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है. इस खास दिन के जश्न की तैयारियां कई महीने पहले से ही शुरू हो जाती हैं.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हमारे देश भारत में हर साल 15 अगस्त को बहुत धूमधाम से स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है. इस खास दिन के जश्न की तैयारियां कई महीने पहले से ही शुरू हो जाती हैं. इस राष्ट्रीय उत्सव को मनाने का सबका अलग-अलग तरीका है. कुछ लोग लाइव, तो कुछ लोग इस दिन टीवी पर स्वतंत्रता दिवस की परेड देखना पसंद करते हैं. आपको बता दें कि इस दिन स्कूल व कॉलेजों में कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं.
आप भी इस दिन को खास अंदाज में मना सकते हैं. स्वतंत्रता दिवस और आजादी पर कई कवियों और लेखकों ने रचनाएं रचीं. आज पढ़ें, हरिवंशराय बच्चन और महावीर प्रसाद 'मधुप' की कविता
15 अगस्त-महावीर प्रसाद 'मधुप'
धन्य सुभग स्वर्णिम दिन तुमको
धन्य तुम्हारी शुभ घड़ियाँ
जिनमें पराधीन भारत माँ
की खुल पाईं हथकड़ियाँ
भौतिक बल के दृढ़-विश्वासी
झुके आत्मबल के आगे
सत्य-अहिंसा के सम्बल से
भाग्य हमारे फिर जागे
उस बूढ़े तापस के तप का
जग में प्रकट प्रभाव हुआ
फिर स्वतन्त्रता देवी का
इस भू पर प्रादुर्भाव हुआ
नव सुषमा-युत कमला ने
सब स्वागत का सामान किया
कवि के मुख से स्वयं शारदा
ने था मंगल-गान किया
जय-जय की ध्वनि से गुंजित
नभ-मंडल भी था डोल उठा
नव जीवन पाकर भूतल का
कण-कण भी था बोल उठा
श्रद्धा से शत-शत प्रणाम
उन देश प्रेम-दीवानों को
अमर शहीद हुए जो कर
न्यौछावर अपने प्राणों को
कितने ही नवयुवक स्वत्व
समरांगण में खुलकर खेले
अत्याचारी उस डायर के
वार छातियों पर झेले
कितनों ने कारागृह में ही
जीवन का अवसान किया
अपने पावनतम सुध्येय पर
सुख से सब कुछ वार दिया
कितनों ने हँस कर फाँसी को
चूमा, मुख से आह न की
सन्मुख अपने निश्चित पथ के
प्राणों की परवाह न की
अगणित माँ के लाल हुए
बलिदान देश बलिवेदी पर
तब भारत माँ ने पाया
ये दिवस आज का अति सुखकर
पन्द्रह अगस्त का यह शुभ दिन
कभी न भूला जायेगा
स्वर्णाक्षर में अंकित होगा
उच्च अमर पद पायेगा
आजादी की पहली वर्षगाँठ- हरिवंशराय बच्चन
आज़ादी का दिन मना रहा हिन्दोस्तान
आज़ादी का आया है पहला जन्म-दिवस,
उत्साह उमंगों पर पाला-सा रहा बरस,
यह उस बच्चे की सालगिरह-सी लगती है
जिसकी मां उसको जन्मदान करते ही बस
कर गई देह का मोह छोड़ स्वर्गप्रयाण
आज़ादी का दिन मना रहा हिन्दोस्तान
किस को बापू की नहीं आ रही आज याद
किसके मन में है आज नहीं जागा विषाद
जिसके सबसे ज्यादा श्रम यत्नों से आई
आजादी उसको ही खा बैठा है प्रमाद
जिसके शिकार हैं दोनों हिन्दू-मुसलमान
आज़ादी का दिन मना रहा हिन्दोस्तान
कैसे हम उन लाखों को सकते है बिसार
पुश्तहा-पुश्त की धरती को कर नमस्कार
जो चले काफ़िलों में मीलों के, लिए आस
कोई उनको अपनाएगा बाहें पसार
जो भटक रहे अब भी सहते मानापमान
आज़ादी का दिन मना रहा हिन्दोस्तान
कश्मीर और हैदराबाद का जन-समाज
आज़ादी की कीमत देने में लगा आज
है एक व्यक्ति भी जब तक भारत में गुलाम
अपनी स्वतंत्रता का है हमको व्यर्थ नाज़
स्वाधीन राष्ट्र के देने हैं हमको प्रमाण
आज़ादी का दिन मना रहा हिन्दोस्तान
है आज उचित उन वीरों का करना सुमिरन
जिनके आँसू, जिनके लोहू, जिनके श्रमकण
से हमें मिला है दुनिया में ऐसा अवसर
हम तान सकें सीना, ऊँची रक्खें गर्दन
आज़ाद कंठ से आज़ादी का करें गान
आज़ादी का दिन मना रहा हिन्दोस्तान
सम्पूर्ण जाति के अन्दर जागे वह विवेक
जो बिखरे हैं, हो जाएं मिलकर पुनः एक
उच्चादर्शों की ओर बढ़ाए चले पांव
पदमर्दित कर नीचे प्रलोभनों को अनेक
हो सकें साधनाओं से ऐसे शक्तिमान
दे सकें संकटापन्न विश्व को अभयदान
आज़ादी का दिन मना रहा हिन्दोस्तान