आप दोनों पिछले काफ़ी समय से ट्राय कर रहे थे. अब फ़ाइनली आपको गुड न्यूज़ मिली है. आपके प्रेग्नेंट होने की ख़बर से आप ही नहीं, पार्टनर भी काफ़ी ख़ुश है. पर अक्सर शादीशुदा जोड़ों में प्रेग्नेंसी की शुरुआती ख़ुशी कुछ ही दिनों में काफ़ूर हो जाती है. आपके शरीर में आ रहे बदलावों के साथ-साथ पार्टनर के साथ आपका रिश्ता भी धीरे-धीरे बदलना शुरू हो जाता है. कह सकते हैं कि जैसे-जैसे अपने पेट में पल रहे बच्चे के साथ आपका बॉन्ड मज़बूत होता है, पार्टनर के साथ आपका रिश्ता नई करवट लेन लगता है. कुछ आम बदलावों के बारे में आपको पता होगा तो यह बदलाव कड़वाहट या किसी झगड़े में परिवर्तित नहीं होगा.
पहला बदलाव: आप ज़्यादा अटेंशन चाहेंगी
प्रेग्नेंसी के दौरान चूंकि महिलाओं में शारीरिक के साथ-साथ इमोशनल बदलाव भी आने शुरू होते हैं, एक समय बाद उन्हें लगने लगता है कि पार्टनर द्वारा उन्हें अटेंशन नहीं मिल रहा है. पार्टनर उनका उस तरह ख़्याल नहीं रखता, जैसा रखा जाना चाहिए. यह बात आपसे ज़्यादा, आपके पार्टनर को पता होनी चाहिए, ताकि उसे यह समझ में आए कि आप ऐसा हार्मोनल बदलावों के चलते कह या कर रही हैं. वह आपका सचमुच ज़्यादा ध्यान रखेगा और आपके कथित नखरों को हंसी-ख़ुशी से झेल जाएगा. आपको एक्स्ट्रा जादू की झप्पी देने में कोई कोताही नहीं बरतेगा.
दूसरा बदलाव: पार्टनर के साथ आपकी अंतरंगता बढ़ेगी
जब आप प्रेग्नेंट होती हैं तो पार्टनर और आपका ध्यान घर आनेवाले नन्हे मेहमान के स्वागत की तैयारी पर रहता है. आप दोनों हर काम उसी के लिए करते हैं. उसके लिए नाम सोचते हैं. कपड़े और दूसरे सामान ख़रीदते हैं. पार्टनर आपके शरीर में आ रहे बदलावों को देखते हुए आपका ज़्यादा ध्यान रखने लगता है. आप दोनों डॉक्टर से मिलते जाते समय एक-दूसरे के साथ रहते हैं. लंबा समय साथ बिताते हैं. बच्चे का अल्ट्रासाउंड देखने की एक्साइटमेंट दोनों को ही होती है. इस तरह आप दोनों के बीच प्यार पहले की तुलना में कई गुना बढ़ जाता है.
तीसरा बदलाव: पैरेंट बनने का एक्साइटमेंट हो सकता है कम या ज़्यादा
यह बात सच है कि आप दोनों पैरेंट बनने जा रहे हैं तो इसको लेकर एक्साइटेड होंगे, पर ज़रूरी नहीं कि एक्साइटमेंट का लेवल दोनों में एक जैसा हो. चूंकि आप मां बनने वाली हैं, बेबी आपके पेट में हैं तो आप प्रेग्नेंसी का पता चलने के पहले दिन से ही बेबी से जुड़ाव महसूस करेंगी. आपके शरीर में आनेवाले बदलाव आपको बेबी के डेवलपमेंट का संकेत देते रहेंगे. उसकी ही हलचल आपको पता चलेगी. आपका मातृत्व बढ़ता रहेगा. वहीं जब बेबी किक करने लगेगा और आपके पति आपके पेट पर हाथ रखकर महसूस करेंगे तो उन्हें भी लगाव महसूस होना शुरू हो जाएगा. बावजूद इसके आपके पति सही मायने में बच्चे से आप जैसा जुड़ाव तब महसूस करेंगे, जब वह बाहर आएगा. आपको इस बुनियादी फ़र्क़ को समझना चाहिए, बजाय पति द्वारा ज़्यादा एक्साइटमेंट न दिखाने को लेकर निराश होने या लड़ने-झगड़ने या रूठने के.
चौथा बदलाव: आपकी सेक्स लाइफ़ पटरी से उतर जाएगी
प्रेग्नेंसी के दौरान भावनात्मक जुड़ाव बेशक बढ़ता है, पर ज़्यादातर कपल्स की सेक्स लाइफ़ पटरी से उतर जाती है. पहले ट्रायमिस्टर में थकान, कमज़ोरी, उल्टी आने जैसे लक्षणों के चलते आपका मन सेक्स के लिए तैयार नहीं होता. आगे के ट्रायमिस्टरर्स में शरीर में आने वाले बदलाव सेक्स को अनकंफ़र्टेबल बना देते हैं. हालांकि यह देखा गया है कि महिलाओं के अंदर आनेवाले हार्मोनल बदलाव सेक्स के लिए मूड सेट करते हैं, पर उनके शरीर के बदलावों के चलते पार्टनर सेक्स से कतराते हैं. कुल मिलाकर प्रेग्नेंसी के दौरान सेक्स की फ्रीक्वेंसी में कमी आती ही है. और एक ज़रूरी बात, अगर आप दोनों सेक्स करना चाहते ही हैं तो इस बारे में अपने गायनाकोलॉजिस्ट की सलाह ज़रूर लें.
पांचवां बदलाव: आपके मन में रिश्ते को लेकर कुछ डर लगातार बने रहते हैं
प्रेग्नेंसी का फ़ेज़ किसी भी महिला के जीवन के सबसे यादगार फ़ेज़ होता है. आपको इसे एन्जॉय करना चाहिए. पर इस दौरान महिलाओं के मन में कई तरह के डर और असुरक्षा घर कर जाती है. उनके मन में हज़ारों अनसुलझे सवाल होते हैं. सबसे पहले तो यह कि क्या बेबी होने के बाद मेरी ज़िंदगी पहले जैसी रहेगी? क्या डिलिवरी ठीक तरह से हो जाएगी? क्या मेरा शरीर डिलवरी के बाद पहले जैसा हो जाएगा? क्या मुझे पार्टनर से पहले की तरह प्यार मिल सकेगा? क्या मेरी सेक्स लाइफ़ पहले की तरह हो जाएगी? इस तरह के सवाल आपके मन में कई तरह के डर पैदा कर सकते हैं. आपको इस तरह के सवालों और ख़्यालों से बचकर अपनी प्रेग्नेंसी को एन्जॉय करना चाहिए.
हर पैरेंट चाहते हैं कि उनका बच्चा हर मायने में उनसे बेहतर हो. पढ़ाई-लिखाई, कमाई से लेकर खेलकूद और सोशल लाइफ़ हर जगह वे अपने बच्चों को आगे देखना चाहते हैं. अगर आप भी ऐसे ही पैरेंट्स में एक हैं, तो आपको अभी से अपने बच्चे को ट्रेनिंग देना शुरू कर देना चाहिए. आप बच्चे की परवरिश में सिर्फ़ पैसा लगाएंगे तो ऐसा नहीं हो पाएगा. आपको इन्वॉल्व होकर उन्हें टाइम भी देना होगा. जब आप बच्चे के साथ टाइम स्पेंड करेंगे तो वे न केवल इमोशनली स्ट्रॉन्ग बनेंगे, बल्कि उनका मानसिक डेवलपमेंट भी तेज़ी से होगा. शुरुआती सालों में इन्हीं दोनों बातों का सबसे अधिक महत्व होता है. आगे की ज़िंदगी का मज़बूत फ़ाउंडेशन तैयार होता है. वे न केवल पढ़ाई-लिखाई के मामले में अच्छा परफ़ॉर्म करते हैं, बल्कि उनकी सोशल लाइफ़ भी अच्छी होती है. आप यह काम तीन स्टेजेस में कर सकते हैं.
बच्चों को घर पर ही बुनियादी चीज़ें पढ़ाएं
अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा पढ़ाई-लिखाई में अच्छा हो तो शुरू से ही उसकी पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान दें. जब वे स्कूल या प्रीस्कूल जाना शुरू न करें, तब से ही उन्हें कुछ बुनियादी चीज़ों की शिक्षा दें. बच्चों को घर पर पढ़ाने का यह सिलसिला आगे भी बनाए रखें. भले ही आगे चलकर स्कूलों में टीचर्स कितना ही ध्यान क्यों न दें, आप उनसे लैंग्वेजेस और मैथ्स के बुनियादी सवाल-जवाब ज़रूर करें. अगर किसी चीज़ को वे ठीक से समझ न पाए हों तो उनका कॉन्सेप्ट क्लीयर करें. जब बच्चों का कॉन्सेप्ट कलीयर होता है, तब उनमें पढ़ाई को लेकर आत्मविश्वास आता है. यही आत्मविश्वास उन्हें आगे भी मदद करता है. साथ ही आपके साथ रहने के चलते बच्चा अधिक ख़ुश रहता है और आत्मविश्वासी बनता है.
आपको क्या करना है?
-बच्चे के लिए उपलब्ध रहें. चाहे कितने भी व्यस्त क्यों न हों, उनके लिए समय ज़रूर निकालें.
-बच्चों को सही-ग़लत में फ़र्क़ करना सिखाएं.
-बच्चों को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करें.
-बच्चों को अपने विचार और आइडियाज़ व्यक्त करना सिखाएं.
जब बच्चा प्री-स्कूल जाना शुरू करे तो उनके शिक्षकों के संपर्क में रहें
जब बच्चे प्री-स्कूल यानी प्ले ग्रुप या नर्सरी में जाना शुरू करते हैं तो वे पहली बार घर के अपने जाने-पहचाने कंफ़र्ट ज़ोन से बाहर निकलते हैं. हर समय उन्हें संभालने और समझाने के लिए पैरेंट्स साथ नहीं होते. बतौर पैरेंट्स आप भी पहली बार बच्चे को बाहर भेज रहे होते हैं. कुछ पैरेंट्स के लिए यह थोड़ा राहत देनेवाला वक़्त होता है, क्योंकि जब बच्चे बाहर होते हैं, तब उन्हें अपने लिए थोड़ा मी-टाइम मिल जाता है. उनपर से बच्चे को संभालने का बोझ थोड़ा कम हो जाता है. पर यहीं पर ज़्यादातर पैरेंट्स ग़लती कर बैठते हैं. बच्चे को बाहर भेजने का यह मतलब नहीं है कि आपकी ज़िम्मेदारी कम हो गई है. आप को अब भी उसकी पढ़ाई-लिखाई पर उतना ही ध्यान देना होगा. वह क्या सीख रहा है, क्या नहीं आपको पता होना चाहिए. उसे क्या नहीं सीखना चाहिए इसपर भी आपकी नज़र पहले जैसी ही होनी चाहिए.
आपको क्या करना है?
-बच्चे के शिक्षकों के नियमित संपर्क में रहें.
-बच्चे को दूसरे बच्चों से दोस्ती करने, उनके साथ खेलने-कूदने के लिए प्रेरित करें.
-यह सुनिश्चित करें कि बच्चे पढ़ाई के अलावा दूसरी गतिविधियों में भी भाग लें.
बेहतर भविष्य के लिए कुछ और बुनियादी बातें
हम सभी चाहते हैं कि बच्चे का भविष्य बेहतर हो. वह हरफ़नमौला बने. पर साथ ही यह भी चाहते हैं कि वह किसी भी तरह की बुरी संगत या लत का शिकार न हो. इसके लिए आपको अपने बच्चों से संवाद बनाए रखना होगा. उसके टीनएज में आने के बाद तो संवाद और भी बढ़ाना होगा.
आपको क्या करना है?
-अपने बच्चे से भविष्य के बारे में बात करें. मसलन यह जानने की कोशिश करें कि वह जीवन में क्या बनना चाहता है.
-जब आपके और बच्चे के दिमाग़ में यह बात स्पष्ट हो कि उसे क्या बनना है तो उसे उसका लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सही दिशा में बढ़ने में मदद करें.
-बच्चों को अपनी-पसंद और नापसंद ज़ाहिर करने और उसके अनुसार चुनाव करने की आज़ादी हैं. हां, आज़ादी देते समय उन्हें यह ज़रूर बताएं कि आज़ादी के साथ-साथ ज़िम्मेदारी भी आती है. उन्हें इसका पालन करना होगा.
-बच्चों को किसी धर्म, जाति या देश से नफ़रत करना न सिखाएं. आनेवाले कल में धर्म, जाति और देशों के बंधन और तेज़ी से कम होनेवाले हैं. बच्चे को आनेवाले कल के लिए तैयार करना आपकी ज़िम्मेदारी है.