दिल... यह शब्द सुनने में कितना छोटा-सा है ना, पर इसका फैलाव कितना बड़ा और गहरा! कवियों की अनगिनत कल्पनाओं से लेकर फ़िल्मों के हज़ारों हज़ार गीतों तक इस दिल को जितना समझने की कोशिश की गई, ये उतना ही अबूझ बना रहा, लेकिन आधुनिक विज्ञान हौले-हौले इस अबूझ दिल की गिरहें खोल रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के ताज़ा आंकड़ों पर अगर नज़र डालें, तो दिल कांप ही उठे... इन आंकड़ों में दिल एक ख़तरा बनकर जो धड़क रहा है. ऐसे में क्या ये ज़रूरी नहीं कि हम कविताओं और गीतों के परे दिल का हाल जानें, समझें और उसे सहेजें?
ख़तरे में हैं भारतीय दिल
ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट कहती है कि हृदयरोग ने भारत को जिस बेरहमी से अपने पंजों में जकड़ा है, वह कोई सामान्य बात नहीं है. इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2001 से 2003 के बीच सीएचडी यानी कोरोनरी हार्ट डिज़ीज़ से कुल 17% मौतें हुईं, जिनमें मरने वाले 26% वयस्क थे. वर्ष 2010 से 2013 के बीच यह आंकड़ा बढ़ा और कुल 23% मौतें हुईं, जिनमें मरने वाले 32% वयस्क थे. मेडिकल सुविधाओं के बढ़ने के बावजूद वर्ष 2013 से 2017 के बीच यह दर और तेज़ी से बढ़ी और 15 से 35 साल के लोगों में हृदय रोग का ग्राफ़ तेज़ी से ऊपर आ गया. डॉक्टर्स की मानें तो भारत में हृदय रोग की औसत उम्र 52-59 साल है, लेकिन यह उम्र लगातार घट रही है और हर साल हृदयरोग से होने वाली मौतों का ग्राफ़ बढ़ रहा है. लखनऊ के किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के हृदय-रोग विशेषज्ञ ऋषि सेठी ने पिछले दिनों हृदय रोग पर एक किताब जारी की है. इस किताब के मुताबिक़ दुनिया में हर 1 लाख पर लगभग 235 लोग हृदय रोग की चपेट में हैं, लेकिन भारत में यह आंकड़ा 1 लाख पर 272 का है. इस हिसाब से पूरी दुनिया में सबसे अधिक दिल के मरीज़ भारत में हैं और भारत में होने वाली 25% मृत्यु का कारण अकेला हृदय रोग है.
क्या यह कोई असामान्य स्थिति है?
सच पूछा जाए तो नहीं, इन दिनों जीवन पर साइकोलॉजिकल स्ट्रेस इतना ज़्यादा है, जीवनशैली इस क़दर बेतरतीब है और हाइपर टेंशन और डायबिटीज़ जैसे ख़तरे इतने बढ़े हुए हैं कि पहले जो बीमारियां पचास साल के व्यक्ति को अपना शिकार बना रही थीं, वो अब 20-25 साल के युवा को भी घेर रही हैं. एशियन हार्ट इंस्टिट्यूट में कार्डियोलोजी ऐंड रीहैबिलिटेशन के हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट और सीनियर इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ नीलेश गौतम कहते हैं,“हृदयरोग की स्थिति का पहला इशारा हमारी जीवनशैली की ओर होता है. हमें यह देखना चाहिए कि कहीं हम आरामतलब दिनचर्या के शिकार तो नहीं हैं? हमारी खाने की आदतें बिगड़ी हुई तो नहीं है? क्या हमारे भोजन में पोषक आहार की कमी है? कहीं हम एक्सरसाइज़ से परहेज़ तो नहीं करते? कहीं हमें शराब, तंबाकू और धूम्रपान की लत तो नहीं? पर्याप्त नींद ले रहे हैं कि नहीं? कहीं हमने अनियंत्रित तनाव तो नहीं पाल रखा है? कहीं हमारा शुगर लेवल और कोलेस्टेरॉल तो बढ़ा हुआ नहीं है? इन दिनों फ़ाइबर्स रहित फ़ास्ट फ़ूड यानी पिज़्ज़ा, बर्गर, नूडल्स और कोल्ड ड्रिंक खाने का विकल्प बन गए हैं. शारीरिक श्रम कम किया जा रहा है और तनाव ज़्यादा लिया जा रहा है, ऐसे में बीमारियों का बढ़ना अस्वाभाविक नहीं है.”
xकैसा होता एक स्वस्थ दिल?
स्वस्थ दिल का मतलब है सामान्य रूप से अपनी भूमिका निभाता हुआ दिल. माने जिसकी धड़कन हर मिनट 60 से 80 हो. ब्लड प्रेशर 120/80 एमएमएचजी हो और व्यक्ति सीने में दर्द, सांस रुकने या थकान जैसी तक़लीफ़ें महसूस किए बिना अपने दैनिक काम सामान्य रूप से कर पा रहा हो. डॉ प्रफुल्ल केरकर, कार्डियोलॉजिस्ट, एशियन हार्ट इंस्टिट्यूट मुंबई कहते हैं,“मेडिकल साइंस की भाषा में एक स्वस्थ दिल वो है, जिसकी पम्पिंग इस तरह हो रही हो कि पूरे शरीर में भरपूर मात्रा में ख़ून पहुंच रहा हो, ताकि शरीर के सारे अंग सही ढंग से काम कर सकें. दिल का सही ढंग से पम्प करना बाक़ी अंगों के अलावा दिमाग़ के लिए भी ज़रूरी है. लेकिन अगर चलते हुए, एक्सरसाइज़ करते हुए सांस लेने में दिक़्क़त होती है, वज़न अचानक बढ़ गया है, पैरों व टखनों में सूजन है, आप थकान व कमज़ोरी महसूस कर रहे हैं और दो-तीन तकिया लेकर सोते हैं, तो हो सकता है कि आपको दिल का मर्ज़ लगा हो.” लाइफ़स्टाइल की बिगड़ी हुई चाल ने हमारे दिल का हाल-बेहाल किया हुआ है.
तेरा दिल कि मेरा दिल
आमतौर पर दिल से जुड़ी बीमारियों को पुरुषों से जोड़कर देखा जाता है. लेकिन डॉ केरकर कहते हैं,“अब यह बात पुरानी हो चुकी है. मेडिकल फ़ील्ड के मौजूदा तथ्य ये बता रहे हैं कि महिलाएं भी इस गंभीर समस्या से अछूती नहीं हैं. होता ये है कि महिलाएं अपनी सेहत को नज़रअंदाज़ किए रहती हैं. कई बार उन्हें लक्षण महसूस भी होते हैं, लेकिन वे समझ नहीं पातीं, या उन्हें सामान्य तौर पर लेती रहती हैं, जिस वजह से स्थिति बाद में एडवांस लेवल पर पहुंच जाती है. पहले यह माना जाता था कि महिलाओं में हृदय रोग का रिस्क मेनोपॉज़ के बाद प्रकट होता है, लेकिन अब ऐसा नहीं है, क्योंकि फ़ीमेल्स की लाइफ़स्टाइल भी बहुत बदली है और इसीलिए अब उनको हार्ट डिज़ीज़ मेनोपॉज़ से पहले भी परेशान कर रही है. पुरुषों के मुक़ाबले महिलाएं डायबिटीज़ का शिकार अधिक होती हैं. डायबिटीज़ में हार्ट अटैक का अंदेशा ही नहीं होता, उन्हें साइलेंट हार्ट अटैक होता है और बचने की संभावना भी कम होती है. यह सच है कि जो महिलाएं गर्भनिरोधक दवाएं ले रही हैं, धूम्रपान की आदी हैं, बेतरह तनाव में जी रही हैं और एक्सरसाइज़ से आंख चुराती हैं, उनमें हृदय रोग की आशंका 20% बढ़ जाती है.”
हार्ट अटैक बनाम हार्ट फ़ेलियर
अक्सर लोग हार्ट अटैक और हार्ट फ़ेलियर को एक चीज़ समझ लेते हैं, देखा जाए तो दोनों में बहुत मामूली फ़र्क़ है. हार्ट अटैक में दिल को रक्त और ऑक्सिजन नहीं मिल पाता, जिससे दिल की मांसपेशियां क्षतिग्रस्त होने लगती हैं और सीने में अचानक तेज़ दर्द उठता है. जबकि हार्ट फ़ेलियर में दिल की मांसपेशियों के कमज़ोर होने की वजह से ठीक से रक्त पम्प नहीं कर पाता. इस स्थिति में मरीज़ को सांस लेने में दिक़्क़त होने लगती है. पैरों और टखनों पर सूजन आ सकती है. यह स्थिति दिमाग़ी तौर पर भी व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है. हार्ट फ़ेलियर का सबसे चिंताजनक पहलू ये है कि इस स्थिति में रोगी को दिल में कोई दर्द महसूस नहीं होता, यह बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती है, जबकि हार्ट अटैक में अचानक दर्द का तेज़ हमला होता है, जिसका इलाज न किया जाए तो रोगी की जान भी जा सकती है. लोगों की सलाह पर या गूगल ज्ञान के आधार पर अपना इलाज ख़ुद न करें. वज़न या सूजन कम करने के लिए सलाह में सुझाई गई दवा न लें.
दिल की बीमारी से बचा सकता है आहार का ख़्याल
दुनियाभर के स्वास्थ्य विशेषज्ञ उच्च रक्तचाप से बचाव के लिए फलों के सेवन पर ज़्यादा ज़ोर देने लगे हैं. बहुत-सी रिसर्च यह निष्कर्ष दे चुकी हैं कि उच्च रक्तचाप से ग्रस्त मरीज़ फलों और सब्ज़ियों से युक्त कम वसावाला आहार लेकर अपनी बीमारी को कंट्रोल कर सकते हैं. आहार विशेषज्ञों की मानें तो अधिकतर फलों तथा सब्ज़ियों में मौजूद फ़ाइबर रक्त धमनियों में थक्कों के जमाव को कम करता है, जबकि उनमें मौजूद पोटैशियम से ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में मदद मिलती है. फलों तथा सब्ज़ियों में एक और महत्वपूर्ण तत्व पाया जाता है- फ़ोलेट. जो दिल की बीमारियों के कारक होमोसिस्टीन के स्तर को कम करता है. वसा तथा कोलेस्टेरॉल की मात्रा कम होने की वजह से फल और सब्ज़ियां रक्त धमनियों की दीवारों को भी मोटा होने से रोकती हैं. लेकिन आहार के साथ कोई भी प्रयोग आहार विशेषज्ञ की सलाह के बिना न करें, क्योंकि वही तय कर सकते हैं कि आपके लिए कौन-सा आहार उचित या अनुचित है.