बढ़ रहा है पक्षियों से होने वाले संक्रमण

कबूतर व अन्य पक्षियों से होने वाले संक्रमण को पीजियन ब्रीडर डिसीज कहा जाता है

Update: 2023-03-12 12:47 GMT
पक्षियों को दाना खिलाना एक धर्म के रूप में देखा जाता है. आमतौर पर मान्यता है कि बेजुबानों को दाना, पानी खिलाना चाहिए. लेकिन इन दिनों पक्षियों से ही गंभीर बीमारी लोगों में देखने को मिल रही है. विशेषज्ञोें का कहना है कि कबूतरों को दाना चुगाना सेहत के लिए भारी पड़ सकता है. इसको लेकर खासी तौर पर अहतियात बरते जाने की जरूरत है. इनके संपर्क में आने से लंग्स की गंभीर बीमारी हो सकती है. किसी भी तरह के लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए.
दिल्ली में बड़ा संक्रमण का खतरा
दिल्ली में बड़ी संख्या में लोग कबूतर व अन्य पक्षियों को दाना खिलाते हैं. कई चौराहों पर दाना बेचने वाले भी देखे जा सकते हैं. लोग वहीं से दाना खरीदते हैं और कबूतर या अन्य मौजूद पक्षियोें को दाना खिलाते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली में पक्षियों से होने वाले संक्रमण का खतरा बढ़ गया है.
इस बीमारी के फैलने की संभावना
कबूतर व अन्य पक्षियों से होने वाले संक्रमण को पीजियन ब्रीडर डिसीज कहा जाता है. यह पफेपफड़ों में होने वाला एक गंभीर तरह का संक्रमण है. इसे बर्ड फैन्सियर रोग, पफार्मर्स लंग्स के नाम से भी जाना जाता है. मेडिकली भाषा में इसे सेंसटिव न्यूमोनिटिस (एचपी) के रूप में जाना जाता है. एचपी एक प्रकार का इंटरस्टिशियल लंग डिजीज (आईएलडी) है. यह सांस के कार्बनिक पदार्थ एंटीजन के संपर्क में आने के बाद पैदा होती है. कुछ मामलों में जीवाणुओं के संपर्क में आने से भी ये स्थिति पैदा हो जाती है.
इन्हें है अधिक का खतरा
इस बीमारी की चपेट में आने का खतरा सभी को नहीं है. यह बीमारी उन लोगों को अधिक हो सकती है, जोकि कबूतरों के संपर्क में अधिक रहते हैं. बार बार उन्हें खाना खिलाते हैं. उनके मल के संपर्क में आते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, सीटी स्कैन, पल्मोनरी फंक्शन टेस्टिंग मशीन, और ब्रोन्कोस्कोपिक से लंग्स इन्फेक्शन की जांच की जा सकती है.
ये लक्षण दिख सकते हैं
इस बीमारी से संक्रमित होने पर कई लोगों में अलग अलग तरह के लक्षण दिखाई दे सकते हैं. इनमें अस्थमैटिक अटैक आना, लंग्स का गंभीर संक्रमण, खांसी, जुकाम आना शामिल है. इससे फाइब्रोटिक फेफड़े की बीमारी हो सकती है. घर में बर्ड नेट लगाने और बर्ड ड्रॉपिंग की नियमित सफाई से कुछ जोखिम को रोका जा सकता है. बीमाीर से बचाव के लिए कबूतरों के प्रजनन पर नियंत्रण करना चाहिए.
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