इस उम्र में पेरेंट्स को बच्चे के साथ सोना कर देना चाहिए गंभीर बीमारियों का करता
बच्चों की अच्छी परवरिश उनके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बेहद जरूरी होती है। बचपन में बच्चों के साथ घटित होने वाली हर छोटी-बड़ी बात उनके मन- मस्तिष्क पर गहरा असल डालती है, जिससे उनका पूरा जीवन और व्यवहार प्रभावित होता है। इसीलिए बाल मनोविज्ञान, अभिभावको से अच्छी परवरिश (Good parenting) की अपेक्षा करता है और इसके लिए कई जरूरी बातों की पहल करता है। हाल ही में पैरेंटिंग को लेकर एक खास चर्चा सामने आई है ये जिसमें इस बात पर सवाल किया जा रहा है कि पेरेंट्स को कब तक अपने बच्चे के साथ सोना चाहिए।
अमेरिकी एक्ट्रेस के खुलासे के बाद ये सवाल बना अहम
वैसे तो ये हमेशा से अहम सवाल रहा है, पर इस सवाल को लेकर चर्चाएं तब से और तेज हो चली हैं जब हाल ही में अमेरिकी एक्ट्रेस एलिसिया सिल्वरस्टोन (Alicia Silverstone) ने इस बात का खुलासा किया कि वो अपने 11 साल के बेटे बीयर के साथ होती है। ऐसे में एक्ट्रेस एलिसिया सिल्वरस्टोन के इस खुलासे के बाद सोशल मीडिया पर इसे लेकर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ लगी हैं। कुछ लोग जहां एक्ट्रेस एलिसिया सिल्वरस्टोन के इस निजी फैसले को सराह रहे हैं, तो वहीं कुछ लोगों का मानना है कि ये उनके बच्चे के लिए अच्छा साबित नहीं होगा।
इस पर क्या कहता है बाल मनोविज्ञान
इस मसले पर न्यूयॉर्क स्थित बाल चिकित्सक डॉ. रेबेका फिस्क का कहना है कि वैसे तो बच्चों के साथ एक ही बेड पर सोना माता-पिता का अपना निजी फैसला है, पर अगर बात मनोविज्ञान की करें तो एक उम्र तक ऐसा करना बच्चों के लिए जहां साबित होता है तो वहीं एक उम्र के बाद ये बच्चों के लिए हानिकारक भी हो सकता है। बच्चे को सुरक्षित महसूस कराने के लिए अभिभावक बच्चे के साथ सो सकते हैं, पर उनकी सहजता का ख्याल रखते हुए, जैसे कि आप अपने कमरे में बच्चे के लिए एक एक्स्ट्रा बिस्तर लगा सकते हैं, जहां वो खुलकर सो सके। पर ऐसा भी एक बच्चों की एक उम्र तक ही करना चाहिए इसके बाद उन्हें सोने के लिए अलग स्पेस देना ही सही होता है।
किस उम्र में बच्चे के साथ सोना कर देना चाहिए बंद
अब बात करें कि आखिर किस उम्र में अभिभावकों को बच्चे के साथ सोना बंद कर देना चाहिए तो दुनिया के सभी बाल मनोवैज्ञानिकों की माने तो ये प्यूबर्टी (Pubert) का समय होता है, जब से बच्चों को सोने के लिए अलग स्पेस मिलना जरूरी है। प्यूबर्टी यानि कि जब आपका बच्चा किशोरावस्था में कदम रखता है और उसका शरीर धीरे-धीरे परिपक्व होने लगता है। जैसे कि इस दौरान लड़कियों में स्तन का विकास और लड़कों में दाढ़ी-मूंछ बढ़ने के साथ प्राइवेट पार्ट के आकार में वृद्धि जैसे शारीरिक लक्षण दिखने लगते हैं। ये वो वक्त होता है जब बच्चा एक संक्रमणकाल से गुजर रहा होता है और वो कई सारे शारीरिक और मानसिक बदलावों का सामना कर रहा होता है।
ऐसे में प्यूबर्टी यानि कि यौवनारम्भ के दौरान बच्चों को देखभाल के साथ अच्छी परवरिश (Good parenting) की जरूरत होती है। ताकी वो मानसिक रूप से इन बदलावों को सहजता के साथ स्वीकार कर सकें। अगर इस दौरान आप बच्चे को स्पेस नहीं देते हैं, तो इसका बुरा असर उनके मानसिक विकास पर पड़ सकता है।
इन मानसिक बीमारियों का हो सकता है खतर
अब बात करते हैं कि अगर एक उम्र की सीमा (यौवनारम्भ) बाद भी बच्चा अपने माता-पिता के साथ सो रहा है, तो इससे उसे क्या नुकसान हो सकता है। तो बता दें कि बाल मनोविज्ञान की माने तो इसके कारण बच्चा मानसिक रूप में कमजोर हो सकता है। उसमें दृढ़ता और आत्मविश्वास का अभाव, अवसाद, कमजोर याददाश्त के साथ साथ मोटापे और शारीरिक कमजोरी की शिकायत भी हो सकती है।
दरअसल, बाल मनोविज्ञान कहता है कि अगर बच्चा बड़े होने के बाद भी मां-बाप के साथ हो रहा है तो इससे मां-बाप के आपसी रिश्ते भी प्रभावित होते हैं। इसके कारण मां-बाप के बीच तनाव और झगड़े की नौबत आती है और फिर उसी तनाव का बच्चे के मानसिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसलिए बेहतर (Good parenting) यही है कि एक निश्चित उम्र सीमा के बाद बच्चे को अलग सोने की आदत दिलाई जाए।