इस मिट्टी का ऋण हम सब पर

यह भारत की स्वतंत्रता का 75वां वर्ष तिरंगे का वर्ष है। जैसे ही हमारा झंडा फहराता है, हमारा दिमाग जाग उठता है; जैसे ही यह फड़फड़ाता है, हमारा दिल बैठ जाता है या धड़कने लगता है। ..और तब हमारी आंखों के सामने हमारे ऐसे नेताओं की छवियां उमड़ती हैं, जिन्हें दुनिया आज जानती तक नहीं है

Update: 2022-06-30 18:55 GMT

गोपालकृष्ण गांधी, 

यह भारत की स्वतंत्रता का 75वां वर्ष तिरंगे का वर्ष है। जैसे ही हमारा झंडा फहराता है, हमारा दिमाग जाग उठता है; जैसे ही यह फड़फड़ाता है, हमारा दिल बैठ जाता है या धड़कने लगता है। ..और तब हमारी आंखों के सामने हमारे ऐसे नेताओं की छवियां उमड़ती हैं, जिन्हें दुनिया आज जानती तक नहीं है।
हम भारत के लोगों के बिना हमारे नेता कतई नेतृत्व नहीं कर सकते थे, बिना हमारे आंदोलन कामयाब नहीं हो सकते थे, स्वतंत्रता के संघर्ष में हम विजयी नहीं हो सकते थे। जब दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह की सफलता के बाद गांधीजी और उनकी पत्नी कस्तूरबा का 4 अगस्त, 1914 को लंदन में अभिनंदन किया जा रहा था, तब उन्होंने कहा था, 'हमें... दक्षिण अफ्रीका में ख्याति हासिल हुई, लेकिन हम अगर किसी अनुमोदन के योग्य हैं, तो वे लोग कितने योग्य थे, जो बिना प्रशंसा या प्रचार के संघर्ष करते चले गए? हरबुत सिंह 75 वर्ष के थे, जब वह संघर्ष में शामिल हुए थे और जेल गए थे और वहीं पर उनका निधन हो गया था। किशोर नारायणस्वामी को मद्रास निर्वासित कर दिया गया और वापस लौटते समय उन्होंने अनशन किया और दुनिया से चले गए... और वल्लियम्मा, 18 वर्ष की युवती, जेल गईं और वहां से उन्हें तभी मुक्ति मिली, जब वह बहुत बीमार पड़ गईं और उसके कुछ ही समय बाद उनकी मृत्यु हो गई। तब बीस हजार मजदूर अपने औजार और काम छोड़कर पूरी आस्था के साथ निकल पड़े थे। हिंसा पूरी तरह से टाल दी गई थी। इन नायकों और नायिकाओं के सामने हम तो गरीब नश्वर हैं। और उन्होंने आगे कहा था, 'इन पुरुषों और महिलाओं पर, जो मिट्टी के नायक हैं, भारतीय राष्ट्र का निर्माण किया जाएगा।' वहां गांधीजी को सुनने वालों में लाला लाजपत राय, सच्चिदानंद सिन्हा और भूपेंद्रनाथ बसु, सरोजिनी नायडू और मोहम्मद अली जिन्ना शामिल थे। उन सभी के हृदय में यह संदेश उतर गया कि संघर्ष के असली नायक-नायिका कौन हैं
इसीलिए यह विशेष जयंती वर्ष, सामूहिक स्मरण और उत्सव का वर्ष, केवल नामी नेताओं से जुड़ा नहीं है, बल्कि उन लोगों से भी जुड़ा है, जिन्होंने नेताओं को खड़ा किया, आंदोलनों को संचालित किया और संघर्ष को ताकत, गति और जीत से नवाजा। यह उन नायकों और नायिकाओं से संबंधित वर्ष है, जिनके हम ऋणी हैं। स्वतंत्रता दिलाने के लिए, स्वतंत्रता की वजह से प्राप्त उपलब्धियों के लिए हम उनके ऋणी हैं।
जब हम लड़खड़ाते हैं, नाकाम होते हैं और गलत हो जाते हैं, जब हमारा विश्वास डगमगाता है और हमारे राजनीतिक विवेक के साथ हमारी प्रतिज्ञाएं टकराती हैं, तब हम केवल नामी नेताओं को ही नीचा नहीं दिखाते हैं; तब हम केवल अपने प्रिय महान स्वामी विवेकानंद, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी और बहादुर जवाहरलाल को नीचा नहीं दिखाते हैं, जिन्हें महाकवि टैगोर ने 'तरुण तपस्वी' कहा था; हम तब केवल अदम्य साहसी सरदार पटेल, विद्वान-राष्ट्रवादी मौलाना आजाद, अमर शहीद भगत सिंह, शानदार कानून निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर को ही नहीं, बल्कि हम भारत की इस मिट्टी के नायकों को भी धोखा देते हैं। याद रहे, गुजरात के समुद्र तट पर 1930 के नमक सत्याग्रह ने ब्रिटिश राज की चूलें हिला दी थी। नमक का यह एक आकर्षक विचार किसी आंदोलन से भी बढ़कर था। वह एक रूपक नमक की मान्यता थी। हमारी धरती के नमक, मतलब नायक, भारत का जनमानस बनाने वाले लोग।
यह वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की 80वीं वर्षगांठ भी है। जिस प्रकार 1857, स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम का अविस्मरणीय वर्ष है, वैसे ही 1942 भी है। 8 अगस्त, 1942 को इसका आह्वान किया गया था। भारत के नेताओं ने अपने नायकों, नायिकाओं की ओर से बोलते हुए अंग्रेजों से भारत छोड़ने के लिए कहा था। तत्कालीन बॉम्बे में आयोजित एक प्रतिष्ठित बैठक में भारत की धरती के नायकों ने ही अपने प्रवक्ताओं- गांधी, नेहरू, पटेल, आजाद, कृपलानी के माध्यम से अपनी बात रखी थी और ब्रिटिश राज हिल गया था। रातोंरात पूरे नेतृत्व को गिरफ्तार कर लिया गया था। कस्तूरबा के साथ गांधी पूना जेल में बंद कर दिए गए थे। नेहरू, पटेल, आजाद, कृपलानी, आसफ अली, गोबिंद बल्लभ पंत, शंकरराव देव, ओड़िया नेता हरेकृष्ण महताब, पट्टाभि सीतारमैया अहमदनगर किले में बंद थे, कुछ दिनों या महीनों के लिए नहीं, बल्कि तीन साल के लिए। जेल में रहते हुए ही कस्तूरबा का निधन हुआ। आजाद ने जेल में रहते हुए ही अपनी पत्नी जुलैखा को खोया था।
लेकिन इन चंद विशिष्ट नेताओं के बरक्स एक बड़ी, व्यापक और भारी सच थे वे दसियों हजार लोग, जिन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। जिन पर सामूहिक जुर्माना लगाया गया था। असंख्य असली नायकों और नायिकाओं को उस आंदोलन के दौरान सरेआम पीटा गया था। आज उनके बलिदान को भी यह उम्मीद होगी कि हम इस वर्ष को पूरे उत्साह से मनाएं। देश के प्रति उनके जज्बे, कर्तव्य को याद करें। इसलिए यह वर्ष तिरंगे की सच्ची जीवंतता का वर्ष है। आजादी के लिए संघर्षरत भारत की इन विभूतियों को स्वतंत्र भारत के लोग किस तरह सम्मान देंगे? यह वर्षगांठ अतीत के सम्मान में होने वाले उत्सव से कहीं अधिक है। यहां अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के एक वाक्यांश का भाव मौजूं है, अपने महान भविष्य के लिए समानता और स्वतंत्रता से वर्तमान का अभिषेक कीजिए।
हमारे तिरंगे का यह साल अमन भरा हो और साथ ही, यादगार भी। यह दिखाते हुए कि हम हिन्द की जनता विश्वास में श्रद्धा रखती है। वह आतंक से, नफरत के दुघार्ेष से तिरंगे पर कभी आंच नहीं आने देगी। सहिष्णुता हमारे समाज के बड़े दिलों और स्वच्छ वृत्तियों की पहचान रही है, लेकिन आज जब हमारे बीच छोटी सोच का दायरा बढ़ रहा है, सहिष्णुता पर्याप्त नहीं है। उससे भी आगे हमें चलना होगा। एक-दूसरे की कद्र करनी होगी। हमें खुद को उस 'दूसरे' में और उस 'दूसरे' को अपने में देखना होगा। तिरंगा तीन दिशाओं में तीन लहरों में नहीं, एक ही साथ रहता है। हम जब-जब आनंदमय होते हैं, तब-जब वह झूमता है, हम जब-जब शोक-मग्न होते हैं, तब वह भी हमारे साथ एकचित्त होकर मौन हो जाता है। वह हमारा हमसफर है। हमारा हमदिल, हमदर्द और हमदम है। उसमें कटुता या हिंसा के लिए कोई जगह नहीं, उसके बीच धर्मचक्र जो आसीन है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
सोर्स- Hindustan Opinion Column


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