विश्व की चुनिंदा महाशक्तियों में एक बनेगा हमारा भारत। वह दिन भी आएगा, जब यह भारत सांस्कृतिक समृद्धि ही नहीं, भौतिक प्रगति की दृष्टि से भी दुनिया का नंबर एक राष्ट्र बनेगा। बरस दर बरस गुज़रे योजना आयोग का स्पूतनिक इंजन सपनों से पल्लवित विकास की गाड़ी को बारह पांच वर्षीय आर्थिक विकास योजनाओं के नाम से देश की सरपट भगाने की घोषणाओं के साथ भगाता चला गया, लेकिन सपनों के कांच टूटते गए। जब 8 वर्ष पहले अच्छे दिन आने का कल्पतरु लेकर नए मसीहा देश की गद्दियों पर आसीन हुए तो पता चला कि परिवार नियोजन और जनसंख्या नियंत्रण कर लेने का दावा करने वाला देश 33 करोड़ से एक सौ पैंतालीस करोड़ हो चुका था और अभी इस संख्या के नियंत्रित होने की कोई उम्मीद नहीं थी। देश के मसीहाओं ने अपने परिवार नियोजन कार्यक्रमों की असफलता को स्वीकार करने के स्थान पर इस बीच इसे दुनिया की सबसे बड़ी कार्यशील युवा शक्ति वाला देश कह कर सबका दिल बहलाना चाहा। लेकिन यह कैसी कार्यशील जनता थी कि जिसके पास कोई काम नहीं था?
आबादी के लिहाज से हम चीन को पछाड़ दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने जा रहे हैं, लेकिन किसी ने भी इन चिल्लाहट भरी विजय घोषणाओं के बीच यह नहीं बताया कि यह देश दुनिया की सबसे अधिक बेकार शक्ति का देश भी बनता जा रहा है। इस बीच दिल को बहलाने के लिए उपलब्धि और संतोष का एहसास प्राप्त करने के लिए हमने ऐसे नए-नए तरीके ईजाद कर लिए हैं कि आम लोगों को भी बारात जीमने का एहसास होने लगा है। बारह पंच वर्षीय योजनाओं ने सामाजिक और अर्थिक कायाकल्प के स्थान पर देश को आर्थिक मंदी का उपहार दे दिया, तो हमने योजना आयोग विकास का स्पूतनिक इंजन के स्थान पर सफेद हाथी कह कर नकार दिया। इसी सफेद हाथी से छुटकारा पा कर नीति आयोग बनाया जो अभी तक अपने लिए किसी नई आर्थिक नीति की तलाश कर रहा है। पंचवर्षीय योजनाओं की रेलगाड़ी भारत की अधबनी अधूरी विकास यात्रा के किसी वीरान स्टेशन पर शंटिंग कर रही है और अभी तक अपने लिए किसी सही विकास अवधि की तलाश कर रही है। फिर कोरोना महामारी का प्रकोप एक अचीन्हे, अनजान अभिशाप के रूप में देश पर उतर आया लेकिन उसका मुकाबला नकाबों, दस्तानों और सामाजिक अंतर को कवच बता कर खूबी के साथ देश वासियों ने सरकारी पथनिर्देश के साथ किया है, सरकारी प्रकोष्ठ बताते हैं। बंदिशों और आपसी दूरी रखने के ऐसे महामंत्र मिले कि बिना दवाई मिले ही देश भर में कोरोना का प्रकोप थकता नज़र आने लगा है, लेकिन सुनो, फिर भी राहत की सांस नहीं लेनी है। 'सावधानी हटी, दुर्घटना घटी' का मूल मंत्र सबको मिल गया है।
सुरेश सेठ
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