कोविड के बाद विश्व: दुनिया को फिर से बनाने में होगी आत्मनिर्भर हिंदुस्तान की भूमिका
दुनिया भर में वैश्विक आपदाओं और महामारियों का पुराना इतिहास रहा है
डॉ.रंगनाथ रवि
दुनिया भर में वैश्विक आपदाओं और महामारियों का पुराना इतिहास रहा है। अमूमन हर 100 साल पर मानव जाति को किसी वैश्विक महामारी का सामना करना पड़ता है जिसमें लाखों की संख्या में जान-माल का नुकसान होता आया है।
लगभग 100 साल पहले आए स्पैनिश फ्लू ने भारत में लाखों लोगों को अपना शिकार बनाया था। हैजा भी भारत में महामारी के रूप में अपना कहर बरपा चुका है। लेकिन यह उस दौर की बात है जब विज्ञान अपने शैशवकाल में था।
दरअसल, हम यह मानकर चल रहे थे कि 21वीं सदी में जब एक से बढ़कर एक प्राणघातक रोगों का भी इलाज संभव है ऐसे में कोई महामारी समूचे विश्व को विवश नहीं कर पाएगी।
पश्चिमी देशों को अपने विज्ञान पर बहुत अभिमान था। भारत सहित तमाम देश इसी आधुनिक विज्ञान के पीछे पंक्तिबद्ध खड़े नजर आते थे। लेकिन 21वीं सदी का 21वां साल हमारी कई सारी मान्यताओं को ध्वस्त करने वाला था।
साल 2019 खत्म होने वाला था कि चीन में एक अनजाने वायरस से लोगों के बीमार होने की खबरें आने लगीं। भारत सहित अधिकांश देशों ने इस पर ध्यान नहीं दिया और अंतर्राष्ट्रीय विमानों पर कोई प्रतिबंध नहीं लगा
WHO और कोरोना महामारी
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी लापरवाही भरा रवैया अपनाते हुए इस अनजान वायरस के प्रसार को महामारी घोषित करने में बहुत वक्त लगा दिया। तब तक देर हो चुकी थी। दुनिया के कई देशों में इस वायरस का प्रसार होने लगा। लोग बीमार होने लगे और मरने लगे। इस अनजान वायरस को नाम दिया गया कोविड 19 यानी कोरोना वायरस।
चीन के बाद अमेरिका सहित समूचे यूरोप में इस वायरस के कारण हाहाकार मचने लगा। हैरानी की बात यह है कि कोरोना वायरस ने सबसे अधिक तबाही उन देशों में मचाई जिन्हें दुनिया विकसित देशों की श्रेणी में रखती है।
अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी जैसे देश जो आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं से लैस थे इस अनजान वायरस का मुकाबला नहीं कर पा रहे थे। बड़ी संख्या में बुजुर्गों की मौत होने लगी। इन विकसित देशों की व्यवस्था चरमरा गई। लोग सड़कों पर मरने लगे।
ऑक्सीजन सहित बुनियादी मेडिकल सुविधाओं की किल्लत से लोग मरने लगे। अस्पताल अपनी क्षमता से कहीं ज्यादा काम कर रहे थे लेकिन लोगों को बचा पाने में असमर्थ थे। साल 2020 सारी दुनिया के लिए कोरोना काल के तौर पर अवतरित हुआ। सारी दुनिया से होता हुआ कोरोना वायरस भारत भी पहुंचा और इस देश ने न भूतो न भविष्यति जैसा दृश्य देखा।
प्रधानमंत्री ने पहले जनता कर्फ्यू का आवाहन किया। इसके बाद देश ने लॉकडाउन जैसा शब्द पहली बार न सिर्फ सुना अपितु बहुत करीब से महसूस भी किया। किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी जैसा नजारा देश में देखने को मिला। सड़कें सुनसान हो गईं, लोग घरों में कैद थे और सारे देश में एक डर का माहौल था। भारत में भी कोरोना वायरस ने मौत का तांडव मचाया लेकिन यह उतना भयानक नहीं था जितना अमेरिका और ब्राजील जैसे देशों ने देखा।
चीन ने न सिर्फ अपने देश में इस वायरस के प्रसार की बात छुपाई बल्कि उस पर यह शक भी गहराया कि यह वायरस उसकी शरारत तो नहीं है। ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने दावा किया कि कोरोना वायरस चीन के वुहान शहर की एक लैब में बनाया गया है। कोरोना वायरस को वैश्विक साजिश के तौर पर देखा गया लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हो पाई।
पूरी दुनिया दिखी लाचार, भारत की रही अलग भूमिका
दूसरी तरफ दुनिया के कई देश कोरोना के कारण लाचार दिखे। महामारी और बेबसी के इस दौर में जब आधुनिक चिकित्सा सुविधाएं और विज्ञान ने हाथ खड़े कर दिए भारत में दोबारा उसकी अपनी विद्या यानी कि योग का प्रसार हुआ। सांस की समस्या से निपटने के लिए प्राणायाम एक विकल्प के तौर पर आया। पुराने जमाने की तर्ज पर औषधीय काढ़ा का लोगों के घरों में दोबारा आगमन हुआ।
कोरोना वैक्सीन आने में साल भर से अधिक का वक्त लगा। तब तक भारत के लोगों की रक्षा योग और प्राकृतिक तत्वों के सेवन ने ही किया। भारत ने दुनिया को एक रास्ता दिखाया। अंग्रेजी चिकित्सा व्यवस्था बीमारी के बाद काम में आती है। जबकि योग और प्राणायाम व्यक्ति को बीमार पड़ने से रोकता है। यह फर्क बहुत साफ तौर पर सारी दुनिया को समझ में आया।
भारत की विश्व मंगल की अवधारणा में योग का एक बड़ा योगदान है। आज दुनिया भर के देशों में योग और प्राणायाम की धूम मची हुई है। भारत से ज्यादा विदेशों में लोग योग के मुरीद हो रहे हैं। कोरोना महामारी के दौर में भारत ने दुनिया भर के देशों में जरूरी दवाईयां और मदद भेजी। इनमें विश्व का पावरहाउस अमेरिका भी शामिल था। भारत की विश्वमंगल की भावना से किये गए कामों ने सारी दुनिया में तारीफ बंटोरी।
भारत ने कोरोना महामारी की तीन लहरों का सामना किया है और जनसंख्या के मुकाबले काफी कम नुकसान सहा। इतना ही नहीं जब कोरोना वैक्सीन आई तब भारत ने गरीब देशों को वैक्सीन भी बांटी। हालांकि सरकार के इस फैसले का भारत में ही राजनीतिक दलों ने विरोध किया लेकिन इस कदम से विश्व में भारत की साख बहुत मजबूती से स्थापित हुई।
आपदा की घड़ी में भारत द्वारा उठाए गए इन कदमों से यह बात स्थापित हो गई कि भारत के लिए 'वसुधैव कुटुम्बकम' सिर्फ एक नारा नहीं बल्कि जीवनशैली है। अब तक कोरोना महामारी से दुनिया भर में 50 लाख से अधिक लोगों की जान गई है। 8 लाख से ऊपर अमेरिकी नागरिकों की जान विश्व की सर्वश्रेष्ठ सुविधाएं होने के बावजूद नहीं बच पाई। भारत में अमेरिका से तीन गुना अधिक लोग रहते हैं। ब्राजील में 6 लाख से अधिक लोगों की जान कोरोना के कारण गई।
भारत में भी 4 लाख से अधिक लोग कोरोना महामारी की भेंट चढ़ गए। शोक और त्रासदी का लंबा दौर देखा भारत ने लेकिन वह टूटा नहीं। भारत उस वक्त भी मजबूती से अपने नागरिकों के साथ खड़ा रहा जब दुनिया ठप पड़ चुकी थी। लोग घरों में कैद थे। फैक्ट्री, कारखाने लोगों के काम-धंधे बंद हो चुके थे। बड़ी संख्या ऐसे लोगों की थी जो दिहाड़ी मजदूर थे। जिनकी जिंदगी रोज कमाने रोज खाने के सिद्धांत पर चलती थी
यह देश का बहुत बड़ा तबका था जो दोहरी मार झेल रहा था। घर से बाहर कोरोना मौत बनकर नाच रहा था तो घर पर भूख मार डालती। ऐसे मुश्किल वक्त में भारत ने लोक कल्याणकारी गणतंत्र को चरितार्थ करते हुए करोड़ों लोगों को मुफ्त राशन मुहैया करवाया। आपदा के दौर में मुफ्त राशन के लिए सारी शर्तें हटा ली गईं।
चुनौतियों के बीच भारत
कोरोना की चुनौतियों से हर मोर्चे पर लड़ते हुए भारत ने इस दिशा में दुनिया को हमेशा एक स्पष्ट राय दी। प्रकृति के साथ ही मनुष्य का विकास निहित है। प्रकृति का दोहन आखिरकार हमारे लिए विनाशकारी सिद्ध होगा। अब यह परिणाम नजर भी आने लगे हैं। इसलिए कोरोना महामारी की विभीषिका झेल चुकी दुनिया शायद इस बात को अब बेहतर तरीके से समझ रही होगी।
याद करिए जब कोरोना वैक्सीन आई तो अमेरिका सहित विकसित देशों ने टीका पर एकाधिकार सा कर लिया था। उन्होंने करोड़ों डोज पहले ही खरीद ली थी। गरीब देशों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया था। ऐसी स्थिति में भारत ने उन्हें मुफ्त वैक्सीन बांटी। जब प्राण संकट में हों तब कोई मददगार आपकी जान बचा ले तो उसका अहसान व्यक्ति जीवन भर नहीं भूलता। भारत का यह कदम ये देश भी कृतज्ञता से स्वीकारते हैं।
अब कोरोना की एक और लहर से दुनिया जूझ रही है। यह संभवत: पिछली लहर की तरह विनाशकारी सिद्ध न हो लेकिन इतना तो तय है कि इस महामारी के जख्मों से उबरने में दुनिया को काफी वक्त लग जाएगा। साथ ही कोरोना पश्चात यह विश्व एक बड़े बदलाव से गुजरेगा इसकी पूरी संभावना है। यह दुनिया पहले जैसी नहीं रह जाएगी। कोरोना महामारी ने भारत को भी काफी कुछ सिखाया।
महामारी से पहले सर्जिकल मास्क तक बाहर से आते थे लेकिन अब देश का हर राज्य मास्क, पीपीटी किट और ऑक्सीजन प्लांट जैसी मेडिकल सुविधाओं के मामले में आत्मनिर्भर हो गया है। भारत ने कोरोना महामारी की स्वदेशी वैक्सीन भी बनाई। भारत बायोटेक द्वारा बनाई गई यह स्वदेशी वैक्सीन बड़ी संख्या में लोगों की जान बचाने वाला साबित हुई।
कोरोना की पहली वैक्सीन भी पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट में बनी जिसमें ऑक्सफोर्ड के वैज्ञानिक शामिल थे। इस तरह से दुनिया की जान बचाने वाली वैक्सीन के निर्माण में भारत का योगदान बहुत बड़ा रहा। भारत ने जिस तेजी से मेडिकल सुविधाओं में खुद को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम किया है यह आने वाले दिनों में हेल्थकेयर के क्षेत्र में भारत के वैश्विक केंद्र बनने का शंखनाद है।
वर्तमान में भी दुनिया भर से मरीज भारत आते हैं अच्छे और सस्ते इलाज के लिए। लेकिन अब भारत विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए ही नहीं बल्कि योग और आयुर्वेद के वैश्विक केंद्र के तौर पर दुनिया भर में दोबारा स्थापित होगा और शीर्ष पर जाएगा। यह भारत के विश्वगुरू बनने का एक बहुत बड़ा अवसर साबित होगा। भारत को कोरोना काल के बाद वैश्विक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए कदम उठाना होगा।
दुनिया के सामने साफ हुए चीन के इरादे
कोरोना महामारी ने अमेरिका की लाचारी और चीन की साजिश को दुनिया के सामने लाकर रख दिया है। चीन की बाजारवाद की नीति में निहित उसकी साम्राज्यवादी सोच और कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर उठाए जा रहे सवाल ने उसकी वैश्विक साख को जोरदार धक्का पहुंचाया है। अब चीन के प्रति हर देश के मन में संशय है।
चीन ने न सिर्फ प्रकृति बल्कि अपने मानव संसाधनों का भी पर्याप्त दोहन किया है। कोरोना महामारी के दौरान चीन में कितने लोगों की जान गई इस पर ही कई सारे सवाल हैं। ऐसे में चीन के वैश्विक लीडर बनने के मंसूबों पर यह करारी चोट साबित होगी। कोरोना महामारी के पश्चात वैश्विक लीडर बनने के चीन के इरादों के खिलाफ दुनिया के कई देश आगे आ गए हैं। यह भविष्य में होने वाले संघर्षों की पूर्व पीठि का भी साबित हो सकता है।
भारत के लिए यह परिस्थिति काफी बेहतर है। वैश्विक स्तर पर भारत के प्रति एक सदभावना स्थापित हुई है। कोरोना महामारी के दौरान भारत ने अमेरिका को रैमडिसिवर दवाएं मुहैया कराई तो मंगोलिया को कोरोना वैक्सीन भी बांटी। इस महामारी ने भारत को भी कुछ जरूरी सबक सिखाए हैं। भारत अपना सबक सीख कर मजबूती से आगे बढ़ेगा।
आत्मनिर्भर भारत की अगुवाई में दुनिया के देश खतरा महसूस नहीं करेंगे। यह भारत की वैश्विक स्वीकार्यता को स्थापित करेगा। भारत कभी भी विस्तारवादी नीति का पहरूआ नहीं रहा है। दुनिया को अब एक ऐसे ही अगुवा की जरूरत है जो किसी दूसरे देश के लिए खतरा न साबित हो।
आज भारत के युवा दुनिया की सबसे बड़ी तकनीकी कंपनियों में सबसे बड़े पदों पर हैं। गूगल से लेकर माइक्रोसॉफ्ट तक का मुखिया भारतीय है। ट्विटर की कमान भी एक भारतीय के ही हाथों में है। भारत ने दुनिया के बेहतरीन सीईओ तो पैदा कर रहा है लेकिन उसे विश्वगुरू बनने के लिए वैश्विक कंपनियां भी भारत में स्थापित करनी होगी।
सरकारों को वह माहौल बनाना होगा जिससे युवा भारत में ही स्टार्टअप शुरू करें और उसे दुनिया की शीर्ष कंपनियों में शामिल कराएं। सरकार ने इसका बुनियादी ढांचा तो बना दिया है लेकिन इस क्षेत्र में युद्धस्तर पर काम करने की जरूरत है। भारतीय दिमाग दुनिया भर की टॉप कंपनियों को आगे बढ़ा रहे हैं सोचिए अगर उचित अवसर और माहौल बना दिया गया तो ये युवा भारत को कहां से कहां तक पहुंचा सकते हैं।
सबसे महत्वपूर्ण यह है कि भारत इस ऐतिहासिक मौके को गंवाए नहीं। भारत इस युगधर्म से मुंह न चुराए। भारत की तरफ दुनिया उम्मीद की नजरों से देख रही है। कोरोना महामारी के झटके के बाद भारत दोबारा उठ खड़ा हुआ है।
भारत की चाल में वहीं रवानी होनी चाहिए जो इसकी युवा आबादी की चाल में है। भारत को दुनिया से कदमताल करने के लिए पूरी तरह कमर कस लेना होगा। वरना इस ऐतिहासिक मौके को चूकने के बाद भारत के पास सिवाय अफसोस करने के कोई और विकल्प शेष नहीं बचेगा।
चीन की बढ़ती ताकत और उसकी विस्तारवादी नीति का शिकार भारत को आज नहीं तो कल होना ही पड़ेगा। इसलिए जरूरी है कि भारत कोरोना काल के बाद के अवसरों और चुनौतियों को ठीक-ठीक पहचान ले और उसके अनुरूप रणनीति तैयार कर ले।
कोरोना महामारी के बाद दुनिया में बदलाव आने अवश्यंभावी हैं। भारत के पास उस जीवन दर्शन की थाती मौजूद है जो प्रकृति को मां मानते हुए विकास करना जानती है। भारत ने आध्यात्मिक तौर पर दुनिया को सदियों से राह दिखाई है। राम,कृष्ण,बुद्ध और गुरूनानक से होता हुआ यह सिलसिला स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी तक आता है।
अब वक्त है कि भारत अपने आध्यात्मिक और नैतिक बल से संचालित होकर वैश्विक नेता बनने की दिशा में प्रयास करे। कोरोना महामारी ने यूं तो हमसे बहुत कुछ छीन लिया है लेकिन हर आपदा बहुत कुछ सिखा कर भी जाती है।
कोरोना ने भारत को बहुत कुछ सिखाया है। जैसे कि हम आपातकालीन सेवाओं और दवाईंयों के लिए दूसरे देशों के मोहताज नहीं रह सकते। यह भारत को आत्मनिर्भर भारत बनाने की दिशा में एक जरूरी सबक साबित होगा। कोरोना महामारी ने भारत के वैश्विक लीडर बनने की भूमिका भी लिख दी है।
अब यह भारत पर है कि वह इस मौके को यूं ही जाने देता है या आपदा को अवसर बनाकर देश और दुनिया की तकदीर बदलता है। यह भारत से अधिक दुनिया के लिए जरूरी है कि उसे भारत की दृष्टि मिले। विश्वकल्याण से संचालित भारत जैसी महाशक्ति ही दुनिया के बिगड़ते संतुलन को बचा सकती है। कोरोनाकाल में बड़ी संख्या में युवा बेरोजगार हुए हैं, कई बच्चों की पढ़ाई छूट गई है।
भारत सरकार को यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि देश की बड़ी युवा आबादी में निराशा न घर कर जाए। युवाओं के लिए कार्यक्रम प्राथमिकता होनी चाहिए। किसी भी देश के लिए इतनी बड़ी युवा आबादी वरदान है। जरूरी यह है कि हम इस बेशकीमती मानवसंसाधन का समुचित प्रयोग करें।
कोरोना महामारी के पश्चात बदली हुई वैश्विक परिस्थितियों में भारत के लिए यह सुनहरा अवसर है। भारत को मजबूत और आत्मनिर्भर बनना होगा जिसकी दिशा में हो रहे प्रयासों पर हमने नजर डाली। आत्मनिर्भर भारत की सफलता में ही विश्व का भी मंगल समाया हुआ है। कोरोना महामारी के सबकों को सीखते हुए अगर भारत सही दिशा में और तेजी और मजबूती से बढ़ता है तो यह कहने में कोई संशय नहीं है कि 21वीं सदी में यह कोरोनाकाल भारत की अगुवाई के शंखनाद के तौर पर याद रखा जाएगा।