क्या कांग्रेस को 2024 का लोकसभा चुनाव जिता पाएंगे प्रशांत किशोर?

कांग्रेस (Congress) 2024 का लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) जीतने के लिए चुनावी रणनीति का प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) पर दांव लगाने पर विचार कर रही है

Update: 2022-04-17 11:01 GMT

कांग्रेस (Congress) 2024 का लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) जीतने के लिए चुनावी रणनीति का प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) पर दांव लगाने पर विचार कर रही है. लोकसभा चुनावों से पहले होने वाले कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी वो प्रशात किशोर की चुनावी रणनीति आजमा सकती है. दरअसल 2014 और 2019 के लगातार दो लोकसभा चुनावों के अलावा के कई राज्यों में विधानसभा चुनाव हार चुकी कांग्रेस को ये कदम उठाना पड़ रहा है. प्रशांत किशोर ने शनिवार को कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) और वरिष्ठ नेताओं के सामने 2024 में जीत की रणनीति पर एक प्रजेंटेशन दिया है. अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का समूह इस पर विचार करके सोनिया गांधी को अपनी राय देगा कि प्रशांत किशोर की सेवाएं ली जाएंगी या नहीं.

अभी यह साफ नहीं है कि प्रशांत किशोर बाकायदा कांग्रेस में शामिल होकर पार्टी पदाधिकारी के रूप में कोई बड़ी जिम्मेदारी निभाएंगे या सिर्फ चुनावी रणनीतिकार के रूप में कांग्रेस के साथ काम करेंगे. इस पर कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि पार्टी में ज्यादातर नेता प्रशांत किशोर को पार्टी में शामिल करने के बजाय बाहर से ही उसकी सेवा ले जाने देने के हक में हैं. हालांकि प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने की चर्चा से करीब साल भर से चल रही है. लेकिन इस पर कोई ठोस फैसला नहीं हो पाया. पार्टी में शामिल होने पर उनको दिए जाने वाले पद और भूमिका को लेकर वरिष्ठ नेताओं के बीच आम राय नहीं बन पा रही है. सूत्रों के मुताबिक प्रशांत किशोर पार्टी में अहमद पटेल की तरह बड़ी भूमिका चाहते हैं. हालांकि इसके लिए पार्टी का नेतृत्व तैयार नहीं है.
क्या हैं प्रशांत किशोर के सुझाव?
कांग्रेस के सूत्रों के मुताबिक, करीब चार घंटे चली इस बैठक में प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को दिए अपने प्रजेंटेशन में कांग्रेस को सलाह दी है कि वो 2024 के लोससभा चुनाव में सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के बजाय सिर्फ 370 सीटों पर ही फोकस करे. बाकी सीटें अपने अपने सहयोगी दलों के लिए छोड़ें. इसी रणनीति से बीजेपी को हराया जा सकता है. सूत्रों के मुताबिक, प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में गठबंधन के साथ लोकसभा चुनाव लड़ने का सुझाव दिया है. जबकि बिहार, उत्तर प्रदेश उड़ीसा जैसे राज्यों में अकेले चुनाव लड़ने की राय दी है. बताया जा रहा है कि प्रशांत किशोर की इस राय पर राहुल गांधी समेत पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने सहमति जताई है. हालांकि इस पर आखिरी फैसला कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का समूह करेगा. सोनिया गांधी जल्दी ही इसका गठन करेंगी.
क्या विधानसभा चुनाव की भी रणनीति बनाएंगे प्रशांत?
चर्चा यह भी है कि प्रशांत किशोर के साथ हुई कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की बैठक इस साल के आखिर में होने वाले गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव को लेकर हुई है. कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि पहले कांग्रेस को यह तय करना है कि 2024 में लोकसभा का चुनाव जीतने के प्रशांत किशोर की सेवाएं ली जाएंगी या नहीं. उसी के बाद यह तय होगा कि लोकसभा चुनाव से पहले होने वाले विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी प्रशांत किशोर ही पार्टी के लिए चुनावी रणनीति बनाएंगे या फिर इन राज्यों में पार्टी अपने हिसाब से विधानसभा चुनाव लड़ेगी. बता दें कि प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को गुजरात विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए रणनीति बनाने की पेशकश की थी. अब ये पूरी तरह साफ हो गया है कि प्रशांत किशोर की प्रेजेंटेशन पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के समूह की रिपोर्ट आने के बाद ही तमाम मुद्दों पर तस्वीर साफ होगी.
कांग्रेस को कई राज्यों में जीतना होगा
प्रशांत किशोर लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि बीजेपी को हराने के लिए विपक्ष एक होना चाहिए. केंद्र में कांग्रेस का होना बेहद जरूरी है. कांग्रेस खुद को मजबूत करके ही केंद्र की सत्ता के लिए दावेदारी पेश कर सकती है. मजबूत कांग्रेस के साथ ही क्षेत्रीय दल आ सकते हैं. क्षेत्रीय दलों को अपने पीछे लाने के लिए कांग्रेस को अगले लोकसभा चुनाव से पहले होने वाले छह राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ बेहतर प्रदर्शन करना होगा. बता दें कि इस साल के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं. जबकि अगले साल पहले कर्नाटक और फिर राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं. कर्नाटक को छोड़कर बाकी सभी राज्यों में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है. कर्नाटक में जनता दल सेकुलर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाता है. प्रशांत किशोर चाहते हैं कि कांग्रेस जेडीएस के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़े.
अंदरूनी गुटबाज़ी ने बढ़ाई कांग्रेस की मुश्किल
राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के मुक़ाबले बेहतर प्रदर्शन के लिए कांग्रेस को जी तोड़ मेहनत करनी होगी बल्कि ठोस रणनीति भी बनानी होगी. संगठन को मज़बूत बनाना होगा. अगर कांग्रेस गुजरात, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश में बीजेपी को हरा दे और राजस्थान के साथ छत्तीसगढ़ की अपनी सरकार बचा ले तो वो 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को टक्कर देने की स्थिति में आ सकती है. लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा. गुजरात, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में आम आदमी पार्टी भी कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा रही है. तीनों ही राज्यों में कांग्रेस अंदरूनी गुटबाज़ी से जूझ रही है. उसके कई नेता आम आदमी पार्टी का दामन थामने की तैयारी में हैं. इन राज्यों के मुक़ाबले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सामने चुनौती और भी बड़ी है. इसे समझने के लिए पिछले दो लोकसभा चुनाव के नतीजों पर भी नज़र डालनी होगी.
क्या हुआ था 2014 के लोकसभा चुनाव में?
2014 में कांग्रेस केंद्र की सत्ता से बाहर हुई. तब उसे सिर्फ 10 करोड़ 69 लाख वोट मिले थे. थब उसकी सीटें 2009 के लोकसभा चुनाव में उसे मिली 200 6 से घटकर सिर्फ 44 रह गई थीं. उसे 162 सीटों का नुकसान हुआ था. जबकि कांग्रेस को सत्ता से हटाकर हटाने वाली बीजेपी को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 166 सीटों का फायदा हुआ. वह 116 से बढ़कर सीधे 282 पर पहुंच गई थी. बीजेपी को 2009 में मिले 18.8% वोटों के मुक़ाबले 31% वोट मिले थे. उसे मिलने वाले कुल वोटों की संख्या 17 करोड़ 16 लाख थी. इस तरह बीजेपी ने कांग्रेस को बुरी तरह हराया था. तब प्रशांत किशोर बीजेपी के लिए काम कर रहे थे. उन्होंने नरेंद्र मोदी के लिए चाय पर चर्चा जैसा बेहद कामयाब अभियान चलाया था.
क्या हुआ था 2019 के लोकसभा चुनाव में?
2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 2014 के मुकाबले 0.1 8% ज्यादा वोट मिले. उसे कुल 11 करोड़ 94 लाख वोट और 52 सीटें मिली थीं. यानी उसे सिर्फ 8 सीटों का फायदा हुआ. जबकि बीजेपी को 6.36% वोटों के साथ 21 सीटों का फायदा हुआ. बीजेपी ने पहली बार 300 का आंकड़ा पार करते हुए 303 सीटें जीती थी. इस चुनाव में बीजेपी को 37. 36% वोटों के साथ 22 करोड़ 90 लाख वोट मिले थे. बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों के साथ कुल 353 सीटें जीती थी जबकि कांग्रेस अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर सौ का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई थी. पूरा यूपीए महज़ 91 सीटों पर सिमट गया था. अब भी कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की इसी स्थिति बहुत ज्यादा अच्छी नहीं है.
मोदी की जीत में प्रशांत किशोर का कितना योगदान?
देश के मौजूदा राजनीतिक हालात में कांग्रेस की नैया लगातार डूबती जा रही है. इस डूबती हुई नैया को प्रशांत किशोर किनारे लगा पाएंगे, अभी पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता. प्रशांत किशोर के नाम जीत के जो रिकॉर्ड दर्ज है उनमें 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद, बिहार, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, और तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव का नाम आता है. इन राज्यों के विधानसभा चुनाव में उन्होंने रणनीति बनाई है. 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी लगातार 13 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे थे. प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित होने तक भारतीय राजनीति में उनका अपना जलवा कायम हो चुका था. इसलिए उनकी जीत में प्रशांत किशोर से ज्यादा उनका अपना योगदान रहा. मोदी की जीत को प्रशांत किशोर की जीत नहीं कहा जा सकता.
विधानसभा चुनावों में प्रशांत किशोर की भूमिका
दावा किया जाता है कि 2015 में बिहार में कुमार से लेकर 2021 तक पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की जीत में प्रशांत किशोर न महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. लेकिन गहराई से विश्लेषण करने पर यह दावा सच्चा नहीं लगता. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार लगातार 10 साल मुख्यमंत्री रहे थे. 2015 का चुनाव उन्होंने बीजेपी से नाता तोड़कर RJD के साथ मिलकर लड़ा था. माहौल उनके पक्ष में पहले से बन चुका था. 2020 का विधानसभा चुनाव केजरीवाल ने अपने 5 साल के कामकाज के नाम पर लड़ा था. लिहाजा उनकी जीत को प्रशांत किशोर की रणनीति का नतीजा नहीं कर सकते. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी भी लगातार दो बार चुनाव जीत चुकी थीं और तमिलनाडु में एक बार DMK और एक बार AIADMK की सरकार बनने का परंपरा रही है.

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