उत्तर प्रदेश के सियासत में मुसलमान मतदाताओं का वोट महत्वपूर्ण क्यों है?
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में ब्राह्मण वोटों को लुभाने के बाद अब सियासी पार्टियों की नजर 20 फीसदी मुसलमानों पर है
पंकज कुमार उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में ब्राह्मण वोटों को लुभाने के बाद अब सियासी पार्टियों की नजर 20 फीसदी मुसलमानों पर है. बीएसपी, सपा, कांग्रेस और ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM) से लेकर पीस पार्टी और उलेमा काउंसिल जैसी पार्टियों की नजर मुस्लिम वोटर्स पर है. इस कवायद में बीजेपी भी पीछे नहीं है. लेकिन मुस्लिम मतदाता इस बार किसके पाले में जाएंगे इसको लेकर कंफ्यूजन की स्थिति बरकरार है. सूबे के 143 सीटों पर मुस्लिम मतदाता बीस फीसदी से ज्यादा हैं. इनमें 70 से ज्यादा ऐसी सीटें हैं, जहां मुस्लिम आबादी 30 फीसदी को पार कर चुका है.
सूबे में दो दर्जन से ज्यादा ऐसी सीटे हैं जहां मुस्लिम उम्मीदवार अपने दम पर चुनाव जीत सकते हैं और 100 से ज्यादा सीटों पर उनका सीधा असर है. इसलिए यूपी के तराई, वेस्ट और ईस्ट यूपी की कई सीटों पर मुस्लिम वोटों का सीधा असर दिखाई पड़ता रहा है. पिछले तीस सालों में मुस्लिम मतदाता एसपी और बीएसपी के लिए वोट डालते रहे हैं. जबकि उससे पहले वो कांग्रेस के परंपरागत मतदाता रहे हैं. लेकिन राम मंदिर आंदोलन के बाद मुस्लिम मतदाताओं ने कांग्रेस से नाता तोड़ लिया और तब से कांग्रेस यूपी से लगभग उखड़ चुकी है.
ओवैसी बिहार की तर्ज पर होंगे पास या बंगाल की तरह होंगे फेल
असदुद्दीन ओवैसी यूपी में छोटे-छोटे दलों के साथ मिलकर ओम प्रकाश राजभर की अगुवाई में भागीदार संकल्प मोर्चा का हिस्सा हैं. ओवैसी ने राज्य की 100 मुस्लिम बहुल सीटों पर कैंडिडेट उतारने का ऐलान किया है. ओवैसी मुस्लिम प्रतिनिधित्व को सियासी हथियार बनाकर उन्हें लुभाने में लगे हुए हैं. इसीलिए उनके निशाने पर बीजेपी के साथ समाजवादी पार्टी भी है. ओवैसी मुस्लिम युवाओं के बीच पॉपुलर होते जा रहे हैं. लेकिन ये लोकप्रियता 2022 के चुनाव में बिहार की तर्ज पर कामयाबी दे सकेगा इसके बारे में कुछ कहना मुश्किल है. वैसे बंगाल में बिहार के बाद मुस्लिम मतदाताओं ने ओवैसी को ज्यादा तवज्जों नहीं दी और बीजेपी को हराने के लिए पूरी तरह से टीएमसी का साथ दिया.
अखिलेश की नजर अपने कोर वोट बैंक पर
समाजवादी पार्टी भी इस कड़ी में ब्राह्मणों को लुभाने के अलावा मुस्लिम मतदातओं को लुभाने में जुटी हुई है. एसपी का जोर माई (मुस्लिम यादव) समीकरण को मजबूत करने पर है. जहां 20 फीसदी मुसलमान और दस फीसदी यादवों का मत उन्हें सत्ता में वापसी कराता रहा है. 1990 का गोलीकांड और उसके बाद बाबरी विध्वंस के चलते सूबे में जो माहौल बदला उसमें मुस्लिम वोटों का सबसे ज्यादा फायदा मुलायम सिंह यादव की पार्टी सपा को मिला.
बीजेपी मुलायम सिंह को 'मुल्ला मुलायम' कहकर पुकारती रही और अब सीएम योगी अखिलेश यादव को 'अब्बाजान' के जरिए घेरने में जुटे हुए हैं. एसपी अपने कोर वोट बैंक को पूरी तरह मज़बूत कर ब्राह्मण और कुछ अन्य ओबीसी जातियों के सहारे सत्ता को हासिल करने की फिराक में है.
पश्चिमी यूपी में बीएसपी और आरएलडी दोनों में मची है होड़
वहीं मायावती मुस्लिमों को सपा और कांग्रेस से दूर रखने के लिए मलियाना और मुजफ्फरनगर दंगे की याद दिला रही हैं. मायावती पश्चिम यूपी में दलित-मुस्लिम समीकरण के जरिए कई बार अपना परचम लहरा चुकी हैं. मायावती ने पश्चिम यूपी में मुस्लिम चेहरा शमसुद्दीन राइन पर दांव खेला है. 2022 के चुनाव में मायावती की कोशिश मुस्लिम वोटों के अलावा ब्राह्मण और दलित समीकरण बनाने की है, जिसकी मदद से वह वापस सत्ता पर काबिज हो सकें.
2007 चुनाव में बीएसपी की जीत की एक बड़ी वजह ब्राह्मण-दलित और मुस्लिम का गठजोड़ था. 2019 के लोकसभा चुनाव में दो मुस्लिम सांसद पश्चिम यूपी और एक पूर्वांचल से जीते हैं. इसलिए पश्चिम यूपी में मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर मायावती दलित-मुस्लिम समीकरण को साध कर सत्ता में वापसी की फिराक में हैं. पश्चिम यूपी में राष्ट्रीय लोकदल के नेता और चौधरी अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी मुस्लिम और जाट मतदाताओं का गठजोड़ बनाने की कवायद में भिड़ गए हैं.
मुज़फ्फरनगर दंगे के बाद सबसे ज्यादा नुकसान राष्ट्रीय लोकदल को हुआ है. पिछले तीन चुनावों में हार का सामना कर चुकी आरएलडी अपने वजूद को बचाने के लिए पूरा जोर लगाने में जुट गई है. जयंत चौधरी 'भाईचारा जिंदाबाद' के तहत तकरीबन सैंकड़ों छोटे-बड़े सम्मेलन करा चुके हैं. एसपी के साथ आरएलडी जाट के अलावा मुस्लिम मतदाताओं को साधने में लगी है.
प्रियंका खुद मैदान में उतरकर परंपरागत वोटर्स को मनाने में जुटी हैं
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी मुस्लिम वोटों को साधने में किसी से पीछे नहीं हैं. सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलन के में प्रियंका गांधी ने बीजेपी के फैसले का जमकर विरोध किया था. कांग्रेस की कोशिश इसी को भुनाने की फिराक में है. कांग्रेस मुस्लिम मतदाताओं का भरोसा जीतने के लिए अल्पसंख्यक सम्मेलन के जरिए उलेमाओं का सहारा ले रही है. एसपी के राज में हुए दंगे का हवाला देकर मुस्लिम मतदातओं को रिझाने का प्रयास कांग्रेस द्वारा लगातार जारी है. कांग्रेस एसपी और बीएसपी पर आरोप लगा रही है कि पिछले तीस सालों से एसपी और बीएसपी सिर्फ और सिर्फ वोटों के लिए मुस्लिम मतदाताओं का इस्तेमाल करती रही है.
मुस्लिम जनाधार के दम पर उतरने वाली पार्टी सियासी मैदान में कहां तक बाजी मार पाएगी
पीस पार्टी की अंसारी समाज के बीच गहरी पैठ मानी जाती है. इसका प्रभाव पूर्वांचल के गोरखपुर, वाराणसी, आजमगढ़ जैसे जिलों में रहा है. 2012 में इक्के दुक्के सीट पर कामयाब रही पीस पार्टी 2017 में एक सीट जीतने में भी नाकाम रही थी. आजमगढ़ और जौनपुर जैसे जिलों में उलेमा काउंसिल कुछ हद तक प्रभावशाली रहा है. साल 2022 के चुनाव में दोनों पार्टियां मुस्लिम मतदाताओं के दम पर किस्मत आजमाने का प्रयास कर रही है. खास बात यह है कि बाटला हाउस एनकाउंटर के बाद बनी उलेमा काउंसिल और पीस पार्टी का सियासी आधार पूर्वांचल ही है. अब इस उलझे समीकरण में ये देखना दिलचस्प होगा की यूपी का मुस्लिम वोटर्स किधर जाता है या फिर इस बड़े चंक के वोट बंटवारे का फायदा आखिर में बीजेपी को ही मिलता है.