BJP ने द्रौपदी मुर्मू को क्यों चुना ?

अब जबकि द्रौपदी मुर्मू BJP की राष्ट्रपति उम्मीदवार बना दी गई हैं

Update: 2022-06-22 14:01 GMT

DR. Santosh Manav

सोर्स- Lagatar News

अब जबकि द्रौपदी मुर्मू BJP की राष्ट्रपति उम्मीदवार बना दी गई हैं, यह सवाल पूछा जा सकता है कि इससे BJP को क्या मिलेगा ? मिलेगा से पहले यह जान लीजिए कि विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा हैं. चंद्रशेखरजी और अटलजी की सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा. जड़ बिहार के नालंदा जिले के अस्थावां में है.अब हजारीबाग के डेमोटांड़ में घर बनाकर स्थायी हो गए हैं. विधानसभा रांची और लोकसभा का चुनाव हजारीबाग से जीतते रहे हैं, इसलिए झारखंडी हो गए हैं. तेज-तर्रार नौकरशाह, जो 24 साल की सेवा के बाद राजनीति में आए. यहां भी बहुत कुछ पा गए. राज्यसभा- लोकसभा के सदस्य, MLA, बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता, केंद्र में वित्त और विदेश मंत्री.अब सर्वोच्च पद के लिए मैदान में हैं.

यह जो हैं द्रौपदी मुर्मू : ओडिशा के मयूरभंज जिले से आती हैं. उनका विधानसभा क्षेत्र रायरंगपुर है. झारखंड के जमशेदपुर से बिल्कुल सटा. जमशेदपुर वाले रायरंगपुर को अपना ही इलाका मानते हैं. बाजार करने चले जाते हैं. मुर्मू सामान्य परिवार की अति सामान्य महिला थीं, जिनका सपना परिवार की परवरिश भर था. लेकिन, किस्मत देखिए, देश के सर्वोच्च पद तक लगभग पहुंच ही गई हैं. BA पास हैं. राजनीतिक सफर भी बहुत चमकदार नहीं है. 1997 में रायरंगपुर नगर पंचायत से पहली बार काउंसलर बनी. दो हजार में BJP ने टिकट दिया, तो MLA बन गई. BJP-BJD सरकार में मंत्री बन गई. 2009 में चुनाव हार गई. राजनीतिक सफर समाप्त मान लिया गया. 2015 में अचानक से झारखंड की राज्यपाल बना दी गईं.
वह अपनी बूढ़ी मां-सी : पूरे पांच साल राज्यपाल रहीं. कम बोलने वाली, भद्र महिला. कोई विवाद नहीं. कोई आरोप नहीं. रांची के एक वरिष्ठ पत्रकार की टिप्पणी है : 'वह अपनी बूढ़ी झारखंडी मां-सी लगती हैं. लगता ही नहीं कि गवर्नर से बात हो रही है. सो, यशवंत हों या द्रौपदी राष्ट्रपति कोई झारखंडी ही होगा. अपने दोनों बेटों और पति को असमय खो चुकीं द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति भवन पहुंचती हैं (संभावना प्रबल है) तो एक बेटी-दामाद, नाती-पोते ही साथ होंगे. अब मूल सवाल BJP ने द्रौपदी मुर्मू को ही क्यों चुना? कारण बहुतेरे हैं. एक-एक कर जानिए-
सकल हिंदू समाज : अस्सी-बीस वाली राजनीति मजबूत होगी. सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास महज नारा है. दिमाग में अस्सी-बीस है. BJP की राजनीति माइनस मुस्लिम वाली है. हर नीति-निर्धारण में यह दिखता है. उन्हें जैन, बौद्ध, सिख, पारसी, ईसाई सब चलेगा, मुस्लिम नहीं. संघ दर्शन से प्रेरित नीति. संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य गुरूजी के लेख-भाषण संग्रह 'बंच ऑफ थाट्स' पढ़ लीजिए. सबकुछ साफ हो जाएगा. उसमें साफ-साफ संकेत है- हिंदू-मुस्लिम एकता संभव नहीं है. यह संस्कृतियों का संघर्ष है. संघ दर्शन बौद्ध, जैन, सिख को अपनी ही शाखा मानता है. ईसाई, पारसी भी चलेंगे. लेकिन, मुसलमान नहीं. संघ दर्शन से बीजेपी की नीति प्रभावित है. ऐसे में द्रौपदी मुर्मू के चयन को सकल हिंदू समाज को एकजुट रखने-करने की कोशिश का हिस्सा माना जा सकता है. कदाचित इसलिए तमाम अनुकूलताओं के बावजूद आरिफ़ मोहम्मद खान नहीं चुने गए.
गुजरात में चुनाव है भाई : इसी साल गुजरात में चुनाव है. वहां बीजेपी लगातार चार बार सत्ता में आ चुकी है. पांचवी बार लड़ाई है. गुजरात में 15 प्रतिशत वोटर आदिवासी हैं. 26 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. ओवरआल 35-40 सीटों पर आदिवासी वोटर असरदार हैं. गुजरात के आदिवासी किसी एक पार्टी के वोटर नहीं हैं. वे समय के साथ जनता दल, कांग्रेस, BJP को वोट करते रहे हैं. BJP अब एकमुश्त समर्थन की उम्मीद कर सकती है. राजनीति में प्रतीक कहें या जातीय स्वाभिमान [ caste pride] का महत्व होता ही है. गुजरात के बाद 2023 में मध्य प्रदेश में चुनाव है. MP में 22 प्रतिशत आदिवासी वोटर हैं. 47 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. 2013 में इनमें से BJP 32 सीटें जीती थी. लेकिन, 2018 में घटकर 16 रह गई. फिर झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ है ही. यानी BJP दूर की सोच रही है.
इमेज बिल्डिंग : BJP की इमेज कमजोर वर्ग की पार्टी की बनेगी. राहुल गांधी के सुट-बूट वाले आरोप का जवाब. अभी सोशल मीडिया पर रतन टाटा को राष्ट्रपति बनाने का अभियान चला था. वेंकैया नायडू, राजनाथ सिंह, आरिफ मोहम्मद खान के नाम चले. लेकिन, लाटरी द्रौपदी मुर्मू के नाम निकली.


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