इसका इंतजार था : पहला बांध सुरक्षा कानून

अपनी विधायी शक्ति का प्रयोग करते हुए राष्ट्रीय हित में बांध सुरक्षा कानून बनाकर एक बड़ी वैधानिक कमी दूर की है।

Update: 2021-12-18 01:47 GMT

आखिरकार बहुप्रतीक्षित और बांध सुरक्षा कानून अधिनियमित हो गया है। विगत दो दिसंबर को राज्यसभा में बांध सुरक्षा विधेयक, 2019 पारित किया गया। लोकसभा ने इसे दो अगस्त, 2019 को पारित कर दिया था। दोनों सदनों में कई विपक्षी सदस्यों की मांग थी कि विधेयक को स्थायी समिति को भेजा जाए। पर सरकार ने वह मांग खारिज कर दी। यह विधेयक 2010 के विधेयक पर स्थायी संसदीय समिति की रिपोर्ट पर आधारित है।

नए बांध सुरक्षा विधेयक में जल संसाधन समिति की अधिकांश सिफारिशों को (7वीं रिपोर्ट,15वीं लोकसभा) शामिल किया गया है। बांध सुरक्षा विधेयक, 2010 को 15वीं लोकसभा में 30 अगस्त, 2010 को पेश किया गया था, जिसे जांच के लिए जल संसाधन समिति को भेजा गया था। समिति ने गहन जांच व विवेचना के बाद अगस्त, 2011 में संसद को अपना प्रतिवेदन दिया। बांध महवपूर्ण बुनियादी ढांचा है, जिसका निर्माण सिंचाई, बिजली उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण और पेयजल तथा औद्योगिक उत्पादों की आपूर्ति जैसे उपयोगों के लिए होता है।
असुरक्षित बांध मानव जीवन तथा संपत्तियों के लिए खतरा है। समिति ने विधेयक में कई गंभीर खामियां पाई। जैसे, उसमें दंडात्मक प्रावधान का अभाव था, महत्वपूर्ण शब्दावलियों को परिभाषित नहीं किया गया था, दुर्घटना से होने वाली क्षति को बांध सुरक्षा की परिधि से बाहर रखा गया था, बांध सुरक्षा संगठन की संरचना का प्रावधान, प्राकृतिक या मानवीय चूक से बांध टूटने से होने वाली क्षति आदि का प्रावधान नहीं था। इन सभी सिफारिशों को नए कानून में शामिल किया गया है।
बांधों की सुरक्षा के लिए मौजूदा व्यवस्था की समीक्षा करने और एकीकृत प्रक्रिया विकसित करने के लिए केंद्र सरकार ने 1982 में, अध्यक्ष, केंद्रीय जल आयोग की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी। उसने अपनी रिपोर्ट में बांध सुरक्षा पर कानून की जरूरत को रेखांकित करते हुए सभी बांधों के लिए एकीकृत बांध सुरक्षा प्रक्रिया की सिफारिश की। इसी के अनुरूप बिहार ने बांध सुरक्षा अधिनियम, 2006 अधिनियमित किया, तो केरल ने अपने सिंचाई अधिनियम में संशोधन किया। जबकि कुछ राज्यों ने बांध सुरक्षा के लिए केंद्रीय कानून की जरूरत बताई।
तदनुसार, केंद्र सरकार ने बांध सुरक्षा विधेयक, 2010 लोकसभा में पेश किया, जिसे जल संसाधन पर संसदीय स्थायी समिति के पास भेजा गया। समिति द्वारा विधेयक में व्यापक संशोधन की सिफारिश पर जल संसाधन मंत्रालय ने विधेयक वापस लिया और 16वीं लोकसभा में एक नया बांध सुरक्षा विधेयक, 2018 पेश किया। पर 16वीं लोकसभा के भंग होते ही वह विधेयक खत्म हो गया। सरकार ने 17वीं लोकसभा के पहले सत्र में बांध सुरक्षा विधेयक, 2019 पेश किया, जिसे राज्यसभा ने वर्तमान सत्र में पारित किया है।
बांध सुरक्षा अधिनियम, 2019 में बांध टूटने से नुकसान को रोकने, बांध सुरक्षा के मानक बनाने, बांध सुरक्षा नीतियों को विकसित करने और बांध सुरक्षा संबंधित आवश्यक नियम बनाने के लिए राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति के गठन का प्रावधान है। नए कानून के तहत एक राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण की स्थापना होगी और बांध के मालिक का दायित्व होगा कि वह बांध सुरक्षा और रख-रखाव करे, मानसून से पूर्व और बाद में, भूकंप और बांध दुर्घटना के बाद राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति जोखिम मूल्यांकन और बांध मरम्मत का काम करे।
यह कानून संबंधित राज्यों पर बांधों के संचालन और रख-रखाव की निगरानी का दायित्व डालता है। राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण को संसद में और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को विधानसभा में वार्षिक रिपोर्ट पेश करनी होगी। देश में 5,745 बड़े बांध हैं, जिनमें से 393 बांध 100 वर्ष से अधिक पुराने हैं, जबकि 25 प्रतिशत से अधिक बांध 50 वर्ष पुराने हैं। बांध दुर्घटना न केवल बांध के निचले हिस्से में, बल्कि ऊपरी हिस्से में भी भारी नुकसान पहुंचा सकती है। लिहाजा संसद ने अपनी विधायी शक्ति का प्रयोग करते हुए राष्ट्रीय हित में बांध सुरक्षा कानून बनाकर एक बड़ी वैधानिक कमी दूर की है। 

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