वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: ब्रिक्स में भारत का मध्यम मार्ग

ब्रिक्स यानी ब्राजील, रशिया, इंडिया, चाइना और साउथ अफ्रीका इन देशों के नाम के पहले अक्षरों को जोड़कर इस अंतरराष्ट्रीय संगठन का नाम रखा गया है

Update: 2022-06-25 17:43 GMT

By लोकमत समाचार सम्पादकीय

ब्रिक्स यानी ब्राजील, रशिया, इंडिया, चाइना और साउथ अफ्रीका इन देशों के नाम के पहले अक्षरों को जोड़कर इस अंतरराष्ट्रीय संगठन का नाम रखा गया है। इसका 14वां शिखर सम्मेलन इस बार बीजिंग में हुआ, क्योंकि आजकल चीन इसका अध्यक्ष है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन नहीं गए लेकिन इसमें उन्होंने दिल्ली में बैठे-बैठे ही भाग लिया। ब्रिक्स के इस संगठन में भारत अकेला ऐसा राष्ट्र है, जो दोनों महाशक्तियों के नए गठबंधनों का सदस्य है।
भारत उस चौगुटे का सदस्य है, जिसमें अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया भी सम्मिलित हैं और उस नए चौगुटे का भी सदस्य है, जिसमें अमेरिका, इजराइल और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) सदस्य हैं। चीन खुलेआम कहता है कि ये दोनों गुट शीतयुद्ध-मानसिकता के प्रतीक हैं। ये अमेरिका ने इसलिए बनाए हैं कि उसे चीन और रूस के खिलाफ जगह-जगह मोर्चे खड़े करने हैं। यह बात चीनी नेता शी जिनपिंग ने ब्रिक्स के इस शिखर सम्मेलन में भी दोहराई है लेकिन भारत का रवैया बिल्कुल मध्यममार्गी है।
वह न तो यूक्रेन के सवाल पर रूस और चीन का पक्ष लेता है और न ही अमेरिका का। इस शिखर सम्मेलन में भी उसने रूस और यूक्रेन में संवाद के द्वारा सारे विवाद को हल करने की बात कही है, जिसे संयुक्त वक्तव्य में भी उचित स्थान मिला है। इसी तरह मोदी ने ब्रिक्स राष्ट्रों के बीच बढ़ते हुए पारस्परिक सहयोग की नई पहलों का स्वागत किया है। उन्होंने जिस बात पर सबसे ज्यादा जोर दिया है, वह है इन राष्ट्रों की जनता का जनता से सीधा संबंध। ब्रिक्स के संयुक्त वक्तव्य में आतंकवाद का विरोध भी स्पष्ट शब्दों में किया गया है और अफगानिस्तान की मदद का भी आह्वान किया गया है।
किसी अन्य देश द्वारा वहां आतंकवाद को पनपाना भी अनुचित बताया गया है। चीन ने इस पाकिस्तान-विरोधी विचार को संयुक्त वक्तव्य में जाने दिया है, यह भारत की सफलता है। ब्रिक्स के सदस्यों में कई मतभेद हैं लेकिन उन्हें संयुक्त वक्तव्य में कोई स्थान नहीं मिला है। ब्रिक्स में कुछ नए राष्ट्र भी जुड़ना चाहते हैं। यदि ब्रिक्स की सदस्यता के कारण चीन और भारत के विवाद सुलझ सके तो यह दुनिया का बड़ा ताकतवर संगठन बन सकता है, क्योंकि इसमें दुनिया के 41 प्रतिशत लोग रहते हैं, इसकी कुल जीडीपी 24 प्रतिशत है और दुनिया का 16 प्रतिशत व्यापार भी इन राष्ट्रों के द्वारा होता है।


Similar News

-->