यू.पी. में लाॅकडाउन का गणित

कोरोना संक्रमण जिस भयावहता के साथ भारतीयों को डरा रहा है उसे देखते हुए यह बहुत जरूरी है कि

Update: 2021-04-22 07:16 GMT

कोरोना संक्रमण जिस भयावहता के साथ भारतीयों को डरा रहा है उसे देखते हुए यह बहुत जरूरी है कि इसे परास्त करने में समाज और सरकार दोनों एक होकर जुट जायें परन्तु लोकतन्त्र में लोगों के स्वास्थ्य की सुरक्षा की प्राथमिक जिम्मेदारी सरकार की ही बनती है क्योंकि वह लोगों की सरकार ही होती है। इसके साथ ही सरकारों की यह जिम्मेदारी भी बनती है कि वे कोरोना के खिलाफ उठाये जाने वाले कदमों और लोगों की आजीविका से जुड़े मुद्दों का भी ध्यान रखें और इन दोनों के बीच इस प्रकार सामंजस्य बनायें जिससे आम जनता का दैनिक जीवन भी चलता रहे और कोरोना पर नियन्त्रण भी पाया जा सके। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश पर अंतरिम रूप से रोक लगा दी जिसमें उत्तर प्रदेश के पांच बड़े शहरों बनारस, इलाहाबाद, कानपुर, लखनऊ व गोरखपुर जिले में पूर्ण लाॅकडाउन लगाने के आदेश दिये गये थे। राज्य की योगी सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले को राज्य सरकार के शासकीय अधिकारों में इसे अतिक्रमण भी बताया मगर आदेश के मन्तव्य पर सवालिया निशान नहीं लगाया।


राज्य सरकार की दलील थी कि सम्पूर्ण लाॅकडाउन से आर्थिक गतिविधियां ठप्प होने का खतरा है जिससे लाखों लोगों की आजीविका व रोजगार प्रभावित होता, अतः सरकार कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए आवश्यक सभी कारगर कदम उठा रही है और कोशिश कर रही है कि संक्रमण कम से कम फैले। गौर से देखा जाये तो लाॅकडाउन लगाने या न लगाने का फैसला तक्नीकी रूप से सरकार के अधिशासी अधिकारों में ही आता है मगर न्यायालय का भी अधिकार क्षेत्र सामान्य जनजीवन की जान की देखभाल के दायरे तक पहुंचता है। प्रशासनिक अधिकारों से लैस सरकार का प्राथमिक दायित्व भी लोगों की जानमाल की सुरक्षा का बनता है। मगर देखने वाली बात यह होती है कि सरकार का कोई भी कदम इस प्रकार का न हो जिससे आम जनता में भय का वातावरण बने और लोगों में अफरा-तफरी का माहौल बने। जाहिर है कि अचानक लाॅकडाउन के फैसले का परिणाम लोगों को परेशान कर सकता है और हालात कानून-व्यवस्था की समस्या तक पैदा होने तक पहुंच सकते हैं। अतः योगी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में सामान्य व सुचारू प्रशासन से जुड़े इन्हीं मुद्दों को उठा कर दलील दी कि उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाई जाये जिससे राज्य के अमन-चैन में बाधा न पड़ सके। मगर इसके साथ ही योगी सरकार के उन कदमों की समीक्षा भी जरूरी है जो वह कोरोना से निपटने के लिए उठा रही है।

राज्य का चिकित्सा ढांचा पूरी तरह चरमरा सा गया है क्योंकि कोरोना मरीजों का समुचित रूप से परीक्षण ही नहीं हो पा रहा है। अस्पतालों में आक्सीजन गैस की कमी की वजह से लोगों की मौत होने की खबरें भी आ रही हैं और इसके साथ ही राज्य में जिला पंचायत व ग्राम प्रधान चुनाव भी हो रहे हैं। कोरोना संक्रमण का जब पिछले वर्ष कहर बरपा था तो सबसे अच्छी बात यह हुई थी कि इसका असर देश के ग्रामीण इलाकों में बहुत कम हुआ था। उत्तर प्रदेश के अधिसंख्य ग्रामीण इलाके संक्रमण की चपेट में नहीं आ पाये थे। मगर इस बार शुरू हुए दूसरे कोरोना कहर में एेसा नहीं पाया जा रहा है और राज्य के कस्बों व ग्रामीण इलाकों में भी लोग बीमार हो रहे हैं। अतः योगी सरकार का ही यह दायित्व बनता है कि वह कोरोना को रोकने के लिए ग्रामीण स्तर पर भी चिकित्सीय सुविधाओं का तन्त्र मजबूत करें। हालांकि उनकी सरकार ने घोषणा कर दी है कि 18 वर्ष से 45 वर्ष तक के लोगों को सरकार अपने चिकित्सा केन्द्रों में मुफ्त वैक्सीन लगावयेगी और राज्य के बाहर से आने वाले प्रवासी मजदूरों का स्वागत भी करेगी परन्तु इसे समस्या का सम्पूर्ण समाधान नहीं माना जा सकता क्योंकि बड़े शहरों से अपनी रोजी- रोटी छोड़ कर उत्तर प्रदेश आने वाले मजदूरों को दैनिक जीवन चलाने के लिए कमाई की जरूरत होगी। अतः योगी सरकार को इन प्रवासी मजदूरों की आर्थिक मदद करने की भी योजना अभी से तैयार कर लेनी चाहिए। इसके

साथ यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है जिसकी आबादी 22 करोड़ के लगभग है। बेशक योगी जी कह चुके हैं कि उनकी सरकार लाॅकडाउन नहीं लगायेगी और केवल

शनिवार व रविवार को लाॅकडाउन लगा कर काम चलायेगी मगर कोरोना संक्रमण के मामले जिस गति से बढ़ रहे हैं उन्हें देखते हुए कोई न कोई प्रभावी अंतरिम योजना तो पहले से ही तैयार करके रखनी होगी। क्योंकि स्वास्थ्य या चिकित्सा के मोर्चे पर इस राज्य की प्रतिष्ठा पहले से ही विवादास्पद रही है।

आदित्य नारायण चोपड़ा
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