संस्कृति-खानपान का अनूठा संगम 'धाम'
हिमाचल प्रदेश अपने हिल स्टेशनों और सुहावने मौसम के लिए प्रसिद्ध है
हिमाचल प्रदेश अपने हिल स्टेशनों और सुहावने मौसम के लिए प्रसिद्ध है। संस्कृति, परंपरा, मेले, त्योहारों, खानपान तथा रहन-सहन की बात करें तो हिमाचल एक समृद्ध राज्य है। आज के दौर में लोगों के खानपान तथा रहन-सहन में अत्यधिक बदलाव देखा गया है। फास्ट फूड तथा अन्य राज्यों के व्यंजनों में लोगों का रुझान देखा जा सकता है। इसके बावजूद हिमाचल प्रदेश में यहां के पारंपरिक व्यंजनों को अत्यधिक महत्त्व दिया जाता है। प्रदेश के सभी 12 जिलों में अपनी अलग-अलग धाम परोसी जाती है, लेकिन मुख्य रूप से कांगड़ी और मंडयाली धाम विश्व भर में मशहूर है। यह माना जाता है कि धाम बनाने की परंपरा लगभग 1300 साल पहले शुरू हुई। यहां के राजा जयस्तंभ को कश्मीर में जाने का आमंत्रण मिला। यहां खाए गए व्यंजनों से राजा इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने अपने राज्य में लौट कर वही दावत दोबारा बनाने का आदेश दिया। कहा जाता है कि राजा ने आदेश दिया कि खाने में प्याज, लहसुन और मांस का उपयोग नहीं किया जाएगा। इस प्रकार उसी समय से हिमाचल में हिमाचली धाम का जन्म हुआ।
धाम बनाने के लिए एक अस्थायी रसोई घर बनाया जाता है जिसमें स्टील की चादर डाली जाती है ताकि किसी कारण भोजन अशुद्ध न हो सके और अचानक बारिश आने पर भी बचाया जा सके। अस्थायी रसोईघर के बीच एक लंबा गड्ढा किया जाता है जिसे चर कहते हैं और उसमें आग जलाई जाती है। खाना बनाने के लिए विशेष पीतल के बर्तन का उपयोग किया जाता है जिसे बटलोई कहा जाता है। धाम को अत्यधिक पवित्र माना जाता है जो आज भी ब्राह्मणों द्वारा तैयार की जाती है जिन्हें बोटी कहा जाता है। बोटी आमतौर पर धोती पहनते हैं और पूरी धाम को नंगे पांव पकाते और परोसते हैं। स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। बहुत से मसालों जैसे साबुत मिर्च, छोटी इलायची, बड़ी इलायची, दालचीनी, हल्दी और धनिया पाउडर के उपयोग के कारण खाने में अद्भुत महक और स्वाद आता है। धाम आमतौर में सरसों के तेल में पकाई जाती है। धाम बनाने की तैयारी समारोह से एक रात पहले शुरू कर दी जाती है। मुंह में पानी ला देने वाले व्यंजन समारोह को और भी यादगार बना देते हैं। पूरा समुदाय पारंपरिक भोजन का आनंद लेने के लिए एक साथ जमीन पर बैठ कर भोजन करते हैं।
इस धाम में अक्सर आपको चावल, दालें, खट्टा, राजमा मद्रा, घंडीयाली मद्रा, चने का मद्रा, आलू चना का मद्रा, सेेपो बड़ी का मद्रा, बूंदी वाली कढ़ी, कद्दू का मीठा, चने का खट्टा, बदाना, माह की दाल, चन्ना दाल, धोतवी दाल और मीठा भात परोसा जाता है। यह सारे व्यंजन लकडि़यों की आग पर पकाए जाने के कारण अत्यधिक स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक होते हैं। हिमाचल की पहचान हिमाचली धाम अक्सर पत्तल में परोसी जाती है जो जंगल में आसानी से उपलब्ध होते हैं। अपने सांस्कृतिक इतिहास को समेटे देवभूमि में आज भी कई जगह पर यह परंपरा जारी है। आपको कई परिवार ऐसे मिल जाएंगे जो सदियों से यह पत्तल बनाने का कार्य करते हैं और अपनी आजीविका कमा रहे हैं। हिमाचली धाम के पीएम मोदी भी मुरीद रहे हैं। देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जब भी अपने हिमाचल दौरे पर आए हैं, धाम की जमकर तारीफ की है। हिमाचल प्रदेश में जब भी कोई समारोह आयोजित किया जाता है, हिमाचली धाम खाने की उत्सुकता हर किसी को रहती है। समारोह में बनने वाली धाम किसी फाइव स्टार होटल के पकवान को भी फेल कर दे, जहां लोग इतना पैसा खर्च करके खाते हैं। हिमाचल प्रदेश पर्यटन निगम ने अपने बहुत से आउटलेट में हिमाचली धाम परोसने का फैसला किया है ताकि बाहर से आने वाले पर्यटकों को हिमाचली संस्कृति तथा खानपान से जोड़ा जा सके। हिमाचल प्रदेश पर्यटन निगम की दिल्ली में एक ब्रांच हिमाचल भवन में धाम परोसी जाती है, जो लोगों द्वारा अत्यधिक सराही जा रही है।
इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में आने वाले पर्यटकों के लिए भी हिमाचली धाम कई स्थानों पर बनाई जाती है। खास बात यह है कि यह थाली 100-150 रुपए में पर्यटकों को उपलब्ध कराई जा रही है। हिमाचली धाम शुरू होने से न केवल पर्यटक आकर्षित हो रहे हैं, बल्कि स्थानीय लोग भी इसका आनंद उठा रहे हैं। राज्य के पर्यटन विभाग ने हिमाचली धाम को दुनिया के नक्शे पर लाने और आने वाली पीढि़यों के लिए बचाने का जो बीड़ा उठाया है, वह सराहनीय कदम है। हिमाचली धाम सिर्फ एक दावत नहीं है, बल्कि एक स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक स्वाद का समूह है। धाम का स्वाद अंतरराष्ट्रीय स्तर तक लोगों को आकर्षित कर रहा है। रासायनिक रंगों और रेडीमेड मसालों से परे यह धाम पर्यटकों को न भूलने वाला एहसास दे रही है। समय-समय पर किए गए शोध में यह पाया गया है कि धाम में बेहतर पोषण मूल्य पाया जाता है। हिमाचल प्रदेश के पारंपरिक भोजन धाम को संरक्षित किया जाना चाहिए और लोकप्रिय बनाना चाहिए ताकि हर कोई इसके महत्त्व को समझ सके। आयुर्वेद में भी कहा गया है कि यदि कोई संतुलित आहार करता है तो बीमारियों से भी दूर रहता है। शादियों और समारोह में खाना परोसने और खाने के आधुनिक तरीकों के विपरीत धाम में लोग जमीन में एक साथ बैठकर एक जैसी पत्तल में खाते हैं। यह समाज में समानता और एकरूपता के संदेश को बढ़ावा देता है।
डा. पंकज शर्मा
एसोसिएट प्रोफेसर
सोर्स- divyahimachal