मौत को दे चुके थे मात
सेना के जवान हर सहज-असहज परिस्थितयों से मुकाबले को तैयार होते हैं, जनरल रावत तो तीनों सेनाओं के सुप्रीम थे। साल 2015 में वह मौत को भी मात दे चुके थे। बतौर लेफ्टिनेंट जनरल, नागालैंड में उनकी तैनाती थी। तीन फरवरी की रोज एक कर्नल और दो पायलेट के साथ जनरल रावत चीता हेलीकॉप्टर में सवार थे। हेलीकॉप्टर हवा में कुछ ऊपर पहुंचा ही था कि इंजन फेल हो गया। देखते-देखते हेलीकॉप्टर जमीन पर आ गिरा। हेलीकॉप्टर में सवार जवानों और पायलेट को गंभीर चोट आई, लेकिन कहते हैं न 'शो मस्ट गो ऑन'। हेलीकॉप्टर क्रैश होने के कुछ घंटे के बाद जनरल रावत ने दूसरे हेलीकॉप्टर से उड़ान भरी और मिशन पर निकल गए। काश आठ दिसंबर की रोज भी कुछ ऐसा हो गया होता।
जनरल रावत के पहले सीडीसी नियुक्त होते ही दिल को इस बात की तसल्ली हो गई थी, कि सेना अब ऐसे हाथों में है, जो दुश्मनों को सिर उठाते ही कुचलने की क्षमता रखता है। सर्जिकल स्ट्राइक में उनकी कूटनीति के बाद से देश ही नहीं, पड़ोसियों तक भी संदेश पहुंच गया था कि जनरल रावत 'बर्दाश्त' करने वाले लोगों में से नहीं हैं। कश्मीर हो या पूर्वोत्तर के हिस्से, जनरल रावत ने आतांकियों के दांत खट्टे कर रखे थे। चीन हो या पाकिस्तान, सब अच्छी तरह से जानते थे कि जनरल रावत के रहते भारत की तरफ आंख उठाना, उन्हें अंधा बना सकता है।
पहली गोली हम नहीं मारेंगे, पर...
साहस और बहादुरी, कुदरती तौर पर खून में होती है और जनरल रावत का खून इस मामले में 'बहुत गाढ़ा' था। सीमा पर पाकिस्तान का आतंक बढ़ता जा रहा है। दुश्मनों की इस हरकत से तंग, जनरल रावत ने स्पष्ट संदेश दे दिया-
पहली गोली हमारी तरफ से नहीं चलेगी, लेकिन जब हम चलाना शुरू करेंगे तो इसकी गिनती भी नहीं करेंगे।
सर्जिकल स्ट्राइक में पाकिस्तान को उन्होंने यह प्रमाणित करके भी दिखा दिया। कई सैन्य अधिकारियों ने साक्षात्कारों में इस बात का जिक्र किया है कि जनरल रावत जितने शालीन और मृदुभाषी थे, उन्हें पहली बार देखकर इस बात का अंदाजा ही नहीं लगाया जा सकता, कि वह इतने अद्भुत सैन्य अधिकारी हैं।
सेना में बदलाव की शुरुआत
बतौर सीडीएस, जनरल रावत में सेना में कई तरह के बदलावों की शुरुआत कर दी थी। सेना में महिलाकर्मियों की संख्या बढ़ाने की कवायद हो या थियेटर कमान के रूप में सेना के एकीकरण प्रक्रिया की, जनरल रावत के कार्यकाल में एक नई ऊर्जा देखने को मिलने लगी थी। जल-थल-नभ, तीनों सेनाओं में आधुनिकीकरण के वह समर्थक थे, पर अब वह बस यादों में रह गए हैं। देश ने एक अमूल्य हीरा खो दिया है। आंखें नम हैं, गला भर आता है, लेकिन जवानों को नम आंखों से नहीं, सलामी देकर विदा किया जाता है। मां भारती के अमर सपूत को विनम्र श्रद्धांजलि। आप हमेशा याद आएंगे रावत साब।