हम सब जानते ही हैं कि व्यावसायिक लेन-देन और निवेश में हमेशा 'आर.ओ.आई.' यानी 'रिटर्न ऑन इनवेस्टमेंट' का ध्यान रखा जाता है, जिसका मतलब है कि जिस धन का निवेश किया गया उस पर इच्छित लाभ मिल सके। खर्च और निवेश की सारी योजनाएं इसी आधार पर बनाई जाती हैं। कार्पोरेट जगत में इसी की तजऱ् पर 'आर.ओ.टी.' यानी 'रिटर्न ऑन टाइम' का ध्यान रखा जाता है जिसका मतलब है कि किसी भी काम में हमने जो समय लगाया, क्या हमें उसका वांछित लाभ मिल सका? इसी तरह हम बचपन से ही यह भी सुनते आए हैं…'तेते पांव पसारिये जेती लंबी सौर', यानी हम उतना ही खर्च करें जितना हमारी सामथ्र्य में संभव है, ताकि हम कजऱ् के चक्रव्यूह में न फंस जाएं। धन के खर्च और निवेश में हम अक्सर बहुत सावधान रहते हैं, लेकिन अपने समय के सदुपयोग के मामले में हम अक्सर लापरवाही बरतते हैं। अगर हम जीवन में कोई बड़ा लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं तो हमारे लिए एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण सच को समझना बहुत जरूरी है, और वह सच यह है कि हमारे जीवित रहने का समय सीमित है। हम कितना ही धन कमा सकते हैं। धन कमाने की कोई सीमा नहीं है। ऐसे कितने ही उदाहरण हमारे सामने हैं कि कोई व्यक्ति दीवालिया हो जाने के बाद फिर से करोड़पति या अरबपति बन गया। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दीवालिया हो चुके हैं। हमारे ही देश में महानायक के नाम से प्रसिद्ध, नामचीन अभिनेता अमिताभ बच्चन भी दीवालिया हो गए थे, लेकिन आज उनके पास धन की कोई कमी नहीं है। हम बीमार हो जाएं तो इलाज और दवाइयों की सहायता से फिर से ठीक हो सकते हैं, काफी हद तक स्वास्थ्य खरीद भी सकते हैं। लब्बोलुबाब यह कि पैसा चला जाए तो फिर से कमाया जा सकता है और सेहत चली जाए तो फिर से बन सकती है, लेकिन जो समय चला गया, वह किसी भी साधन से वापस नहीं आ सकता। हमने धन रूपी चादर की लंबाई देख कर पैर पसारने का सबक तो सीख लिया है।
हम यूं ही पैसा नहीं फेंकते, यूं ही नहीं उड़ाते। उसी तरह से अब हमें यह ध्यान रखना है कि समय यूं ही न उड़ाएं, समय के सदुपयोग का ध्यान रखें। एक-एक पल के सदुपयोग का ध्यान रखें। हमारी सफलता का सार इसी में है। आइए, इसका कुछ और खुलासा करें। जब हम करिअर की शुरुआत कर रहे होते हैं तो हमारा प्रयत्न होना चाहिए कि हम कोई भी अवसर हाथ से न जाने दें। हर नए काम में हम कुछ नया सीखेंगे, कुछ नया अनुभव होगा, कुछ नया हुनर हाथ लगेगा और कुछ नए संबंध बनेंगे। हर नया संबंध हमारी जान-पहचान का दायरा बढ़ा सकता है और जान-पहचान का दायरा जितना विस्तृत होगा, हमें उतने ही नए अवसर और भी मिलते रहेंगे। हर नए काम के लिए 'हां' कह देना जितना आसान है, उसे निभाना उतना ही कठिन, क्योंकि समय सीमित है, उसी सीमित समय में सारी जि़म्मेदारियां निभानी हैं, इसलिए 'हां' कहते वक्त सावधानी बरतनी चाहिए, पर जहां तक संभव हो, नए अवसर का लाभ उठाना चाहिए। एक बार जब हमारे संपर्कों का दायरा बढ़ जाए, नियमित रूप से नए प्रस्ताव मिलने लगें तो फिर यह आवश्यक है कि हमें समय सीमा को ध्यान में रखते हुए ही 'हां' बोलनी चाहिए। याद रखिए, 'हां' एक बहुत बड़ी जि़म्मेदारी है। जो भी काम हम हाथ में लें, उसे पूरी तन्मयता से और पूरी काबीलियत से करना हमारी जि़म्मेदारी है। जो भी काम हम हाथ में लें, उसे इस तरह से करें कि मानो हमारे पास उसके अलावा और कोई काम नहीं है। वह काम हमारी शख्सियत का, हमारी काबीलियत का और हमारी जि़म्मेदारी का ढिंढोरा है। हम कुछ भी कहते रहें, हमारा काम हमारे शब्दों से ज्यादा बोलता है।
जब हमारे पास अवसरों की कमी न हो तो हमें ध्यान से चुनाव करना चाहिए कि हम कहां 'हां' कहें और कहां विनम्रता से इनकार कर दें। हमारा इनकार भी हमारी विनम्रता को दिखाए, हमारे सद्गुणों को दिखाए। हमारे इनकार में अहंकार नहीं होना चाहिए। जब हम अवसरों का लाभ उठाने के मामले में सावधानी बरतते हैं तो उसका लाभ यह होता है कि हम फालतू की परेशानियों से बच जाते हैं। हम अपने काम पर पूरा ध्यान देने की स्थिति में रहते हैं। असल में हमें दो सूचियां बना लेनी चाहिएं। पहली सूची में उन कामों या अवसरों को शामिल करें जिन्हें हम करना चाहेंगे। ऐसी सूची में वे प्रस्ताव भी हो सकते हैं जिन्हें हम करना चाहें पर अभी हमें उनका इंतज़ार है, और ऐसे अवसर भी शामिल करें जो हमें मिल चुके हैं या मिलने वाले हैं। इन सब के हिसाब से समय का बंटवारा करें, साधनों का बंटवारा करें। दूसरी ऐसी सूची बनाएं जिसमें हम उन कामों को शामिल करें जिन्हें हम नहीं करना चाहते या जिन कामों के लिए हमारे पास न साधन हैं न कौशल। सूची को दिमाग में न रखें, सूची बनाएं, लिखित में। इन दोनों सूचियों को अक्सर देखते रहें। इससे हमारा ध्यान बंटेगा नहीं। हर काम को इस ढंग से किया जा सकता है कि वह अलग दिखे। लगभग दस साल पहले मैं मुंबई से चंडीगढ़ आ रहा था। एयरपोर्ट पर रश नहीं था, मैं सिक्योरिटी चेक से जल्दी फारिग हो गया तो एक कप चाय का मन हुआ। मैं चाय लेने गया तो वहां सेल्समैन ने मुझसे कई बातें कीं। सेल्समैन ने मुझे मुंबई के बारे में कई ऐसी जानकारियां दीं जो बड़ी मनोरंजक भी थीं और ज्ञानवद्र्धक भी।
मैंने वहां से सिर्फ एक कप चाय ली थी, लेकिन चाय का वह कप और वह सेल्समैन मेरी यादों में हमेशा के लिए बस गए हैं। चाय हर कोई बेचता है, लेकिन किसी अनजान आदमी को अपना बना लेने की वह कला हर किसी के पास नहीं होती। जब हम अपने काम में अपनी आत्मा लगा देते हैं तो फिर वह काम हमारे लिए कई नए दरवाज़े खोल देता है। वक्त की चादर ज्यादा लंबी नहीं है, समय सीमित ही है और हम किसी भी दिन को 24 के बजाय 25 घंटे का नहीं बना सकते, पर अपने कामों में अपनी आत्मा डाल दें तो जीवन ही बदल जाता है। बहुत समय पहले किसी ने मुझे कहा था कि अच्छा सेल्समैन वह होता है जो गंजे को भी कंघा बेच दे। मैं इससे कतई सहमत नहीं हूं। गंजे को कंघा बेच देना काबीलियत नहीं है, ठगी है, क्योंकि वह उसके किसी काम नहीं आएगा। मेरा अनुभव यह कहता है कि अच्छा सेल्समैन वह है जिसे कुछ बेचने की जरूरत न पड़े, अच्छा सेल्समैन वह है जिसके लिए ग्राहक उसे ढूंढते चले आएं। समय सीमित है, वक्त की चादर की सीमाएं हैं, इसलिए अपने हर काम में हम अपनी अच्छाई के हस्ताक्षर छोड़ दें तो वक्त की चादर छोटी हो या लंबी, हमारा जीवन खुशहाल ही रहेगा।
पी. के. खुराना
राजनीतिक रणनीतिकार
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By: divyahimachal