By: divyahimachal
हिमाचल में आगामी चुनाव की दहलीज पर पहुंचे सियासी अरमान, सौ फीसदी सफलता पाने की मशक्कत कर रहे हैं, तो यह कहना पड़ेगा कि भाजपा ने सारा आसमान सिर पर उठा रखा है। यह पार्टी 'आखिरी दम तक' की परिपाटी में चेहरा, चमक और चमत्कार करने के लिए सरकार के मंत्रिमंडल से शब्द, वादे और घोषणा सजा रही है, तो मौके की इबादत में अपनी रैलियों में गुलशन उगा रही है। ऐसे में भाजपा के लिए यह घड़ी अगर कीमती है, तो वह घड़ी भी कम नहीं जहां समय की सूइयां मेहनतकश और गतिशील हंै। जाहिर है सत्ता के पास फुर्सत से जीत का समां बांधने के लिए काबिल इश्तिहार हैं, तो दिल्ली का मायावी संसार भी है। मंडी के बाद बिलासपुर के शिलालेखों पर फिर से चुनावी कहावत बदलने का दस्तूर, जीत का पाठ्यक्रम और सम्मोहन के लिए स्वयं प्रधानमंत्री का एकाकार स्वरूप जब मुखातिब होगा, तो हिमाचल से कई पात्र ढूंढे जाएंगे। यह खूबी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की है कि वह इस शांत से प्रदेश में भाजपा की रगों में इतना जोश भर देते हैं कि सामने कांग्रेस के कई नेता भी ललचा जाते हैं। इसके बरअक्स कांग्रेस के खेमे में दो उलझने स्पष्ट हैं।
सामने राजस्थान की दीवार पर अशोक गहलोत के पोस्टर और सिरदर्द मिटाने को पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को इसी के ऊपर माथा पीटने की नौबत। इधर टिकट आबंटन की जिल्लत में चरित्र के नीलाम होते जनाजे या यूं कहें कि अनुशासनहीनता की शवयात्रा पर निकली आरजू को बचाने की मोहलत पाने की इच्छा है। आम परिदृश्य की खुश्कियों के बावजूद भाजपा अपने चेहरे पर चमक दमक लाने के लिए मशहूर है, तो संभावनाओं के आकाश से गिर कर लटकने के लिए कांग्रेस कहीं न कहीं खजूर का पौधा ढूंढ निकालती है। आश्चर्य यह कि कल तक प्रदेश के मुद्दों के सेनानी रहे कांग्रेसी अब खुद को मुद्दा बना रहे हैं। इस वक्त भाजपा अपनी संभावनाओं को तराशते तामझाम में वकालत पर उतर आई है, तो न्याय को चीखते दलबदलू कांग्रेसी एक-दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं। ऐसे में आखिरी दम पर कांग्रेस का आत्मबल क्यों हार रहा है या भाजपा को किसी भी कीमत पर ताज बचाना क्यों आसान लग रहा है, इसको लेकर जनता भी पशोपेश में है। बहरहाल मंत्रिमंडल के हर पड़ाव में साधने की कला का प्रदर्शन किसी इंकलाब की तरह है, ताकि जब सुर्खी बने तो कर्मचारी झूम उठें और ये करवटें जारी हैं तथा अपनी बारिकियों में सौहार्द का कंबल ओढ़े हुए कुछ तो गर्माहट दे रही हैं। अब भाजपा के दो फासले और आखिरी दम तक के उद्बोधन हैं। चुनाव के सामने हिमाचली सत्ता के मंत्रिमंडलीय फैसले और मोदी के उद्गार के बीच दूरियां समेटने का प्रबंधन गजब का है।
यानी प्रदेश प्रफुल्लित है कि सरकार दिल खोलकर भी चुनावी प्रक्रिया में अपने फैसलों की आहुतियां डाल सकती है। हिमाचल ग्यारहवीं बार प्रधानमंत्री के लिए मंच सजाकर अपने रिश्ते खोजने में मशगूल है और इस बार तो प्रतीकात्मक 'एम्स' खड़ा होगा तथा हजारों लोगों के बीच राजनीतिक झुंड बनने की आदतन खुशखबरी भी सामने आएगी। चुनाव आने तक प्रधानमंत्री ने हिमाचल को किस तरह पुकारा और प्रदेश मंत्रिमंडल के फैसलों में मुख्यमंत्री जयराम ने मंडी एयरपोर्ट को किस तरह शिद्दत से उकेरा, इसका वृतांत अगर शायरी से अब इस परियोजना में हिमाचली शेयर को 51 फीसदी बना रहा है, तो हम कुछ भी कर सकते हैं, बशर्ते मुख्यमंत्री को दिल के करीबी फैसला लेना हो। प्रधानमंत्री का बिलासपुर आगमन न तो आखिरी है और न ही मंत्रिमंडल के फैसले आखिरी, लेकिन हर बार भाजपा का दांव 'आखिरी दम तक', आगे बढऩे का संकल्प जरूर है, जिसकी आवश्यकता कांग्रेस को महसूस कर लेनी चाहिए।