संसद के मानसून सत्र में पहले दिन ही हुआ हंगामा, ऐसी परंपरा पर कैसे लगे लगाम
संसद के मानसून सत्र का पहला दिन हंगामे की भेंट चढ़ने पर आश्चर्य नहीं। अब यह एक परंपरा सी बन गई है
सोर्स- Jagran
संसद के मानसून सत्र का पहला दिन हंगामे की भेंट चढ़ने पर आश्चर्य नहीं। अब यह एक परंपरा सी बन गई है कि संसद के प्रत्येक सत्र का प्रारंभ हंगामे से ही होता है। ऐसा ही कुछ विधानसभाओं में भी होता है। यह सिलसिला एक लंबे अर्से से कायम है, लेकिन राजनीतिक दल इस पर विचार करने को तैयार नहीं कि आखिर इससे उन्हें या फिर देश को हासिल क्या होता है? संसद राष्ट्रीय महत्व के विषयों और साथ ही प्रस्तुत एवं पारित किए जाने वाले विधेयकों पर व्यापक विचार-विमर्श करने का मंच है, लेकिन दुर्भाग्य से वहां इसी कार्य को सबसे कम प्राथमिकता दी जाती है। कई बार तो महत्वपूर्ण विधेयक भी बिना किसी ठोस चर्चा के पारित हो जाते हैं। इससे भी निराशाजनक यह है कि विपक्ष इसे अपनी उपलब्धि के रूप में देखने लगा है कि उसने हंगामा कर संसद की कार्यवाही नहीं चलने दी। इसका एक कारण यह भी है कि अब आम तौर पर संसद में होने वाला हंगामा ही बड़ी खबर बनता है, न कि यह कि किसी विषय पर पक्ष-विपक्ष के सांसदों ने क्या विचार व्यक्त किए?
संसद के मानसून सत्र के पहले दिन विपक्ष ने सेना में भर्ती की अग्निपथ योजना और महंगाई पर हंगामा किया। विपक्ष हंगामा करने के लिए कितना प्रतिबद्ध था, इसका पता इससे चलता है कि कई सांसद तख्तियां लेकर सदन में पहुंचे, जिन पर पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के मूल्यों में वृद्धि का उल्लेख था। यह काम लोकसभा में भी हुआ और राज्यसभा में भी। नि:संदेह विपक्ष की ओर से उठाए जाने वाले विषयों पर संसद में चर्चा होनी ही चाहिए, लेकिन जब उद्देश्य हर हाल में हंगामा करना हो तो फिर पक्ष-विपक्ष में इसे लेकर कोई समझबूझ मुश्किल से ही बन पाती है कि चर्चा कब, कैसे और किस नियम के तहत हो?
चूंकि विपक्ष अब विरोध के लिए विरोध वाली राजनीति को ही आदर्श मानने लगा है, इसलिए सत्तापक्ष से उसकी तकरार जारी ही रहती है। भले ही विपक्ष इस नतीजे पर पहुंच गया हो कि वह हर छोटी-बड़ी बात पर हंगामा करके सत्तापक्ष पर दबाव बना सकता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों का अनुभव तो यही बताता है कि वह अपने इस उद्देश्य की पूर्ति में नाकाम ही अधिक है। सत्तापक्ष संख्याबल के मामले में राज्यसभा में जैसे-जैसे सशक्त होता जा रहा है, वैसे-वैसे विपक्ष और शक्तिहीन दिखने लगा है।
निश्चित रूप से विपक्ष को सरकार के कामकाज पर टीका-टिप्पणी करने का अधिकार है, लेकिन इसके नाम पर वह उसके शासन करने के अधिकार को चुनौती नहीं दे सकता। विपक्ष को यह भी समझना होगा कि ऐसे घिसे-पिटे आरोपों से बात बनने वाली नहीं है कि मोदी सरकार संविधान और लोकतंत्र के लिए खतरा बन गई है।