फिर दुखद हिंसा

रविवार को लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा जितनी दुखद है, उतनी ही शर्मनाक भी

Update: 2021-10-04 18:13 GMT

रविवार को लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा जितनी दुखद है, उतनी ही शर्मनाक भी। पहली दृष्टि में यह समाज में लोगों के कम होते धीरज का ताजा प्रमाण है, जिसकी वजह से हमारी संस्कृति पर कई प्रश्न खड़े होने लगे हैं। प्रदर्शन के लिए जुटे या जुट रहे किसानों पर तेज रफ्तार से गाड़ी चढ़ा देना और उसके बाद गुस्साए किसानों का जवाबी हमला, दोनों में से कोई कड़ी आलोचना से परे नहीं है। पृष्ठभूमि देखने से पता चलता है कि वहां पिछले कुछ दिनों से आक्रोश सुलग रहा था और रविवार को एक लापरवाही या बदमाशी की चिनगारी लगते ही आग भड़क उठी।

इसमें कोई शक नहीं कि स्थानीय प्रशासन अगर सचेत रहता, तो आक्रोश का यह परिणाम नहीं होता। खैर राज्य प्रशासन ने समय रहते तत्काल हस्तक्षेप करके किसानों के तात्कालिक गुस्से को शांत किया, यह सबसे जरूरी थी। भारतीय किसान संघ के नेता राकेश टिकैत के नेतृत्व में विरोध कर रहे किसानों और प्रशासन के बीच वार्ता सोमवार को एक सकारात्मक समझौते पर समाप्त हुई। जाहिर है, सरकार का रुख उदारवादी रहा, क्योंकि आक्रोश को शांत करने के लिए किसानों की तात्कालिक मांगों को पूरा करना जरूरी था। जैसे बाकी दलों के नेताओं को आक्रोश के क्षेत्र में आने से रोका गया, ठीक वैसा ही किसानों के नेता राकेश टिकैत के साथ नहीं किया गया। उनके नेतृत्व में किसानों की बात सुनी गई, जिसकी वजह से हुए समझौते के मुताबिक, सरकार चार मृतक किसानों के परिवारों को 45 लाख रुपये और एक नौकरी देगी, जबकि घायलों को 10-10 लाख रुपये की सहायता दी जाएगी। जान की कीमत कोई राशि नहीं हो सकती, लेकिन तब भी पीड़ित किसानों को शांत करने के लिए सरकार का यह कदम परंपरा के अनुरूप है। पंजाब, हरियाणा के किसानों ने भी लखीमपुरी खीरी के किसानों के पक्ष में बंद या प्रदर्शन का आयोजन किया, लेकिन इस घटना को पूरे किसान आंदोलन से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। यह शुद्ध रूप से एक निर्मम आपराधिक घटना है, इसमें किसी भी दोषी को छोड़ना नहीं चाहिए। कानून हाथ में लेने वालों पर शिकंजा कसना चाहिए। हमला करके चार निहत्थे लोगों को जान से मारने का हक किसी ने किसी को नहीं दिया है। जो पीड़ित हैं, उनके साथ न्याय हो, लेकिन जिन लोगों ने कानून का मजाक बनाया है, उन्हें खुला छोड़ना समाज केलिए ठीक नहीं।
बहरहाल, अच्छी बात है कि किसानों की शिकायत के आधार पर प्राथमिकी दर्ज करने की मांग को पहले ही पूरा किया जा चुका है। साथ ही, उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश हिंसा की जांच करेंगे। राज्य सरकार को आगे भी बिल्कुल ध्यान रखना चाहिए कि इस हिंसा का यहीं पटाक्षेप हो जाए, इसका आगे कोई राजनीतिक, धार्मिक या सांप्रदायिक स्वरूप न बने। आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश में चुनावी सरगर्मी बढ़ती जाएगी, अत: यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह पक्ष या विपक्ष में किसी को भी अप्रिय स्थिति पैदा करने का मौका न दे। साथ ही, विपक्षी नेताओं के प्रति तार्किक उदारता का व्यवहार भी जरूरी है, ताकि उत्तर प्रदेश में कोई गलत परंपरा न बन जाए। तमाम नेताओं को समग्रता में संयम दिखाना होगा। आज के समय में राजनीति करना या आग लगाना बहुत आसान हो गया है। अत: यह समय देश के हर व्यक्ति से शालीनता या समझदारी की मांग कर रहा है।


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