By: divyahimachal
दिल्ली बनाम हिमाचल में बंटी कांग्रेस की परतें उस समय खुल गईं, जब धर्मशाला से विप्लव ठाकुर का यह बयान आया कि टिकटों संबंधी खबर कपोल कल्पना है। दिल्ली से बड़ी कचहरी लगा कर हिमाचल कांग्रेस की यह नेत्री पार्टी के शब्दों या आश्वासन को गुनहगार बना कर क्या साबित करना चाहती है, यह तो समझ नहीं आता, लेकिन भाजपा को ऐसे बयानों से ताकत जरूर मिलती है। दिल्ली से आए संकेतों की हवा निकालती कांग्रेस अनुशासन समिति की अध्यक्ष विप्लव ठाकुर न पार्टी का हित कर रही हैं और न ही अनुशासन की परिपाटी विकसित कर रही हैं। आश्चर्य यह कि जिस नेत्री का कांगड़ा की सियासत में कोई खास योगदान नहीं, वह ऐसे पद और पदक ग्रहण करना चाहती हैं, जिससे उनकी निजी बिसात में इस अवसर की खुराक पैदा हो। ऐसे में सवाल यह कि आखिर कांग्रेस को हराने वाले ऐन चुनाव के वक्त क्यों और कैसे पैदा किए जाते हैं। मंडी की पद्धर सीट से आश्रम शर्मा का टिकट मांगना कितना प्रासंगिक है, इस पर हैरानी के बजाय ठाकुर कौल सिंह की परेशानी कौन पैदा कर रहा है। यह इसलिए भी कि मंडी सदर से आश्रम के पिता और वर्तमान विधायक अनिल शर्मा, भाजपा के होते हुए भी कांग्रेस के पत्ते खोलते हैं, तो टिकट आबंटन की भूमिका में पार्टी किंकत्र्तव्यविमूढ़ सी क्यों है। आश्चर्य यह कि विप्लव ठाकुर जैसे नेता राज्यसभा में होते हुए भी न पार्टी और न प्रदेश का कुछ कर पाए, लेकिन अब मंशा यह है कि अपने घर का सियासी चूल्हा जलाया जाए।
लगातार दो प्रेस वार्ताओं का विशषण बताता है कि मोहतरमा अपने पद का दुरुपयोग करते हुए पार्टी के भीतर अशांति को हवा दे रही हैं। देहरा व धर्मशाला से उनका व्यक्तिगत नाता व इच्छा बता रही है कि वह दो नेताओं की संभावनाओं पर अपनी खो चुकी मिट्टी का छिडक़ाव कर रही हैं। यह पार्टी के हित में कतई नहीं कि अनुशासनहीन तत्त्वों के साथ अनुशासन समीति की अध्यक्ष का आशीर्वचन रहे। पिछले पांच सालों में हिमाचल कांग्रेस के रुतबे को जिन्होंने बचाया या सीधे सरकार से टक्कर ली, उन नेताओं के कारण ही विपक्ष अपनी संभावना को पुख्ता कर रहा है। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्रिहोत्री की अहमियत देखनी हो, तो उनके प्रदर्शन और टिप्पणियों की राह पर पार्टी बुलंद हुई है। सुखविंद्र सिंह सुक्खू जैसे नेताओं ने भी भाजपा के शासन को बार-बार ललकारा है, लेकिन अधिकांश नेताओं की बोलती बंद रही है। अगर विप्लव ठाकुर को हैडलाइन बनाते हुए अपने ही नेताओं को नीचा दिखाना है, तो उनके जैसे नेताओं के कारण पार्टी को हारने से कौन मना करेगा। विप्लव का अभियान न तो मुख्यमंत्री के खिलाफ है और न ही वर्तमान सरकार की आलोचना का कोई मकसद, लेकिन मीडिया के पास जाकर वह दिल्ली के संकेतों के खिलाफ अपना पूर्वाग्रह दर्ज करा रही हंै। पहले भी बुजुर्ग नेताओं के कारण कांग्रेस खुद को कमजोर करती रही है और इस बार इसके प्रमाण विप्लव ने दिए हैं।
आश्चर्य यह भी कि जिसे अनुशासन समिति की सरदारी मिली है, वही अनुशासनहीन तमगे बटोर कर कुनबे से कुनबा लड़ा रही हैं। बहरहाल कांग्रेस की स्थिति भाजपा के मिशन रिपीट की सहयोगी हो सकती है। इसी तरह पार्टी के चले हुए कुछ कारतूस सामने आते रहे, तो कम से कम वह कांग्रेस की हार का सबब बन सकते हैं। कांग्रेस की दिल्ली बैठक के आरंभिक संकेत भले ही सौ फीसदी सही न हों, लेकिन इस सूची में अधिकांश ऐसे प्रत्याशी जरूर हैं, जो वर्तमान सरकार के प्रदर्शन को निरस्त कर सकते हैं। अगर विप्लव के बयान सही हैं, फिर कांगे्रस की दिल्ली बैठक का औचित्य शून्य हो जाता है। यानी यह नेत्री इतनी शक्तिमान है कि पार्टी के अहम फैसलों को पांव तले रौंद सकती है। पार्टी के नियम व सिद्धांत दिल्ली बैठक में इस कद्र टूटे कि विप्लव ने धर्मशाला में मीडिया के जरिए नई नैतिकता का हवन पाठ कर दिया। ऐसे में या तो कांग्रेस का दिल्ली दरबार झूठा है या पार्टी का सारा सच व यथार्थ केवल विप्लव के पास ही है। यह केवल कांग्रेस में ही संभव है, वरना भाजपा में उनकी आयु के लोग तो मार्गदर्शक मंडल में बैठ कर पार्टी की माला जपते हैं। जाहिर है कांगड़ा में कांग्रेस की संभावनाओं पर विप्लव जैसे लोगों की चोट पूरी तरह सत्यानाश ही करेगी।