चिंताजनक बेरोजगारी की चुनौती

चिंताजनक बेरोजगारी

Update: 2022-03-03 06:24 GMT
By आरएस पांडे।
लगभग हर परिवार, विशेषकर गरीब व मध्य वर्ग, में ऐसे युवा हैं, जो रोजगार की तलाश में हैं, पर मांग के हिसाब से अवसर बहुत कम हैं. इसका परिणाम कई तरह से सामने आ रहा है. पिछले माह बिहार और उत्तर प्रदेश में भारतीय रेल की 35 हजार नौकरियों के लिए हुई भर्ती परीक्षा को लेकर व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए. इन नौकरियों के लिए सवा करोड़ शिक्षित युवाओं ने आवेदन किया था.
चार साल पहले एमबीए और इंजीनियरिंग स्नातकों समेत दो लाख लोगों ने मध्य प्रदेश की अदालतों में सफाईकर्मी, चालक, चपरासी, सुरक्षाकर्मी आदि के 738 पदों के लिए आवेदन दिया था. ये उदाहरण इंगित करते हैं कि रोजगार संकट कितना गहरा है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2020 में बेरोजगारी के कारण 3548 लोगों ने आत्महत्या कर ली, जो हालिया वर्षों में सबसे बड़ी संख्या है.
वर्ष 2014 में सत्ता में आने के तुरंत बाद एनडीए सरकार ने कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय का गठन किया था, जिससे आशा बंधी थी कि कुशल कामगारों की मांग व आपूर्ति के बीच सामंजस्य बनेगा और कौशलयुक्त भारत का लक्ष्य साकार हो सकेगा. इस मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट, 2020-21 में एक अध्ययन को उद्धृत किया गया था कि 24 क्षेत्रों में 2017 में 51.08 करोड़ मानव संसाधन की जरूरत थी, जो 2022 में बढ़कर 61.42 करोड़ हो जायेगी.
इस हिसाब से हर साल दो करोड़ नये रोजगार पैदा करने की जरूरत है. समुचित कौशलयुक्त श्रमबल से अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी और युवाओं की ऊर्जा का भी सही उपयोग हो सकेगा. इसी आधार पर सरकार ने हर साल दो करोड़ रोजगार देने का वादा किया था, पर इस संदर्भ में प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है. भारत में श्रमबल भागीदारी की दर (15 से 59 साल की आयु के वे लोग,
जो काम में लगे हैं या काम खोज रहे हैं) कुछ सालों से 40 प्रतिशत से कम रही है, जो चीन के 76 प्रतिशत, इंडोनेशिया के 69 प्रतिशत या वैश्विक दर लगभग 60 प्रतिशत से बहुत कम है. सीएमआईई के अनुसार, देश में मौजूदा बेरोजगारी दर (श्रमबल में ऐसे लोग, जो रोजगार चाहते हैं, पर रोजगार नहीं मिल पाता) 7.6 प्रतिशत है. सबसे अधिक उच्च शिक्षित, युवाओं और महिलाओं में हैं. इन वर्गों में यह दर 20 प्रतिशत से अधिक है.
साल 2021 में केंद्र सरकार में आठ लाख से अधिक रिक्तियां थीं, जिनमें से एक लाख से भी कम पर भर्ती हुई है. इससे सरकार के अगंभीर रवैये का पता चलता है. बजट में पांच सालों में 60 लाख रोजगार देने का वादा है. अगर यह पूरा भी होता है, तब भी कामकाजी आयु वर्ग में हर साल शामिल होनेवाली संख्या के एक-चौथाई हिस्से को ही काम मिल सकेगा. बीते कुछ सालों में विकास रणनीति विनिवेश या मौद्रीकरण के रूप में सार्वजनिक परिसंपत्तियों को निजी क्षेत्र को देने की रही है.
हालिया बजट में इस उम्मीद में इंफ्रास्ट्रक्चर और कंस्ट्रक्शन पर सरकार द्वारा पूंजी खर्च बढ़ाने की ओर झुकाव है कि विकास तेज करने के लिए निजी निवेश को आकर्षित किया जा सके. यह एक इच्छा भर साबित हो सकती है. मानव संसाधन की आवश्यकता व्यापक स्तर पर है, जिसे प्रस्तावित पूंजी व्यय और अपेक्षित निजी निवेश कुछ हद तक ही पूरा कर सकेंगे.
बहुत से अन्य देशों की तरह भारत की भी कुछ ताकतें और कुछ कमजोरियां हैं. यहां जनसंख्या घनत्व बहुत अधिक है. अमेरिका इससे तीन गुना बड़ा है, पर आबादी एक-चौथाई है. चीन लगभग समान आबादी के साथ तीन गुना बड़ा है. इस प्रकार यह उत्पादक उपयोग पर निर्भर करता है कि हमारी आबादी हमारी ताकत है या हमारे लिए बोझ है. यदि ठीक रोजगार मिले, तो हमारी युवा आबादी जनसांख्यिक लाभांश के रूप में अर्थव्यवस्था में अपना योगदान कर सकती है.
आय और संपत्ति के वितरण की विषमता बढ़ रही है. शीर्षस्थ एक प्रतिशत धनी आबादी के पास देश की 53 प्रतिशत संपत्ति है, जबकि सबसे गरीब आधी आबादी के पास मात्र 4.1 प्रतिशत. क्षेत्रीय असमानता भी स्पष्ट है. सबसे गरीब राज्य बिहार की प्रति व्यक्ति आय, राष्ट्रीय आय की एक तिहाई है, जबकि आबादी का 10 प्रतिशत हिस्सा यहां रहता है.
यहां जनसंख्या घनत्व भी सबसे अधिक है. देश की आधी आबादी खेती पर निर्भर है और 70 प्रतिशत किसानों के पास एक हेक्टेयर से भी कम जमीन है. शिक्षा व कौशल के मामले में राज्यों के बीच और उनके भीतर विषमताएं हैं. संविधान में नीति निर्देशक तत्वों में कार्य एवं रोजगार का उल्लेख है. अनुच्छेद 39 के अनुसार, राज्य को नागरिकों की जीविका के लिए समुचित साधन उपलब्ध कराने चाहिए. कुछ अन्य अनुच्छेदों में भी इस संबंध में निर्देश हैं.
सर्वोच्च न्यायालय एक निर्णय में रेखांकित कर चुका है कि भले ही नीति निर्देशक तत्व बाध्यकारी नहीं हैं, पर शासन के लिए बुनियादी हैं. विश्व आर्थिक मंच की एक हालिया रिपोर्ट में 'व्यापक युवा असंतोष' को भारत के लिए मुख्य जोखिमों में गिना गया है. इस असंतोष का एक मुख्य कारण रोजगार संकट है. इसलिए भारत की विकास रणनीति रोजगार केंद्रित होनी चाहिए. विकास का परिणाम होने की जगह आज रोजगारनीत विकास की आवश्यकता है. सभी नीतियों व योजनाओं का लक्ष्य रोजगार होना चाहिए. वहीं भारत की समृद्धि की आशा निहित है.
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