रूस-यूक्रेन युद्ध संकेत है कि भारत को सैन्य मोर्चे पर और सशक्त होना होगा, जिसके लिए अपनी आर्थिक हैसियत बढ़ाना जरूरी
जब भारत कोविड की चुनौतियों से बाहर निकलकर तेजी से आर्थिक विकास की डगर पर बढ़ रहा था, तब यूक्रेन संकट ने चिंत पैदा कर दी है।
डा. जयंतीलाल भंडारी: जब भारत कोविड की चुनौतियों से बाहर निकलकर तेजी से आर्थिक विकास की डगर पर बढ़ रहा था, तब यूक्रेन संकट ने चिंत पैदा कर दी है। हाल में जारी आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 5.4 प्रतिशत रही। वहीं पूरे वित्त वर्ष के दौरान आर्थिक वृद्धि दर 8.9 प्रतिशत रहने के आसार हैं। इससे भारत को दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में रेखांकित किया जा रहा है। रूस-यूक्रेन संकट के बावजूद भारतीय शेयर बाजार से लेकर विदेशी मुद्रा भंडार के आंकड़े अर्थव्यवस्था में गहराई और संभावनाओं को दर्शाते हैं, लेकिन इस संकट ने भारत के समक्ष अपनी प्राथमिकताओं को नए सिरे से तय करने का दबाव बढ़ा दिया है। ऐसा इसलिए, क्योंकि भारत को चीन और पाकिस्तान जैसे दो मोर्चों पर चुनौती मिलती रही है। उनसे निपटने के लिए हमारा एक सैन्य शक्ति बनना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है और सैन्य शक्ति बनने का रास्ता आर्थिक ताकत से ही निकलेगा।
हमें आर्थिक मोर्चे पर बहुआयामी रणनीति बनानी होगी। पहला काम यह करना होगा कि कृषि क्षेत्र को आधुनिक बनाकर उसे आर्थिक मजबूती का आधार बनाया जाए। दूसरा, दुनिया का नया मैन्यूफैक्चरिंग गढ़ बनकर विनिर्माण निर्यात बढ़ाने होंगे। तीसरा, उद्योग-कारोबार को और सुगम बनाकर अधिक एफडीआइ आकर्षित करना होगा। चौथा, आइटी आउटसोर्सिंग से विदेशी आय अर्जन बढ़ाकर उससे अर्थव्यवस्था को मजबूती देनी होगी। वर्तमान में कृषि क्षेत्र से मिल रहे संकेत उत्साहजनक हैं। कोविड महामारी की चुनौतियों के बीच दूसरे क्षेत्रों में भारी गिरावट के बीच कृषि ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र रहा, जिसने लगातार तेज वृद्धि दर्ज की। 2021-22 में देश में खाद्यान्न उत्पादन रिकार्ड 31.60 करोड़ टन पहुंचने का अनुमान है। इस साल तिलहन उत्पादन 3.71 करोड़ टन रह सकता है, जो पिछले साल 3.59 करोड़ टन था। सभी प्रमुख फसलों के एमएसपी में उत्साहजनक वृद्धि, पीएम किसान सम्मान निधि के माध्यम से जनवरी 2022 तक 11.30 करोड़ से अधिक किसानों को 1.82 लाख करोड़ रुपये की आर्थिक मदद, कृषि क्षेत्र में शोध एवं नवाचार को बढ़ावा और अन्य विकास योजनाओं से कृषि उत्पादन में ऐसा रुझान संभव हुआ है।
रिकार्ड खाद्यान्न उत्पादन न केवल देश को आर्थिक शक्ति बनाने, बल्कि महंगाई को थामने में भी मददगार होगा। वैश्विक आपूर्ति पर भी हमारी पकड़ मजबूत होगी। दुनिया को 25 प्रतिशत से अधिक गेहूं का निर्यात करने वाले रूस और यूक्रेन के युद्ध में फंसने से भारत के लिए संभावनाओं का बढऩा तय है। इतना ही नहीं चावल, बाजरा, मक्का और अन्य मोटे अनाज के निर्यात में भी वृद्धि की स्थिति बनती दिख रही है। अनुमान है कि आगामी वित्त वर्ष में कृषि निर्यात 55-60 अरब डालर के स्तर तक पहुंच सकता है। यह ध्यान रखा जाए तो बेहतर कि कृषि क्षेत्र को आधुनिक बनाकर उसे अर्थव्यवस्था का मजबूत स्तंभ बनाने में निजी क्षेत्र की अहम भूमिका हो सकती है।
वैश्विक सामरिक परिदृश्य में आ रहे परिवर्तन को देखते हुए आत्मनिर्भर भारत एवं मेक इन इंडिया अभियान की अहमियत और बढ़ गई है। खासतौर से अब रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करना बेहद जरूरी है। इसकी कडिय़ां विनिर्माण क्षेत्र से भी जुड़ती हैं। हालिया आम बजट में सरकार ने विनिर्माण केंद्रित विशेष आर्थिक क्षेत्र यानी सेज के वर्तमान स्वरूप में परिवर्तन की योजना बनाई है। इसमें उपलब्ध संसाधनों का पूरा उपयोग करते हुए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों के लिए विनिर्माण किया जाएगा। जहां उत्पादन आधारित प्रोत्साहन यानी पीएलआइ योजना की सफलता से चीन से आयात किए जाने वाले कई प्रकार के कच्चे माल के विकल्प तैयार हो सकेंगे, वहीं औद्योगिक उत्पादों का निर्यात भी बढ़ सकेगा। भारत के वैश्विक मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाने की संभावनाओं को साकार करने के मद्देनजर प्रमुख रूप से 10 सेक्टरों को तेजी से आगे बढ़ाना होगा। इनमें इलेक्ट्रिकल, फार्मा, मेडिकल उपकरण, इलेक्ट्रानिक्स, हैवी इंजीनियरिंग, सोलर उपकरण, लेदर प्रोडक्ट, फूड प्रोसेसिंग, केमिकल और टेक्सटाइल अहम हैं। चालू वित्त वर्ष में भारत 400 अरब डालर के रिकार्ड निर्यात लक्ष्य हासिल करने के मुकाम पर पहुंच गया है। भारतीय उद्योग परिसंघ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बड़े बाजारों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) को अंतिम रूप देने, निर्यात उत्पादों पर शुल्क और छूट योजना के विस्तार, बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करने और घरेलू विनिर्माण मुद्दों को हल करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ते हुए भारत 2030 तक 1,000 अरब डालर की वस्तुओं के निर्यात का लक्ष्य हासिल कर सकता है। एक ताकतवर आर्थिक भारत के निर्माण के लिए उद्योग-कारोबार की अधिक सुगमता भी जरूरी होगी। विगत छह-सात वर्षों में इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है, परंतु अभी कई बाधाएं दूर करना शेष है। अर्थव्यवस्था का डिजिटलीकरण इसमें लाभप्रद होगा। हालिया बजट के तहत उद्योग-कारोबार को आसान बनाने तथा डिजिटल अर्थव्यवस्था को गतिशील करने के लिए कई प्रविधान किए गए हैं। इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन की रिपोर्ट के मुताबिक हमारे आइटी सेक्टर की आय 2025 तक 350 अरब डालर के स्तर तक पहुंच सकती है।
कुल मिलाकर सरकार सभी मोर्चों पर कदम उठाकर अपनी आर्थिक हैसियत बढ़ाकर देश को सैन्य रूप से सशक्त बनाने की हरसंभव कोशिश करे, ताकि किसी भी आशंकित दुस्साहस का मुंहतोड़ जवाब दिया जा सके। इसमें प्रत्येक नागरिक को भी अपनी भूमिका निभानी होगी।