कानून का शासन
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने लखीमपुर खीरी की बर्बर व दर्दनाक घटना का जिस तरह उत्तर प्रदेश के दो वकीलों के लिखे पत्र पर संज्ञान लिया है
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने लखीमपुर खीरी की बर्बर व दर्दनाक घटना का जिस तरह उत्तर प्रदेश के दो वकीलों के लिखे पत्र पर संज्ञान लिया है वह इस देश में संविधान के शासन की स्थापना का प्राक्कथन ही है क्योंकि भारत का कानून न्याय करते हुए किसी मन्त्री या सन्तरी को एक ही तराजू में रख कर तोलता है। देश की सबसे बड़ी अदालत के प्रधान न्यायाधीश श्री ए.वी. रमण के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय पीठ ने उत्तर प्रदेश प्रशासन से पूछा है कि लखीमपुर कांड में अभी तक कितनी गिरफ्तारियां हुई हैं ? जाहिर है कि लखीमपुर में जिस तरह प्रदर्शन करके लौटते किसानों पर तेज रफ्तार मोटर वाहन चढ़ाया गया उसमें चार किसानों की मृत्यु हो गई और एक दर्जन से अधिक गंभीर रूप से जख्मी हो गये। इस घटना की एफआईआर दर्ज कराई गई जिसमें हत्या के आरोपी के रूप में केन्द्रीय गृह राज्यमन्त्री अजय मिश्रा 'टैनी' के पुत्र आशीष मिश्रा को नामजद किया गया। इस घटना के चार दिन बीत जाने के बावजूद पुलिस ने कोई गिरफ्तारी नहीं की। अतः सर्वोच्च न्यायालय का राज्य प्रशासन से यह सवाल पूछना कानून के नजरिये से स्वाभाविक था। इसके साथ ही न्यायमूर्तियों ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह लखीमपुर प्रकरण के बारे में कल उनके समक्ष मामूल रिपोर्ट (स्टेट्स रिपोर्ट) दाखिल करे। पूरे मामले को यदि गौर से देखा जाये तो यह किसानों और गृह राज्यमन्त्री के बीच का विवाद है जिसमें सरकार का कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि किसान आरोप लगा रहे हैं कि जिस मोटर से किसान कुचले गये उसे गृह राज्यमन्त्री का बेटा चला रहा था। स्वयं मन्त्री ने भी यह स्वीकार किया है कि जिस मोटर से किसानों के कुचलने की बात कही जा रही है वह गाड़ी उन्हीं की थी मगर न तो वह स्वयं और न ही उनका बेटा घटनास्थल पर मौजूद थे। अतः एक बात स्थापित सत्य है कि गाड़ी मन्त्री महोदय की ही थी। इसे कौन चला रहा था, यह जांच का विषय है किन्तु मामला का हत्या का है अतः नामजद रिपोर्ट दाखिल होने के बाद नामजद आरोपी की गिरफ्तारी कानून की निगाह में जायज बनती है जिसकी वजह से सर्वोच्च न्यायालय ने गिरफ्तारियों का सवाल उठाया है। असली सवाल पूरे मामले में यह है कि भारत की लोकतान्त्रिक प्रणाली में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन सा राजनीतिक दल सत्ता में है क्योंकि अन्ततः हर राजनीतिक दल को कानून का शासन ही स्थापित करना पड़ता है और इसे लागू करते समय उसे अपनी आंखें बन्द करके कानून को लागू करना पड़ता है। हमारे महान लोकतन्त्र में पुलिस भी किसी सरकार के मातहत तो काम करती है परन्तु अन्त में उसे भी कानून की ही स्थापना करनी होती है क्योंकि पुलिस भारतीय संविधान की कसम उठा कर ही अपना दायित्व पूरा करती है। लोकतन्त्र चूंकि राजनीतिक दलगत तन्त्र के अन्तर्गत सत्ता सौंपता है अतः सत्तारूढ़ व विपक्षी दल दोनों ही आम जनता के प्रति बराबर के जवाबदेह होते हैं। लखीमपुर खीरी जाने और वहां पीड़ित परिवारों से मिलने के लिए जिस तरह विपक्ष के नेता आतुर थे उसे कोरी राजनीति कहना उचित नहीं है क्योंकि विपक्षी दलों का यह दायित्व बनता है कि वे घटनास्थल पर जाकर सत्य की परख करें और तद्नुसार सत्तारूढ़ सरकार से समुचित कार्रवाई करने की मांग करें जिससे पीडि़तों को न्याय मिल सके। पूरे मामले में चूंकि स्वयं गृह राज्यमन्त्री संलिप्त हैं तो विपक्ष की भूमिका और भी बढ़ जाती है क्योंकि कानून की अनुपालना में किसी प्रकार के भेदभाव का हमारा संविधान इजाजत नहीं देता है। पुलिस की भूमिका ऐसे मामलों में सबसे महत्वपूर्ण होती है क्योंकि समाज में कानून की अनुपालना देखना उसका प्रमुख कर्त्तव्य होता है। हत्या के मामले में पुलिस बहुत त्वरित गति से काम करती है जिससे आरोपी या अपराधी को साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करने का समय नहीं मिल सके। इसी वजह से जघन्य अपराध के मामलों में समय का बहुत महत्व होता है।संपादकीय :ड्रग्स केसः उठते सवालटू फ्रंट वार : भारत है तैयारकश्मीर मे फिर मजहबी खून!कल , आज और कल मुबारककिसान आन्दोलन का हल?पैंडोरा पेपर्स : खुलेगी भारतीयों की कुंडलीहालांकि राज्य पुलिस ने आज सर्वोच्च न्यायालय में हुई हलचल के बाद घोषणा की है कि उसने आशीष मिश्रा के खिलाफ सम्मन जारी कर दिये हैं परन्तु देखना होगा कि उसकी गिरफ्तारी कब और किस तरह होती है। साथ ही राज्य सरकार ने इस प्रकरण की जांच करने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक रिटायर न्यायाधीश को नियुक्त भी कर दिया है परन्तु मामले की गंभीरता को देखते हुए विपक्ष सेवारत न्यायाधीश से जांच कराने की मांग कर रहा है। पूरे मामले में सबसे बड़ा प्रश्न सच के उजागर होने का है और अपराधी को उचित सजा मिलने का है। इस मामले में वादी किसान हैं और प्रतिवादी मन्त्री का परिवार है अतः न्याय की नजर से मामला पूरी तरह फौजदारी का इस तरह बनता है कि आरोपी पक्ष पर लगाये गये आरोपों की जांच पूरी सख्ती के साथ हो और किसी भी तरह की रियायत पद व हैसियत देख कर न की जाये। यह कार्य राज्य पुलिस को पूरी निष्पक्षता और निडरता के साथ करना होगा जिससे कानून का शासन समाज में स्थापित हो सके।