संसद का संदेश, इससे जनता भी नहीं है अनभिज्ञ
संसद के प्रत्येक सत्र की तरह मानसून सत्र में भी हंगामा होने के आसार थे
सोर्स : Jagran
संसद के प्रत्येक सत्र की तरह मानसून सत्र में भी हंगामा होने के आसार थे। अंदेशे केअनुरूप मानसून सत्र के पहले सप्ताह में कोई विशेष काम नहीं हुआ। दूसरे सप्ताह में कुछ कामकाज होने की जो आशा थी, वह अब इसलिए धूमिल पड़ गई है, क्योंकि लोकसभा अध्यक्ष ने लगातार नारेबाजी करने और तख्तियां लहराने के आरोप में कांग्रेस के चार सांसदों को पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया। यह लगभग निश्चित है कि इस निलंबन को विपक्ष की आवाज दबाने का प्रयास बताया जाएगा और आने वाले दिनों में लोकसभा के साथ-साथ राज्यसभा में भी कोई काम नहीं होने दिया जाएगा।
आश्चर्य नहीं कि विपक्षी दल इस मिथ्या आरोप के सहारे शेष सत्र में कोई कामकाज न होने दें। इसकी आशंका इसलिए है, क्योंकि एक बार ऐसा हो चुका है। पिछले वर्ष जब राज्यसभा के सभापति ने सदन में हुड़दंग करने वाले विपक्ष के 12 सदस्यों को निलंबित किया था तो सभी विपक्षी दल उनके बचाव में आ खड़े हुए थे। चूंकि इस बार भी ऐसा होता हुआ दिख रहा है, इसलिए मौजूदा सत्र में कोई खास काम न हो तो हैरानी नहीं। यदि ऐसा होता है तो इससे केवल सत्तापक्ष को ही नहीं, बल्कि पूरे देश को क्षति होगी। वे अनेक विधेयक और लंबित हो सकते हैं, जिन्हें सरकार इस सत्र में पारित करने की योजना बनाए हुए थी।
एक ऐसे समय जब संसदीय कार्यवाही की प्रासंगिकता पर लगातार प्रश्न खड़े हो रहे हैं, तब संसद के मानसूत्र सत्र के बर्बाद होने की आशंका शुभ संकेत नहीं। आम जनता को इससे कोई मतलब नहीं कि संसद किसके कारण नहीं चली- सत्तापक्ष अथवा विपक्ष के कारण? वह तो इसी निष्कर्ष पर पहुंचेगी कि संसद में जो काम होना चाहिए, वह नहीं हुआ। यदि सत्तापक्ष और विपक्ष संसद को सुचारु रूप से चलाने के तौर-तरीकों पर सहमत नहीं होते तो उसकी छवि एवं गरिमा पर और बुरा असर पड़ना तय है। यह एक तथ्य है कि संसद हो या विधानसभाएं, वे अब कामचलाऊ ढंग से चलती हैं।
पिछले कुछ समय से जनता को यही संदेश जा रहा है कि संसद और विधानसभाओं में महत्वपूर्ण विषयों अथवा विधेयकों पर कोई ठोस अथवा सार्थक चर्चा होने के स्थान पर खानापूरी ही अधिक होने लगी है। जनता के बीच पहुंच रहे इस संदेश से राजनीतिक दल अनभिज्ञ नहीं हो सकते, लेकिन वे उन उपायों पर ध्यान देने के लिए तैयार नहीं, जिसे विधानमंडलों की महत्ता और प्रासंगिकता बढ़ सके। इससे भी निराशाजनक यह है कि केंद्र और राज्यों में जो भी राजनीतिक दल विपक्ष में होते हैं, वे आम तौर पर सदनों में हंगामा करने पर न केवल अधिक जोर देते हैं, बल्कि इसके लिए अतिरिक्त श्रम और तैयारी भी करते हैं। वास्तव में इसी कारण लोकसभा के चार सदस्यों को निलंबित किया गया।