शिवसेना का भविष्य और परिवारवादी राजनीतिक दलों की मुश्किल
महाराष्ट्र सरकार का संकट जिस मोड़ पर पहुंच गया है
सोर्स- जागरण
महाराष्ट्र सरकार का संकट जिस मोड़ पर पहुंच गया है, उससे यही लगता है कि उद्धव ठाकरे सत्ता भी गंवाएंगे और पार्टी भी। ऐसे आसार इसलिए दिखने लगे हैं, क्योंकि शिवसेना के बागी विधायकों की संख्या बढ़ती जा रही है। भले ही महाराष्ट्र सरकार को समर्थन दे रही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के नेता उद्धव ठाकरे के प्रति सहानुभूति प्रदर्शित कर रहे हों, लेकिन उसका कोई मूल्य-महत्व नहीं। सच तो यह है कि इन दोनों दलों से मिलकर सरकार बनाना ही शिवसेना को भारी पड़ा। शिवसेना जिन दलों को दिन-रात कोसती थी, उनसे ही हाथ मिलाकर उसने न केवल अपनी विचारधारा से आत्मघाती समझौता किया, बल्कि अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं को यह संदेश दिया कि वह सत्ता के लोभ में किसी भी हद तक जा सकती है।
शिवसेना ने सत्ता पाने के लिए अपनी विचारधारा का जैसा परित्याग किया, उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। इसके बुरे परिणाम सामने आने ही थे। शिवसेना खुद को हिंदुत्व का ध्वजवाहक बताती थी, लेकिन वह राहुल गांधी की ओर से हिंदुत्व पर हमले को सहन करती रही। भले ही राहुल हिंदुत्व पर हमले के जरिये भाजपा पर निशाना साध रहे हों, लेकिन इससे सबसे ज्यादा क्षति शिवसेना को उठानी पड़ी।
जैसे शिवसेना के पास इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं कि उसने हिंदुत्व पर लगातार प्रहार करने वाली कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाना क्यों पसंद किया, उसी तरह कांग्रेस नेतृत्व के पास भी इस सवाल का कोई जवाब नहीं कि आखिर उसे शिवसेना यकायक सेक्युलर कैसे नजर आने लगी? महाराष्ट्र विकास अघाड़ी सरकार रहे या जाए, ये सवाल न तो शिवसेना का पीछा छोड़ने वाले हैं और न ही कांग्रेस का। जहां तक राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की बात है, तो यह पता करना ही कठिन है कि उसकी विचारधारा है क्या?
यह समझा जाना चाहिए कि ऐसे दल खुद को विचारधारा आधारित राजनीतिक संगठन नहीं कह सकते, जो उसके प्रति कोई निष्ठा न रखते हों। ऐसे दल देर-सबेर न केवल बिखराव से ग्रस्त होते हैं, बल्कि अपनी साख भी गंवाते हैं। दुर्भाग्य से देश में ऐसे दलों की कमी नहीं, जिनकी विचारधारा जानना कठिन है। चूंकि ऐसे दलों में कांग्रेस भी शामिल हो गई है, इसलिए उसके दुर्दिन खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं।
महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट का एक सबक यह भी है कि आने वाले समय में परिवारवादी राजनीतिक दलों के लिए कठिनाई बढ़ने वाली है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि शिवसेना में बगावत का एक कारण उद्धव ठाकरे की ओर से बेटे आदित्य ठाकरे को अपने वरिष्ठ नेताओं से कहीं अधिक प्राथमिकता देना भी रहा।