अपने ही ताने-बाने में उलझा ड्रैगन

इस परिस्थिति में इतना तो साफ है कि चीन आने वाले दिनों में फिर से अपनी धाक नहीं जमा पाएगा।

Update: 2022-07-17 03:23 GMT

चीन की महत्वाकांक्षी बेलट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना पर ग्रहण लगता नजर आ रहा है। चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग इस परियोजना के चलते नई विश्व व्यवस्था स्थापित करने के साथ-साथ भारत की आर्थिक और सामरिक घेराबंदी करने की जुगत में हैं लेकिन अब वह अपने ही जाल में फंसता नजर आ रहा है। चीन ने इस बात के लिए काफी दबाव बनाया कि भारत बीआरआई परियोजना में भागीदार बने लेकिन भारत ने साफ इंकार कर दिया । क्योंकि भारत ने अपनी संप्रभुत्ता और क्षेत्रीय अखंडता का सवाल उठाया है। पाकिस्तान इस परियोजना का भागीदार है। बीआरआई परियोजना का एक हिस्सा पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है। भारत का स्टैंड यह है कि पाक अधिकृत कश्मीर भारत का हिस्सा है, जिस पर पाकिस्तान ने जबरन कब्जा कर रखा है।भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर इस परियोजना का कड़ा विरोध किया। चीन ने पाकिस्तान को भारी-भरकम कर्ज दे रखा है। चीन पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान इकोनोमिक कोरिडोर (सी पेक) का निर्माण कर रहा है। लेकिन अब यह परियोजना भी खाई में पड़ती नजर आ रही है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लोग अपने यहां चीनी कामगारों का विरोध कर रहे हैं। दूसरी तरफ ब्लूचिस्तान के उत्तर पश्चिम में ब्लोच आतंकवादी चीनी नागरिकों को लगातार अपना निशाना बना रहे हैं। हमलों में कई चीनी नागरिक मारे जा चुके हैं और अनेक घायल हुए हैं। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे में ब्लूचिस्तान सबसे बड़ा रोड़ा साबित हो रहा है। यह गलियारा भी चीन की बीआरआई के तहत बनाया जा रहा है। इस परियोजना के चलते चीन ने 62 अरब डालर का निवेश कर रखा है। कई वर्ष बीतने के बाद भी इस परियोजना का केवल 10 प्रतिशत काम ही हो पाया है।दरअसल ब्लूचिस्तान के लोगों को आशंका है कि आर्थिक गलियारे से ब्लूचिस्तान के संसाधनों पर पाकिस्तान की संघीय सरकार का कब्जा हो जाएगा और पंजाब जैसे समृद्ध राज्यों को इससे ज्यादा फायदा मिलेगा। लोगों को आशंका है कि अगर चीनी लोग उनके यहां आकर बैठ जाएंगे तो ब्लूचिस्तान के लोगों को अपने प्राकृतिक और अन्य संसाधनों को इस्तेमाल करने का मौका नहीं मिलेगा। ब्लूच के अलगाववादियों का कहना है कि आर्थिक गलियारे का विरोध सिर्फ ब्लूच की आजादी की लड़ाई का हिस्सा नहीं है। यह लोगों के अधिकारों की लड़ाई है। लोगों को यह भी लगता है कि आर्थिक गलियारे से पैदा होने वाले रोजगार में स्थानीय लोगों को कोई हिस्सा नहीं मिलने वाला। इस परियोजना का काम अब सुुस्त हो गया है। चीनी अधिकारियों ने अब साफ कर दिया है कि वे किसी नई परियोजना पर तब तक काम शुरू नहीं करेंगे जब तक पहले से शुरू हुई परियोजनाएं पूरी नहीं हो जातीं।संपादकीय :इस दादी मां पर पूरे देश को नाज है'गजवा-ए-हिन्द' के जहरीले नाग'आदमी' से 'इंसान' होना जरूरीदाखिले का नया सिस्टमलोकतन्त्र में लावारिस विपक्षऋषि सुनक : सबसे आगे होंगे हिन्दुस्तानीचीन ने इस परियोजना के तहत नेपाल, श्रीलंका और बंगलादेश को भी भारी कर्ज दे रखा है। श्रीलंका का हाल पूरी दुनिया ने देख लिया है कि चीन के कर्ज जाल में फंसकर उसकी क्या हालत हुई है। चीन की रणनीति यह रही है कि पहले वह देशों को कर्ज देता है और कर्ज न चुकाने पर उस देश की जमीन हड़प लेता है। जैसा कि उसने श्रीलंका की डम्बनटोटा बंदरगाह हथियाया है। लेकिन चीन की साजिशों की पोल अब खुल चुकी है। चीन नेपाल को आर्थिक रूप से गुलाम बनाना चाहता है। नेपाल और चीन में बीआरआई प्रोजैक्ट पर हस्ताक्षर किए पांच साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन अभी तक इस दिशा में कुछ नहीं हुआ। के.पी. शर्मा ओली के शासनकाल में नेपाल पूरी तरह से चीन की गोद में जाकर बैठ गया था। लेकिन सत्ता परिवर्तन के साथ ही यह प्रोजैक्ट ठंडे बस्ते में चला गया। शेर बहादुर देऊबा के प्रधानमंत्री बनने के बाद नेपाल की प्राथमिकताएं बदल गई हैं। महामारी कोरोना के चलते नेपाल की अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई और वे अब नया कर्ज लेने को भी तैयार नहीं। नेपाल में चीन विरोधी भावनाएं पनपने के बाद वह भी ड्रैगन के जाल में फंसने से इंकार ही कर रहा है। कोरोना महामारी के चलते चीन की अर्थव्यवस्था को भी काफी धक्का लगा है। बीआरआई योजना के लिए चीन के लिए भी नए ऋण देना और निवेश करना मुश्किल हो चुका है। शी जिनपिंग कोरोना महामारी के बाद किसी विदेश यात्रा पर नहीं गए हैं। चीन दुनिया में अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए 65 देशों को जोड़ने की योजना पर काम कर रहा था, लेकिन वह पड़ोस में भी इसे पूरा करने में कामयाब नहीं रहा। मलेशिया भी एक दौर में चीन के करीब था। लेकिन उसने भी चीन की कई परियोजनाओं को रद्द कर दिया। जहां तक बंगलादेश का सवाल है वहां अभी इस दिशा में कोई काम नहीं हो रहा। अब चीन पूरी दुनिया में नंगा हो चुका है। चीन की बीआरआई परियोजना के मुकाबले अमेरिका और जी-7 के सभी देशों ने अपनी परियोजना शुरू करने का फैसला किया है। चीन के​ खिलाफ गोलबंदी शुरू हो चुकी है। इस परिस्थिति में इतना तो साफ है कि चीन आने वाले दिनों में फिर से अपनी धाक नहीं जमा पाएगा।


लेखक: आदित्य नारायण चोपड़ा



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