राष्ट्रगान गाने की अनिवार्यता उसकी महिमा को कम करता है

चाहे इरादे कितने भी नेक से हों, किसी भी गतिविधि को अनिवार्य करना उसे अनुपयुक्त बना देता है

Update: 2022-05-14 16:20 GMT

बिक्रम वोहरा | 

चाहे इरादे कितने भी नेक से हों, किसी भी गतिविधि को अनिवार्य करना उसे अनुपयुक्त बना देता है. राष्ट्रगान (National Anthem) में एक पवित्रता, आकर्षण और शक्ति है. इसे दिल से गाए जाने पर आनंद की अनुभूति होती है. जिस वक्त ओलंपियन नीरज चोपड़ा टोक्यो ओलंपिक्स में पोडियम पर खड़े थे और राष्ट्रगान बजा कर तिरंगा लहराया गया तब मुझे अजीब सी खुशी का अहसास हो रहा था. जब भारतीय हॉकी टीम अपने सीने पर हाथ रख कर राष्ट्रगान गाती है और उसके साथ कोच ग्राहम रीड समेत दस हजार और कंठ जुड़ जाते हैं तो आपको खुशी महसूस होती है. आपके काम, सफलता का सम्मान आपके राष्ट्रगान से हो इससे अधिक शानदार और क्या हो सकता है. सैनिक, नाविक, मरम्मत करने वाला मजदूर, दर्जी, अमीर आदमी, गरीब आदमी, आपका देश सब मिल कर आपको सलाम करता है. लेकिन जैसे ही यह राजनीतिक या डराने के हथियार के रूप में बदल जाता है, तो इसकी महिमा खतरे में आ जाती है.
अगर आपको याद हो तो 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने कानून बना दिया था कि मातृभूमि से प्यार करने के लिए सिनेमाघरों में राष्ट्रगान गाया जाए. वहां फिल्म खत्म होने पर लोग पॉपकॉर्न और मूंगफली खा रहे होते थे और सेक्स, हिंसा, कॉमेडी, तरह-तरह की आवाज निकाल कर शोर मचा रहे होते थे या बाहर निकलने के लिए एक दूसरे को धक्का देकर राष्ट्रगान की भव्यता को नुकसान पहुंचा रहे थे, बजाए इसके कि वे अनिवार्य रूप से राष्ट्रगान चलने तक सावधान की मुद्रा में खड़े रहते. लोग न सिर्फ दूसरे को हिलने नहीं, रुके रहने, स्थिर खड़े रहने के लिए कहते थे बल्कि कभी-कभी तो झगड़ा तक हो जाता था.
सिनेमा हॉल देशभक्ति के लिए अनुकूल जगह नहीं
फिर वह मनहूस वारदात भी सामने आई जिसके बाद एक धारणा बन गई कि सिनेमा हॉल देशभक्ति के लिए अनुकूल जगह नहीं है. कई पुरस्कार विजेता विकलांग लेखक सलिल चतुर्वेदी खड़े नहीं हो सकते थे. एक बार गोवा में थिएटर में राष्ट्रगान बज रहा था और विकलांगता के कारण वह खड़े नहीं हो सके. पास में मौजूद एक दंपत्ति को लगा कि वह राष्ट्रगान के वक्त बैठे रह कर उसका अनादर कर रहे हैं और उनकी पिटाई कर दी. सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान का काफी विरोध हुआ और धीरे-धीरे इस आदेश पर अमल होना कम हो गया क्योंकि लोगों ने महसूस किया कि आप जबरन किसी के सिर पर बंदूक रख कर उसमें देशभक्ति नहीं भर सकते. यूपी में हाल ही में सभी मदरसों में राष्ट्रियता के नाम पर राष्ट्रगान अनिवार्य रूप से गाने का आदेश आया है. बेशक, राष्ट्रगान गाने में कुछ भी गलत नहीं है लेकिन यह दिल से गाया जाना चाहिए किसी आदेश पर नहीं.
किसी भी चीज के लिए विवश किये जाने पर नाराज होना मनुष्य का स्वभाव है. अगर आप उसका पालन दिल से नहीं कर रहे हैं तो यह एक सजा की तरह हो जाता है. राष्ट्रगान के साथ कभी भी दंड को नहीं जोड़ा जाना चाहिए. यह सही नहीं है. कोई इसे गाये क्योंकि वह उसे गाना चाहता है और उसको इसे गाना चाहिए. इसे उपहास, उदासीनता या हास्य के प्रति संवेदनशील न बनाएं. निश्चित रूप से शासन के आदेश की जगह अगर यह मदरसों, स्कूलों और कॉलेजों में दिन के पाठ्यक्रम की शुरुआत एक सुखद अहसास के साथ करने, इसे गाने की एक स्वाभाविक भावना वाले विकल्प से होता तो बेहतर होता.
राष्ट्रगान को लोगों पर जबरन थोपना गलत!
जब इस तरह की कार्रवाई होती है तो यह एक अनावश्यक तनाव पैदा होता है और नए आयामों को जन्म देता है. क्या इन मदरसों पर नजर रखी जाएगी? क्या हम उन्हें गिरफ्तार करने जा रहे हैं जिनमें हमें राष्ट्रगान के प्रति सम्मान की कमी नजर आ रही है? अगर सजा मिलती है तो क्या? इसके कारण समुदायों और समूहों के बीच विवाद बढ़ सकता है क्योंकि जबरन राष्ट्रगान थोपने पर कुछ लोगों को लगने लगता है कि सरकार उनके विवेक की रक्षक बन रही है. राष्ट्रगान को उसके सर्वोच्च स्थान पर रहने दें, जैसे- 26 जनवरी, 15 अगस्त, शहीद सैनिक, विजेता टीमों के लिए. बहादुर, पराक्रमी, दिलेर लोगों के लिए इसे छोड़ दें जो सितारों तक को छू आते हैं और अपने क्षेत्र में उत्कृष्टता को नये पैमाने के साथ परिभाषित करते हैं.

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