शेयर बाजार में तूफान से पहले की शांति? फूंक-फूंक कर कदम रखने में ही समझदारी
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
केतन गोरानिया
आइए समझते हैं कि जब अमेरिका को छींक आती है तो दुनिया कैसे थरथराने लगती है. अमेरिका ने 1971 में स्वर्ण मानक छोड़ दिया और मुद्रा की असीमित छपाई की शुरुआत हुई, लेकिन 2007 तक की छपाई नियंत्रित थी और 1913 से 2007 तक अमेरिका द्वारा मुद्रित धन 828 बिलियन डॉलर था. 2013 तक यह 1 ट्रिलियन डॉलर पर पहुंच गया और 2014 तक यह 4 ट्रिलियन डॉलर से भी अधिक हो गया. इस मनी प्रिंटिंग ने 2008 के वित्तीय संकट को टालने में अमेरिका की मदद की.
अमेरिकी सरकार का कर्ज 1950 में 257 बिलियन डॉलर था, जो 1980 में 909 बिलियन डॉलर हो गया. 2006 में यह 8.5 ट्रिलियन डॉलर था, 2013 में 17 ट्रिलियन डॉलर और अब 2022 में यह 30.6 ट्रिलियन डॉलर है. सवाल यह है कि अमेरिकी डॉलर मूल्यह्रास के बिना क्यों और कैसे जीवित रह सकता है? संक्षिप्त उत्तर यह है कि अमेरिकी डॉलर वैश्विक रिजर्व करेंसी है. अधिकांश देशों और कंपनियों को आमतौर पर अमेरिकी डॉलर में व्यापार करने की आवश्यकता होती है. अमेरिका का कुल घरेलू ऋण 16.15 ट्रिलियन डॉलर है. यह सब बताने का कारण यह समझाना है कि कर्ज की उच्च दरें तब तक बरकरार रह सकती हैं जब तक कि ब्याज दरें वाजिब हों या कम हों या नीचे गिरती रहें.
अब हम भारत पर आते हैं. हमारे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लगभग 21 प्रतिशत में निर्यात का योगदान है, जिसके प्रभावित होने की संभावना है क्योंकि विदेशों में उद्योग छंटनी कर रहे हैं और लागत में कटौती करने की योजना बना रहे हैं. पहले सभी अमेरिकी टेक कंपनियों का मूल्यांकन आसमान छू रहा था, वे सस्ते में धन जुटाने में सक्षम थे और प्रौद्योगिकी पर बहुत पैसा खर्च कर रहे थे तथा भारत को बड़ा फायदा हो रहा था. अब उनके खर्च कम करने की संभावना है.
यूरोप और ब्रिटेन को भी उच्च ब्याज दर के कारण मंदी का सामना करना पड़ेगा, लोगों की खर्च करने की शक्ति घट रही है, जो हमारे निर्यात में बाधा उत्पन्न करेगी. हम आंतरिक खपत पर बहुत भरोसा कर रहे हैं, लेकिन हमें यह समझना होगा कि पिछले 2 वर्षों में कोविड के बाद भारत में लोगों का व्यक्तिगत कर्ज बढ़कर 35.2 ट्रिलियन हो गया है, जो सर्वोच्च है. पिछले 2 वर्षों में कुल पर्सनल लोन में 10 ट्रिलियन की वृद्धि हुई है, होम लोन में 4 ट्रिलियन, ऑटो लोन में 2 ट्रिलियन, क्रेडिट कार्ड में 515 बिलियन तथा अन्य पर्सनल लोन में 2 ट्रिलियन की वृद्धि हुई है.
भारत में कोर इन्फ्लेशन (मूलभूत महंगाई) भी है जो पिछले 12 महीनों में आरबीआई के वांछित स्तर से अधिक है, यदि आरबीआई ब्याज दर में वृद्धि नहीं करता है तो हमारे देश से डॉलर का पलायन चालू हो जाएगा, जो देश के लिए बहुत नुकसानदायक होगा और महंगाई बढ़ेगी. ऐसे में जबकि आम चुनाव 2024 में है, कोई भी सरकार नहीं चाहेगी कि महंगाई बढ़े इसलिए रिजर्व बैंक ब्याज दर में वृद्धि जारी रखेगा. एक वैश्विक अनिश्चित समय और उच्च ब्याज वाली व्यवस्था में भारतीय उद्योग द्वारा नए निवेश में देरी होगी. यह भारतीय शेयर बाजार के लिए अच्छी बात नहीं है.
वर्तमान में शेयर बाजार का ऐतिहासिक रूप से उच्च मूल्यांकन उभरते बाजार के औसत से लगभग दोगुना है और इसका सबसे बड़ा कारण कोविड के बाद इक्विटी और म्युचुअल फंड में खुदरा निवेशकों का व्यापक निवेश है जो वर्तमान में लगभग 10 करोड़ डिपॉजिटरी खाते तक पहुंच गया है. हम इसके कई गुना बढ़ने की उम्मीद कर रहे हैं जो भविष्य में हो सकता है लेकिन निकट अवधि में यह आसान नहीं है क्योंकि केवल 3 प्रतिशत भारतीय मध्यम वर्ग की ही एक लाख रुपए मासिक आमदनी है और 90 प्रतिशत भारतीय आबादी प्रति माह 25000 रुपए से कम कमाती है, जिनके लिए शेयर बाजार में निवेश करना मुश्किल है.
बहुत सारे निवेशक जिन्होंने शेयर बाजार में निवेश करना शुरू कर दिया है, उन्होंने 10 प्रतिशत के एक करेक्शन को छोड़कर कोई करेक्शन नहीं देखा है और इसने निवेशकों को अति आत्मविश्वासी बना दिया है जिससे जोखिम के कारकों पर विचार किए बिना उनकी निवेश करने की आदत बन गई है. यह मानव मनोविज्ञान है कि एक बार नौसिखिए निवेशक या व्यक्ति जब किसी परिसंपत्ति की कीमत में गिरावट का अनुभव करते हैं, तो वे निवेश करना कम या बंद ही कर देते हैं.
भारतीय शेयर बाजार में पिछले साल काफी उछाल था क्योंकि घरेलू कारकों और घरेलू बचत को शेयर बाजार में चैनलाइज किए जाने के साथ-साथ घरेलू संस्थागत निवेशकों की क्रय शक्ति भी थी. वर्तमान अंतरराष्ट्रीय और घरेलू परिदृश्य में, अल्पावधि में नए बड़े निवेश प्राप्त करना और बड़े विदेशी संस्थागत निवेशकों की बिकवाली को सहन कर पाना मुश्किल होगा. डॉलर के मुकाबले रुपए में गिरावट के साथ 6 से 12 महीने की अल्पावधि में भारतीय इक्विटी में बिक्री का दबाव बढ़ने की संभावना है और भारतीय शेयर बाजार में अचानक गिरावट आ सकती है.
रुपया 80 से नीचे लंबे समय तक स्थिर था, लेकिन एक बार जब यह 80 को पार कर गया तो 82.5 तक पहुंचने में इसे समय नहीं लगा. वित्तीय बाजार में वृद्धि या गिरावट की तीव्रता बहुत अधिक होती है. इसी तरह भारतीय बाजार लगभग एक वर्ष से स्थिर हैं लेकिन यदि यह गिरना शुरू करेंगे तो गिरावट बहुत तेज हो सकती है. उस स्थिति में नया खुदरा निवेशक बहुत सारा पैसा खो देगा, इसलिए सतर्क रहने की सलाह दी जाती है और शेयर बाजार से तब तक दूर रहें जब तक कि अंतरराष्ट्रीय अशांति समाप्त न हो जाए, सिवाय उन लोगों के, जिनके पास वास्तव में दीर्घकालिक निवेश का विकल्प हो. फूंक-फूंक कर कदम रखने में ही समझदारी है.