Teachers Day: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की जरूरत, ज्ञान पर टिकी 21वीं सदी की दुनिया
सघन और समग्र चिंतन के साथ इसे वंचित, आदिवासी, स्त्री, दिव्यांग उपेक्षित, पूर्व बाल्यावस्था, विशिष्ट शिक्षा के लिए तत्परता आदि सभी काफी दृष्टियों से देखना जरूरी होगा।
शिक्षक दिवस हमें यशस्वी शिक्षाविद और भारत के दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन का स्मरण दिलाते हुए शिक्षा में उत्कृष्टता के प्रति समर्पित होने के लिए प्रेरित करता है। आज भारत सशक्त और आत्मनिर्भर देश होने के अपने संकल्प पर आगे बढ़ रहा है। इस लक्ष्य में सारे देश की सुख और समृद्धि की कामना निहित है, जिसे मूर्त आकार देने में शिक्षा की केंद्रीय भूमिका से शायद ही कोई असहमत हो। दरअसल ज्ञान पर टिकी 21वीं सदी की तेज-रफ्तार सामाजिक और आर्थिक दुनिया में किसी भी समाज की सामर्थ्य उसकी शिक्षा-व्यवस्था की गुणवत्ता पर ही निर्भर करती है।
ताजा रपट के अनुसार, वैश्विक मानव विकास के सूचकांक में नॉर्वे सबसे ऊपर है और वह पूरे विश्व में शिक्षा पर सबसे ज्यादा खर्च करने वाला देश है। भारत 189 देशों की सूची में 131 वें स्थान पर है। सभी विकसित देश शिक्षक-प्रशिक्षण को गंभीरता से लेते हैं। वे यह सुनिश्चित करते हैं कि शैशवावस्था से ही सीखने का संरचित अनुभव मिले। इसके अंतर्गत बच्चे को सृजनात्मकता के साथ सीखने का भरोसेमंद और प्रीतिकर अनुभव देने की भरपूर कोशिश होती है। इसकी व्यवस्था किसी राजनेता या नौकरशाह की मंशा की जगह शिक्षण-शास्त्र की सैद्धांतिक और व्यावहारिक उपलब्धियों के आलोक में की जाती है। समाज और विद्यालय के बीच एक पारदर्शी और भरोसे का रिश्ता भी बना रहता है। दोनों का उद्देश्य बच्चे की अंतर्निहित प्रतिभा की अभिव्यक्ति और उसकी रुचि का आदर करते हुए कौशलों के अर्जन को संभव बनाने पर जोर देती है।
भारत में शिक्षा पाने का अधिकार सरकार ने सबको दे दिया है, पर कौन कितनी और कैसी शिक्षा पाता है, यह उसके भाग्य और क्षमता पर निर्भर करता है, क्योंकि सबको समान शिक्षा की सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। लोकतंत्र की व्यवस्था में शिक्षा देने और लेने की सबको पूरी छूट है और अच्छे, बुरे, निकृष्ट हर कोटि के विद्यालय मिलते हैं। यहां निजी स्कूल हैं (यद्यपि उनको पब्लिक स्कूल कहा जाता है!), जिनकी एक बड़ी रेंज है, जिनमें छोटे साधारण
दूसरी ओर, सरकारी स्कूलों का मेला लगा है, जहां अध्यापकों की उपस्थिति, विद्यालय की सुविधाएं और पाठ्य-चर्या अपेक्षित मानक स्तर से काफी नीचे है। इसका आधिकारिक प्रमाण सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर शैक्षिक उपलब्धि सर्वेक्षण (नेशनल अचीवमेंट सर्वे) की वर्ष 2021 की रपट है। इसमें भाषा, गणित, पर्यावरण, विज्ञान, समाज विज्ञान, और अंग्रेजी में तीसरे, छठे, पांचवें, आठवें और दसवें दर्जे के छात्रों की शिक्षण उपलब्धि का हर तरह के
विद्यालयों में मूल्यांकन किया गया। कुल 3,40,000 बच्चों पर 720 जिलों में हुए सर्वेक्षण से पता चला कि गणित में तीसरे दर्जे में 57 प्रतिशत उपलब्धि थी, जो दर्जा पांच में 44 रह गई और आठवें में 36 और दसवें में 32 प्रतिशत पर पहुंच गई। भाषा में तीसरे दर्जे में 62 प्रतिशत से पांचवें दर्जे में 52 प्रतिशत हो गई। विज्ञान में आठवें में 39 प्रतिशत थी, जो दसवें में 35 प्रतिशत हो गई। ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों की उपलब्धि शहर के बच्चों से नीचे थी। अनुसूचित
कुल मिलाकर ये परिणाम बताते हैं कि कक्षा तीन से कक्षा दस के बीच शैक्षिक उपलब्धि में गिरावट बढ़ती जा रही है और गणित और विज्ञान में विशेष रूप से यह चिंताजनक है। महात्मा गांधी ने शिक्षा के अंतर्गत हाथ, हृदय और मस्तिष्क, तीनों के उपयोग पर जोर दिया था और शिक्षा को समाजोपयोगी बनाए रखने की बात की थी। आज समावेशन की बात हो रही है, जो प्रायः नामांकन तक सीमित है। सघन और समग्र चिंतन के साथ इसे वंचित, आदिवासी, स्त्री, दिव्यांग उपेक्षित, पूर्व बाल्यावस्था, विशिष्ट शिक्षा के लिए तत्परता आदि सभी काफी दृष्टियों से देखना जरूरी होगा।
सोर्स: अमर उजाला