महिला दिवस पर 'महिलाओं पर केंद्रित' फिल्‍मों की बातें

महिलाओं पर केंद्रित फिल्‍मों की बातें

Update: 2022-03-08 14:39 GMT
महिला सशक्‍तिकरण (Women Empowerment ) बहुत प्रभावी शब्‍द है. जिसने भी इस शब्‍द का पहली बार इस्‍तेमाल किया होगा वो ताली का हकदार है. हाल के वर्षों में इस शब्‍द का जितना अवमूल्‍यन हुआ है उतना किसी और शब्‍द का नहीं. एक बेहद जरूरी और प्रभावशाली शब्‍द को लेकर राजनीतिज्ञों और इस फील्‍ड में कार्य कर रही संस्‍थाओं ने इतने झूठ बोले हैं, इतने स्‍वांग रचे हैं कि एक अच्‍छा खासा उपयोगी शब्‍द महज खोखला नारा बनकर रह गया है. समाज की रूढ़ियां भी महिलाओं को उनका हक देने के मामले में लगातार अड़ंगे डालती रही हैं. एक बात और महिलाओं के एक त‍बके ने भी वीमेन एम्‍पावरमेंट के तहत मिले अधिकारों का बेजा और गलत इस्‍तेमाल किया है और इनकी जरूरत की राह में रोड़े अटकाए हैं. बहरहाल बात फिल्‍मों की.
फिल्‍म वाले कहते हैं समाज में जो घटता है हम वही दिखाते हैं. दूसरी तरफ विरोधियों का तर्क है कि फिल्‍में समाज को बिगाड़ रही है, खासकर नई पीढ़ी को. यह बहस अंतहीन है, लेकिन ये सच है कि महिला केंद्रित विषयों पर बनने वाली फिल्‍मों का रास्‍ता सिनेमा को समाज ने ही दिखाया है. बॉलीवुड की बात करें तो हाल के दिनों में इस विषय पर बेहतर और उल्‍लेखनीय काम हुआ है. लेकिन शुरूआत शुरू से.
बात 'मदर इंडिया' की. 1957 में बनी इस फिल्‍म के बाद बेशक इससे बेहतर और प्रभावी फिल्‍में बनी हैं, फिर भी इस फिल्‍म को दो कारणों से ऊपर रखा जा सकता है. पहला, इसे महिला सशक्तिकरण की मुहिम की शुरूआती फिल्‍म कहा जा सकता है. यह उस दौर की फिल्‍म है जब न तो यह शब्‍द प्रचलन में था और न ही उस दौर में समाज में महिला की वो हैसियत ही थी, जो अब है.
दूसरी बात, यह एक ग्रामीण गरीब और विधवा महिला राधा की कहानी है. वो खेत में खुद बैल की जगह जुतकर फसल उगाती है. मुश्किल से अपने बच्‍चों का पालन पोषण तो करती ही है और गरीब विधवा औरत पर अपना हक समझने वाले जागीरदार से अपने आपको बचाती भी है. फिल्‍म का क्‍लाईमेक्‍स राधा के केरेक्‍टर को अप्रतिम ऊंचाईयों पर पहुंचाता है, जब वो अपने गुण्‍डे बेटे को अपने हाथ से गोली मार देती है.
इसे 1958 में राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार से सम्‍मनित किया गया था. यह फिल्‍म पहली बार भारत की ओर से अकादमी पुरस्‍कार (आस्‍कर) के लिए भेजी गई थी. यह उन चुनिंदा फिल्‍मों में शुमार है जिसे आज भी लोग देखना पसंद करते हैं. मेहबूब खान द्वारा लिखित और निर्देशित इस फिल्‍म में नर्गिस, सुनील दत्‍त, राजेन्‍द्र कुमार, राजकुमार और कन्‍हैया लाल मुख्‍य भूमिका में थे.
'राजी' आलिया भट्ट के कमाल के अभिनय के लिए याद रखी जाने वाली फिल्‍म है. यह फिल्‍म काश्‍मीर के एक ऐसे देशभक्‍त परिवार की कहानी है, जो अपनी जवान बेटी को देश की खातिर होम देने को तैयार हो जाते हैं. वे एक बेहद जोखिम भरा कदम उठाते हैं और जासूसी करने के लिए अपनी बेटी को पाकिस्‍तान के सेनाधिकारी के परिवार में बहु बनाकर भेज देते हैं. यह अद्भुत त्‍याग था परिवार और बेटी दोनों का. फिल्‍म का कालखण्‍ड 1971 के भारत पाक युद्ध का है जब बंगला देश का उदय हुआ था. कथानक पाकिस्‍तान का है जबकि शूटिंग भारत में हुई थी. हरविंदर सिक्‍का के अंग्रेजी उपन्‍यास पर केंद्रित इस का निर्माण करण जौहर ने किया था, निर्देशन मेघना गुलज़ार ने किया.
नागेश कुकनूर की‍ फिल्‍म 'डोर' अलग पृष्‍ठभूमि से आन वाली दो महिलाओं के साहचर्य से विकसित अनूठा कथानक है. मीरा का पति सउदी अरब में एक दुर्घटना में मारा जाता है. इसके लिए उसका रूम मेट आमिर दोषी ठहराया जाता है और उसे सउदी में फांसी की सजा सुना दी जाती है. आमिर के बचने का एक ही रास्‍ता है मीरा उसे माफ कर दे. आमिर की पत्‍नी जीनत मीरा की तलाश करती है. दोनों में गहरी दोस्‍ती हो जाती है लेकिन जीनत उसे अपनी असलियत नहीं बता पाती. क्‍योंकि दुर्घटनावश मरने के बावजूद मीरा पति के हत्‍यारे को सजा दिलाना चाहती है. इधर गांव में सुंदर मीरा पर कर्ज देने वाले की कृदृष्टि है वो कर्ज के बदले मीरा की मांग करता है परिवार वाले अंतत: उसकी बेजा मांग के आगे नतमस्‍तक हो जाते हैं. उधर हताश जीनत वापस जा रही है. तभी मीरा स्‍टेशन पहुंचती है उसका हृदय परिवर्तन हो गया है. मीरा माफीनामा दे देती है. दोनों नई मंजि़ल की ओर चल पड़ते हैं. गुलपनाग और आयशा टाकिया की भूमिका वाली यह फिल्‍म महिलाओं को एक अलग नज़रिए से देखती है और खूबसूरती के साथ पेश भी करती है.
फिल्‍म 'कहानी' एक अलग ही अंदाज़ में एक महिला की जीवटता की कहानी कहती है. अपने पति के अनजान हत्‍यारे की खोज में वो कोलकाता पहुंचती है. वह ना सिर्फ हत्‍यारे को खोज निकालने के असंभव काम को अंजाम देती है, बल्कि उसे मौत के घाट भी उतार देती है. देश की सुरक्षा से जुड़े इस कथानक में रोमांच तो है ही मिस्‍ट्री भी भरपूर है. निर्देशक सुजाय घोष एक बेहद उलझी कहानी को बहुत ही सरल अंदाज़ में दर्शकों को सुनाने में सफल होते हैं. विद्या बालन ने इसमें कमाल की अदाकारी की है. क्‍लासिक कथानक वाली इस फिल्‍म का क्‍लाईमेक्‍स चौंकाता तो है ही इसकी फिल्‍मी बुनावट भी बहुत खूबसूरत है
'क्‍वीन' कंगना की फिल्‍म है‍ जिसने कंगना के केरियर को एक अलग मुकाम पर पहुंचाया. यह फिल्‍म महिला के साहस को एक अद्भुत और अनूठे अंदाज़ में सामने लाती है. शादी की तमाम तैयारियां होने के बाद लड़का शादी से मना कर देता है. ऐसे हालात में लड़की यानि कंगना तय करती है शादी भले ही न हो लेकिन वो हनीमून पर जरूर लंदन जाएगी, किसी के साथ नहीं बल्कि अकेली. अंतत: कंगना लंदन पहुंचती है और वहां अकेले घूमकर न सिर्फ एंजॉय करती है बल्कि दर्शकों का भी भरपूर मनोरंजन करती है. 'पूरा लंदन ठुमक दा' गीत पर ठुमके लगाकर लंदन को भी ठुमका लगाने पर मजबूर करती है.
'मर्दानी' रानी मुखर्जी की फिल्‍म है जिसे आदित्‍य चौपड़ा के लिए प्रदीप सरकार ने निर्मित किया है. यह एक एक्‍शन थ्रिलर फिल्‍म है जो एक महिला पुलिस अधिकारी शिवानी शिवाजी राय (रानी) के इर्द गिर्द घूमती है. मानव तस्‍करी पर केंद्रित इस फिल्‍म में शिवानी एक अपहृत किशोरी को ढूंढने निकलती है और अपनी जान और आबरू को खतरे में डालकर रोमांचक कारनामों को अंजाम देती है. अंतत: अपने मिशन में सफल भी होती है.
'नो वन किल्‍ड जेसिका' एक सच्‍ची कहानी पर आधारित है. एक राजनेता का बेटा बार टेंडर जेसिका की गोली मारकर हत्‍या कर देता है. उसकी बहन न्‍याय पाने के लिए संघर्ष करती है. इसमे विद्या बालन ओर रानी मुखर्जी मुख्‍य रोल में थीं.
'मार्गरीटा विथ ए स्‍ट्रा' सोनाली बोस निर्देशित फिल्‍म है जिसमें कल्कि कोचलीन ने शानदार अभिनय किया है. कल्कि अभिनीत पात्र सेरेब्रल पाल्‍सी से पीडि़त एक किशोरी है जो दिल्‍ली यूनिवर्सिटी में अध्‍ययनरत है. असफलताओं से हार नहीं मानने वाली कल्कि अध्‍ययन के लिए स्‍कॉलरशिप प्राप्‍त कर न्‍युयार्क जाती है.जहां उसकी मुलाकात एक पाकिस्‍तानी अंधी लड़की से होती है. महिला केंद्रित यह कहानी रोचक मोड़ लेती है.
'मॉम' श्रीदेवी की रोचक फिल्‍म है जिसमें वह अपनी सौतेली बेटी का बदला लेने के लिए निकल पड़ती है. श्रीदेवी की एक और फिल्‍म 'इंग्लिश-विंग्‍लिश' अंग्रेजी न आने वाली आम भारतीय ग्रहणियों को एक राह दिखाने वाली फिल्‍म है. फिल्‍म बताती है अंग्रेजी नहीं आने या आने भर से किसी का मूल्‍यांकन संभव नहीं. एक सामान्‍य से नज़र आने वाले लेकिन बहुत गंभीर विषय पर फिल्‍म सहज अंदाज़ में सार्थक बात करती है.
'सीक्रेट सुपर स्‍टॉर' मां बेटी की इमोशनल स्टोरी बयान करती है. यह फिल्‍म एक किशोर लड़की की कहानी है जो गायक बनने की ख्‍वा‍हिश रखती है. एक नकाब के साथ अपनी पहचान छिपाकर यू ट्यूब पर वीडियो अपलोड करती है. आमिर-किरण राव की इस फिल्‍म में जायरा वसीम के अभिनय को बहुत सराहा गया.
'पीकू' टॉयलेट ह्युमर पर एक अलग तरह की फिल्‍म है. जिसमें दीपिका पादुकोण, अमिताभ और इरफान खान ने अभिनय किया. यह सत्‍यजीत रे की बंगाली भाषा की लघु फिल्‍म पर आधारित है. रानी मुखर्जी की 'हिचकी' बताती है इरादा पक्‍का हो तो कोई राह मुश्किल नहीं होती.
'नीरजा' सोनम कपूर की सबसे उल्‍लेखनीय फिल्‍म है. 'लिपिस्‍टक अंडर बुर्खा' चार महिलाओं के अंदरूनी जीवन की पड़ताल करती है जो अपनी स्‍वतंत्रता की तलाश में हैं. 'चांदनी बार' मधुर भंडारकर की तब्‍बू अभिनीत फिल्‍म है जिसमें बार बालाओं की कहानी मार्मिक अंदाज़ में पेश की गई है. भंडारकर की एक और फिल्‍म 'फैशन' मॉडल जगत में किस्‍मत आजमा रही युवतियों के संघर्ष को दिखाती है. इसमें प्रियंका चौपड़ा मुख्‍य भूमिका में थीं. 'निल बटे सन्‍नाटा' नाम के अनुरूप अलग तरह की फिल्‍म है. हाई स्‍कूल ड्राप आउट एक लड़की की मां का रोल निभाने वाली स्‍वरा भास्‍कर ने इसमें शानदार अभिनय किया है. 'पंगा", 'थप्‍पड़' 'एन एच 10', 'डियर जिंदगी' 'सांड की आंख' 'पिंक' आदि वूमेन ओरिएंटेड खू‍बसूरत फिल्‍मों की श्रेणी में शुमार हैं. 'प्रियंका चौपड़ा की 'मैरी कॉम' और शाहरूख अभिनीत 'चक दे इंडिया का अलग से जि़क्र जरूरी है.
फिल्‍में और भी हैं. बहरहाल, इन फिल्‍मों के आकलन से ये बेहिचक कहा जा सकता है कि पुरूष प्रधान सिनेमा में महिला अदाकाराओं ने जब भी मुख्‍य भूमिका अदा की है एक अलग तरह के सिनेमा का लुत्‍फ दर्शकों ने उठाया है. ऐसा सिनेमा जिसमें यूनिकनेस के साथ रोमांच, और मनोरंजन भी है. साथ ही है निर्माताओं की खास क्ख्‍वाहिश को पूरा करने की क्षमता, यानि बाक्‍स ऑफिस पर सिक्‍के उछलवाने की क्षमता. किसी शायर ने कहीं सच ही कहा है '
औरत मोहताज़ नहीं किसी गुलाब की, वो खुद बाग़बान है इस कायनात की'


(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

शकील खान फिल्म और कला समीक्षक
फिल्म और कला समीक्षक तथा स्वतंत्र पत्रकार हैं. लेखक और निर्देशक हैं. एक फीचर फिल्म लिखी है. एक सीरियल सहित अनेक डाक्युमेंट्री और टेलीफिल्म्स लिखी और निर्देशित की हैं.
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