नेताओं के इस्तीफों को हल्के में लेना कांग्रेस के लिए आत्मघाती !
हार्दिक पटेल ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है
Faisal Anurag
हार्दिक पटेल ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है. इसके ठीक पहले पंजाब के वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ ने कांग्रेस छोड़ा. जाखड़ का इस्तीफा उदयपुर के चिंतन शिविर के बीच आया था. और शिविर में 50 प्रतिशत स्थान युवाओं के लिए आरक्षित करने के फैसले के बाद हार्दिक ने पार्टी को बाय-बाय कह दिया है. कुछ और हैं, जो कांग्रेस छोड़ने और भविष्य की राजनीति के लिए ठौर की तलाश में हैं. हार्दिक का भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के साथ पिछले तीन महीनों से बातचीत की खबर मीडिया की सुर्खियों में थी और अब वे भाजपा के दरवाजे पर खड़े हैं. हालांकि आम आदमी पार्टी भी कोशिश कर रही है कि हार्दिक उनका झंडा थाम लें. जाखड़ भी दिल्ली में भाजपा के नेताओं से संपर्क में हैं.
पटेल आरक्षण से नेता बन कर कर उभरे हार्दिक के खिलाफ भाजपा के शासनकाल में देशद्रोह सहित 22 मामले दर्ज किए गए थे. अब खबर है कि गुजरात की भाजपा सरकार उन मामलों को उठाने की कवायद कर रही है. दोनों नेताओं ने इस्तीफा देते हुए कांग्रेस नेतृत्व को आड़े हाथों लिया है. हार्दिक ने कांग्रेस नेतृत्व को गुजरात विरोधी बताया है, जबकि जाखड़ ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर गुमराह करने वालों से घिरे होने का आरोप लगाया था.
चिंतन शिविर के बाद भी नेताओं का कांग्रेस छोड़ कर जाना थमा नहीं है. पिछले तीन सालों में कांग्रेस छोड़ने वाले लगभग सभी नेताओं ने पार्टी आलाकमान की तीखी आलोचना की है. इतने सारे नेताओं के आरोपों में यह समानता कुछ गंभीर सवाल खड़ा करती है. इन सवालों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. स्वतंत्र समझे जाने वाली मीडिया के अधिकांश समीक्षक चिंतन शिविर को यदि एक बड़े अवसर से चूक जाने की बात कह रहे हैं, तो यह भी गंभीर मामला है.
चिंतन शिविर में कई सवालों पर विस्तार से और खुल कर चर्चा हुई. लेकिन अंतिम दिन जो एलान किए गए, वह भारतीय जनता पार्टी की नीतियों के खिलाफ बड़ी आबादी में कोई नयी उम्मीद शायद ही जगा पाया. कांग्रेस वैचारिक धरातल पर अपनी पहचान फिर से हासिल करने में कारगर होती नहीं दिख रही है.
उदयपुर के उद्घाटन भाषण में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा था- संकट और चुनौतियां हैं, उन्हें टाला नहीं जा सकता है. लेकिन ऐसा कोई रोडमैप नहीं उभरा है, जिससे भाजपा- आरएसएस की वैचारिक चुनौतियों के खिलाफ कार्यकर्ता हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकें. साल 2014 में जो कांग्रेस लड़खड़ाई फिर ठीक से खड़ी नहीं हो सकी. उदयपुर के बाद भी कांग्रेस के उठ खड़े होने का यदि रोडमैप नहीं उभर पाया है, तो इसके लिए शीर्ष और पिछले 40 सालों से पार्टी में अहम पदों पर रहे नेता दोनों ही जबावदेह हैं.
किसी भी पार्टी के पुनर्जीवन के लिए जरूरी है कि वह आत्ममूल्यांकन में रियायत किसी को भी नहीं दे. किसी एक नेता या पांच नेताओं का पार्टी छोड़ कर जाना किसी पार्टी की सेहत, चुनावी उम्मीदों के परसेप्सन तभी प्रभावित करता है, जब उपर से नीचे तक पदों पर बैठे नेता की पकड़ आमलोगों से टूट जाती है. इस बीमारी की पहचान तो राहुल गांधी ने शिविर के अंतिम दिन के व्याख्यान में जरूर की, लेकिन केवल भारत जोड़ो उन नेताओं को बांध कर रखने के लिए पर्याप्त नहीं दिख रहा है, जो सत्ता की राजनीति में एक दावेदार बन कर भूमिका निभाना चाहते हैं.
गुजरात में आम आदमी पार्टी भले ही ज्यादा सीट न जीत सके, लेकिन कांग्रेस को नुकसान पहुंचा रही है. 2017 में गुजरात में सत्ता बदलाव का कांग्रेसी सपना जोर-शोर से प्रभावी था. तीन गुजराती युवा नेता तब कांग्रेस के खेमें में थे. इनमें एक तो पहले ही भाजपा में जा चुका है और दूसरे के जाने की चर्चा है. एक जिग्नेश मेवानी जरूर कांग्रेस में उठे हैं, लेकिन क्या प्रदेश नेतृत्व उनके आक्रामक तेवर को बरदाश्त – स्वीकार करेगी.