तपती धूप में सूरजमुखी
इन दिनों तपती धूप और तेज गर्मी पड़ने लगी है। यही तो है मौसम परिवर्तन। यह कुछ इस तरह होता है कि आपको पता ही नहीं चलता कि कब ऋतुचक्र बदल गया।
कृष्ण कुमार रत्तू: इन दिनों तपती धूप और तेज गर्मी पड़ने लगी है। यही तो है मौसम परिवर्तन। यह कुछ इस तरह होता है कि आपको पता ही नहीं चलता कि कब ऋतुचक्र बदल गया। प्रकृति का यही नियम है। अरबों वर्षों से धरती के गति के साथ ऐसा होता आ रहा है। मगर इस बार जैसी गर्मी पड़ रही है, वैसी पहले नहीं पड़ती थी। असल में जिस तरह हमने पूरी धरती के जल, जंगल को नष्ट किया है और पर्यावरणीय मुद्दों की अवहेलना की है, यह उसी का नतीजा है। यही प्रकृति का रुझान सिखाता है कि अब भी रुक जाओ, नहीं तो सब बर्बाद हो जाएगा।
इस धूप में सूरजमुखी ही एक ऐसा पौधा है, जो सूर्य से आंख से आंख मिला कर खड़ा रहता है। यह संयोग ही है कि विश्व में सबसे ज्यादा सूरजमुखी के उत्पादन वाली धरती यूक्रेन में इस वक्त तबाही के मंजर दिखाई दे रहे हैं। भारत में धूप के अनेक नाम हैं। सूर्य को देवता की तरह पूजा भी जाता है। इस गर्मी में हमारे संस्कारों का सूर्य छिपा हुआ है, जिसे हमने बदलते हुए समय के साथ भुला दिया है। इसीलिए तो हम मन-मस्तिक से लेकर सड़क तक इतने तपे हुए हैं, इतने शोर में जी रहे हैं और इतनी तेजी में हैं कि हमारे पांव भी धरती पर नहीं लगते।
यह समय का सच है और सच तो यह भी है कि यही हमें अपनी तबाही की ओर ले जा रहा है। पर भारत की सांस्कृतिक आभा में धूप के अनेक रूप दिखाई देते हैं। कहा जाता है कि धूप का यह समय सूर्य के प्रति आभार प्रकट करने का है। भारत के कुछ राज्यों में, विशेषकर झारखंड तथा ओड़िशा के आसपास की पट्टी में यह सोचने का समय है। वहां पर कहा जाता है कि यह बाहा पूजा के साथ आशीर्वाद है, इसे पूरा संताली समाज आज तक मनाता है। इस पर्व की पूर्व संध्या हंगामेदार होती है, जहां आदिवासी गीत और मादल की थाप पर पुरानी परंपराओं का निर्वाह इस दिन हुड़दंग के साथ करते हैं।
सूरजमुखी के आधार पर जंतर मंतर पर लगे यंत्र पुरातन पद्धति से वर्षा के आगमन की भविष्यवाणी करते हैं। इन दिनों जो धूप का मौसम है और जिसमें चलना है, आदमी के लिए उसके जिंदा रहने की निशानी है। बेशक यह गरीब के लिए दोजख का महीना है, पर अमीर के लिए भ्रमण करने का समय है। समंदर की लहरों पर कल्लोल करने तथा ठंडी जगहों का मजा लेने का मौसम है।
देश के कई हिस्सों में, जिसमें राजस्थान के जैसलमेर जैसे क्षेत्र शामिल हैं, तपती हुई रेत के साथ थार का समंदर इतना गर्म हो जाता है कि तापमान पचास डिग्री तक पहुंच जाता है, मगर वहां भी जिंदगी होती है। वहां तरबूज की मिठास है और तेज चीनी वाले लड््डू तथा गुड़-बाजरे की खिचड़ी खाई जाती है। असल में इस तपती हुई धूप में जिंदा रहने का सभी का अपना तरीका है, जो आदि काल से हमने अपनाया हुआ है।
तपती हुई धूप में गरीब की जिस तरह की दुर्दशा है, वह भी देखने योग्य है। एक-सवा सौ रुपए लीटर पेट्रोल और बढ़ती महंगाई ने धूप को और तौबा तौबा करने लायक बना दिया है। यह सच है कि आदमी जीता है और फिर तप कर इस दुनिया से विदा हो जाता है। कुछ लोग धूप में खड़े होकर नई परिपाटी शुरू करते हैं, जो इतिहास की विरासत हो जाता है।
जब तक आम आदमी इस धूप में जिंदा है, तब तक इस देश का इतिहास और इस धरती की कहानियों का सच भी जिंदा है। आइए, सच के इस रूप का जिंदादिली से आवाहन करें, जिसमें जिंदगी की नई रोशनी और लय आई हुई है। मौसम आते-जाते रहेंगे और यह दुनिया भी इसी तरह प्रकृति को एक नए रूप में देखती रहेगी, पर अगर हमने अपनी प्रकृति और जल, जंगल और सूर्य को भी बचा कर नहीं रखा तो वह दिन दूर नहीं, जब सूर्य सबको जला देगा।
प्रश्न है कि हम अपने इन मूल्यों और प्रकृति को बचाने के प्रति कितने सजग हैं। सच तो यह भी है कि अगर हमने सूर्य के इस तर्क के साथ खिले हुए सूरजमुखी को देखने का साहस कर लिया, तो फिर हम आने वाली पीढ़ियों के लिए भी इस धरती को सुरक्षित कर सकेंगे। तपती हुई धूप में सूर्य से आंख मिलाते हुए सूरजमुखी शायद यही तो कह रहे हैं। कभी सूरजमुखी को छूकर तो देखो, कभी सूर्य की आंख में आंखें डाल कर तो देखो। वह जीवनदाता है और यह प्रकृति उसी की तपिश में जिंदा है। इसका धन्यवाद करते रहना चाहिए। यही हमारा भविष्य है और आने वाली नस्लों को भी इसके प्रति सजगता और कृतज्ञता के साथ चलना होगा।