भारत और चीन के सैन्य अधिकारियों के बीच हुई कई चरणों की बातचीत के बाद पूर्वी लद्दाख के गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स इलाके से दोनों देशों की टुकड़ियां पीछे हट गयी हैं. उल्लेखनीय है कि अप्रैल-मई, 2020 से ही इस क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सेना की आक्रामक गतिविधियां जारी थीं. इसकी प्रतिक्रिया में भारत ने भी बड़ी संख्या में सैनिकों को तैनात किया था.
भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि इस प्रक्रिया के पूरे होने के बाद नियंत्रण रेखा से संबंधित अन्य मुद्दों पर दोनों पक्ष विचार करेंगे. दो साल से अधिक समय से चली आ रही तनातनी में कमी स्वागतयोग्य है. भारत ने लगातार कहा है कि जब तक वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अप्रैल, 2020 से पहले की यथास्थिति बहाल नहीं होगी, चीन के साथ संबंध भी सामान्य नहीं होंगे.
कुछ समय पहले जब चीनी विदेश मंत्री बिना आमंत्रण भारत आये थे, तो उनकी आधिकारिक आगवानी न कर भारत ने अपनी नाराजगी स्पष्ट कर दी थी. उज्बेकिस्तान में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन की शिखर बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच आमने-सामने मुलाकात होगी. कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इस बैठक से पहले अपने सैनिकों को पीछे हटाकर चीन ने एक सकारात्मक संदेश देने और भारत को आश्वस्त करने का प्रयास किया है.
दोनों नेताओं की परस्पर वार्ता से तनाव घटाने की दिशा में मदद मिलने की आशा है. लेकिन अतीत के अनुभवों को देखते हुए चीन पर पूरी तरह भरोसा कर पाना मुश्किल है. रिपोर्टों की मानें, तो नियंत्रण रेखा से परे चीनी क्षेत्र में सैनिकों और हथियारों की मौजूदगी कायम है. बीते दो-तीन वर्षों में लद्दाख के अलावा अन्य जगहों में भी नियंत्रण रेखा पर चीनी सेना की गतिविधियां चिंताजनक रही हैं.
वह विवादित क्षेत्रों में बेतहाशा निर्माण कार्य भी कर रहा है. साथ ही, वह पाकिस्तान को भी भारत के विरुद्ध उकसाने में जुटा हुआ है. हमारे इन पड़ोसी देशों की आक्रामक जुगलबंदी देश की सुरक्षा के लिए सबसे प्रमुख चुनौती है. भारत ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि सीमा विवाद पर चीन के रवैये का असर द्विपक्षीय व्यापार पर भी पड़ सकता है, जो चीन के लिए बड़ा आर्थिक झटका हो सकता है.
भारत ने बीते कुछ वर्षों में सीमावर्ती क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर का व्यापक विस्तार किया है, जिससे वहां के विकास के साथ-साथ हमारे सैनिकों की आवाजाही तथा बड़े हथियारों की ढुलाई में भी सहायता मिलेगी. चीनी सेना ने ऐसे कुछ इलाकों में अपना ठिकाना बना लिया है, जहां से वह सामरिक महत्व के मार्गों और दर्रों के लिए खतरा पैदा कर सकता है. हमें सामरिक रूप से सतर्क रहने के साथ चीन पर कूटनीतिक और आर्थिक दबाव भी बढ़ाना होगा.
प्रभात खबर के सौजन्य से सम्पादकीय