भारत और ब्रिटेन के बीच जो नजदीकी देखी गई है, उसे आने वाले वर्षों तक याद किया जाएगा। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन का भारत दौरा दर्ज करने लायक मोड़ साबित हो सकता है। ब्रिटेन आर्थिक संबंधों को बढ़ाना चाहता है, साथ ही, रक्षा मामलों में भी भारत के साथ सहयोग बेहतर करने को लालायित है। हो सकता है, ब्रिटेन की यह कोशिश इसलिए भी हो कि रूस पर भारत की निर्भरता कम हो जाए, लेकिन तब भी भारत जिस तरह से अपना हित देखते हुए मजबूती से आगे बढ़ रहा है, वह मानीखेज है। खास कामयाबी यह कि ब्रिटेन भारत को एक ओपन जनरल एक्सपोर्ट लाइसेंस जारी करेगा, जिससे रक्षा खरीद आपूर्ति में कम समय लगेगा। इसके अलावा ब्रिटेन लड़ाकू जेट बनाने में भी भारत की मदद करेगा। हिंद महासागर में भारत की ताकत बढ़ाने की दिशा में भी वह मदद करना चाहता है। सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और स्वास्थ्य क्षेत्र में ब्रिटेन ने भारत में निवेश बढ़ाने की बात भी की है। इतना ही नहीं, दोनों देश इसी साल के अंत तक एक व्यापक मुक्त व्यापार समझौता भी करने वाले हैं। इस तरह का समझौता पहले ही हो जाना चाहिए था, लेकिन अगर ब्रिटेन इस दिशा में अब बढ़ रहा है, तो भारत की बढ़ी हुई अहमियत को हम नजरंंदाज नहीं कर सकते।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बोरिस जॉनसन के बीच जो गर्मजोशी देखी गई है, उस पर न केवल भारतीय कूटनीतिज्ञों, बल्कि दुनिया की भी नजर होगी। दोनों ही नेता परस्पर संबंध विस्तार के लिए व्यग्र नजर आ रहे हैं, तो दुनिया के बदलते हालात की भी इसमें भूमिका है। कूटनीतिज्ञ भी इस बात को रेखांकित करते हैं कि विश्व की राजनीति में आज भारत का जो महत्व है, वह पहले नहीं था। पहले अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देश भारत व पाकिस्तान के साथ एक समान व्यवहार के लिए बाध्य दिखते थे। शीतयुद्ध के दौर में दोनों देशों को एक ही तराजू पर रखकर चलने की वैश्विक कोशिश ने भारत को कई बार बहुत निराश किया है। हम अपना पक्ष रखते तो थे, लेकिन उससे लाभ नहीं ले पाते थे। अब ऐसा लगता है कि दुनिया खुद आगे बढ़कर भारत के बारे में सोचना चाहती है। अमेरिकी विदेश मंत्री हों या रूसी विदेश मंत्री या चीनी विदेश मंत्री या अब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री, ये तमाम यात्राएं भारतीय शक्ति का प्रमाण हैं।
हमें पाकिस्तान के साथ तौलने का पश्चिमी तराजू अब शायद टूट चुका है। हमें विश्व-राजनय में अपनी वाजिब जगह और मजबूती, दोनों को कायम रखना है। एक और ताजा मामला देखें, तो एक अमेरिकी कांग्रेस सदस्य ने पाक-अधिकृत कश्मीर की यात्रा की, जिस पर भारत ने आपत्ति जताई, इसके बाद अमेरिकी सरकार को स्पष्ट करना पड़ा कि डेमोक्रेट सांसद की यात्रा से बाइडन सरकार का कोई लेना-देना नहीं है। दुनिया में अभी कोई ऐसा देश नहीं है, जो भारत को रूस का पुराना साथी होने के नाते कठघरे में खड़ा कर दे। भारत बहुत संभलकर चल रहा है। वह न तो रूस के खिलाफ गया है, न ही यूक्रेन के विरोध में खड़ा दिखा है। यह संतुलन भारतीय राजनय का नया सशक्त पहलू है। हर हाल में भारत को अपना हित देखते हुए चलना है। साथ ही, यह भी ध्यान रखना है कि भारत सिर्फ बाजार नहीं है, कोई भी देश भारत को सिर्फ बाजार मानकर न चले। संबंधों का विस्तार उन्हीं देशों के साथ होना चाहिए, जिनको हमारी पीड़ाओं का भी अंदाजा हो। राजनय की मजबूती देश के विकास में साकार होनी चाहिए।