भारतीय खेलों के लिए यह एक तरह से नए युग का आगाज है। ओलंपिक में बेहतर प्रदर्शन के बाद अब पैरालंपिक में भी भारत ने ऐतिहासिक प्रदर्शन कर दुनिया को चौंका दिया है। खुद भारत में लोगों को इतने पदकों की उम्मीद न थी। गली-गली में उचित ही चर्चा हो रही है कि आज तक हुए पैरालंपिक खेलों में देश को कुल 12 पदक नसीब हुए थे, लेकिन इस बार टोक्यो में आयोजित पैरालंपिक में देश 19 पदक लाने में कामयाब रहा है। इसके पहले के पैरालंपिक के प्रति हर तरह से उदासीनता रहती थी, लेकिन इस बार इन खेलों के प्रति सरकार के जिन अधिकारियों ने उत्साह दिखाया है, वे वाकई बधाई के पात्र हैं। भारत से अपेक्षाकृत एक बडे़ दल को पैरालंपिक में भेजकर भरोसा जताया गया। नौ प्रकार के खेलों में भाग लेने के लिए हमारे 54 खिलाड़ी गए और 19 पदकों के साथ लौटे हैं, तो बेशक यह आनुपातिक रूप से भी बड़ी सफलता है। करीब दस खिलाड़ी तो पदक के करीब जाकर रह गए हैं, अगर उनका मानसिक स्तर मजबूत होता, तो भारत के आधे खिलाड़ी पदक जीतकर लौटने में कामयाब होते। पैरालंपिक की जीत इसलिए भी ज्यादा मायने रखती है कि हमारे देश में अनेक लोग आज भी दिव्यांगों को महत्व नहीं देते हैं। आज ऐसे लोग अपनी पिछड़ी सोच पर पुनर्विचार कर रहे होंगे।
खिलाड़ियों ने यह साबित कर दिया है कि अगर उन पर भरोसा किया जाए, तो भविष्य में और भी पदक हासिल होंगे और भारत अपने आज के प्रदर्शन से कई गुना बेहतर प्रदर्शन कर सकता है। भारत के पास पांच स्वर्ण, आठ रजत और छह कांस्य पदक हैं और वह दुनिया में 24वें स्थान पर है। पिछली बार भारत को केवल चार पदक मिले थे। इन खास खिलाड़ियों ने कुछ ऐसी कामयाबियां अपने नाम की हैं कि उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। गौतमबुद्ध नगर के डीएम सुहास यतिराज की कामयाबी तो भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के लिए भी खास है। यतिराज पहले आईएएस हैं, जिन्होंने पैरालंपिक में न केवल बैडमिंटन में भाग लिया, बल्कि रजत पदक भी जीता है। आज वह किसी नायक से कम नहीं हैं। उनकी यह कामयाबी युवाओं के लिए बहुत प्रेरणास्पद सिद्ध होगी। पहली बार सबके सामने यह स्पष्ट हो गया है कि इन खिलाड़ियों को कतई कम नहीं आंकना चाहिए। टेबल टेनिस में रजत जीतकर भाविनाबेन पटेल ने भारत के लिए शानदार शुरुआत की थी। 10 मीटर एयर राइफल शूटिंग स्टैंडिंग इवेंट में शूटर अवनि लेखरा ने स्वर्ण जीता। उन्होंने 50 मीटर राइफल थ्री पोजीशन में भी कांस्य पदक जीता। इसके अलावा, सुमित अंतिल ने कई विश्व रिकॉर्ड तोड़ते हुए, मनीष नरवाल और प्रमोद भगत ने भी शीर्ष स्थान हासिल किया। अंतिम दिन, कृष्णा नागर ने बैडमिंटन में स्वर्ण जीता। निषाद कुमार, देवेंद्र झाझरिया, सुंदर सिंह गुर्जर भी कामयाब रहे। खास यह कि देवेंद्र ने अपने पैरालंपिक करियर के दो स्वर्णों में एक रजत पदक जोड़ लिया है। योगेश कथुनिया, सिंहराज अधाना, मरियप्पन थंगावेलु, शरद कुमार इत्यादि अनेक नाम हैं, जो भारत को पैरालंपिक में आगे की राह दिखाएंगे। वास्तव में, अब लगने लगा है कि खेलों के प्रति हमारा व्यवहार बदल गया है। सरकारों को इन विशेष खिलाड़ियों के जीवन को हर प्रकार से सुरक्षित, संरक्षित करना चाहिए। कोई आश्चर्य नहीं, हरियाणा सरकार ने शुरुआत कर दी है।
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